Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 128
________________ फफाकार कीयु फणटोप धाई पकडिउ पन्नगपूंछ उतलीबल देखिउ कुमार चंद्रसिंघासण आपिउ आणि विद्या तीन तूं लिइ माह गाम-नगर-पुर- घर - कारणी एतल लाभ कुमरनइ थयु नाहता देखी कहइ रखवाल सरोवर जे 1 सुर 2 रखि रहिउ इणि वचनि बोलिउ आकरु अगनिकुंडि गयु तिहाथी वीर तूठउ सुरवर बलवंत जाणि ते लेई आधुनीकलिउ पाकां आंब ते तोडी खाय मुझ तुर तोडइ आंब कुण वीर कुमर कोपि तिहि पासइ गयु वयण पचारी जीतु देव पुप्फमाल बि हाथइ करी प्रद्युमन 4 ते लेईनइ गयु दुधर गयवर धायु धसी आगलि गयु एक वावडी ते ग्रही पूछि फेरवइ सोइ प्रगट हुई नइ सेवा करी तव मलयागिरि ऊपरि गयु 1. जो 5. कुंभछलि Jain Education International तृतीय सर्ग 2. सर ते देखवि ऊपनु कोप उपाडी नाखी तस मूंछ ए समवडि नही को संसारि नागसेज पावडी वखाणि नागपास नइ सेना करी दुष्टजीव आवत वारणी वली ते नाहण सरोवरि गयु सरोवर मांहिथी नीकलि बाल ए जलि नाहण कुणि तुझ कहिउ रक्षपालि लहिउ ऊतर खरु आवत दीठउ साहसधीर अगनिपुट आपिउ उ ते आणि अंब एक दीठउ ते फलिउ अंबदेव पहूतु आय मूंह सिउ आवि भडउ ते धीर तेहसिउं जूझ मेलावर थयु कर जोडीनइ वीनवइ हेव वली पावडी आगलि धरी वनमांहि जाई हरखित थयु आहणिउ कुंभस्थलि 5 गज गयु खसी 6 विसहर एक दीठउ पावडी विलखवदनि ते फणधर होइ काममूंद्रडी आपी छुरी करइ साद ते ऊभउ थयु 4. प्रद्यमन 3. आंपिउ 6. खिसी For Private & Personal Use Only २६२ २६३ २६४ २६५ २६६ २६७ २६८ २६९ २७० २७१ २७२ २७३ www.jainelibrary.org

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