Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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प्रधुम्नकुमार-धुपई (भानुकुमारनो उपहास)
कोपारूढ तुरंगमि चडिउ खेलावतां ऊपरिथी पडिउ पडतां दांत पड्या जेतलइ लोक हांसा करइ तेतलइ ए नारायणतणउ कुमार ए समवडि कोइ नही असवार विप्र भणइ कांइ हसु एतला ते2 तरुणाथी बूढा भला दूरिहूंति करि आविउ आस भांनकुमरि ते कीयु निरास
कुमर भणइ विप्र तूं वडु एणइ घोडइ किम तुम्ह चडउ (प्रद्युम्ननु अश्वारोहण)
हं गरढउ जोईइ टेकणउ देखाउउ बल जिम आपणउ जिण दसवीस चडावण जाइ तिम तिम बांभण भारे थाइ तुरीय चडावण आविउ भान तव रिखि विप्रनइ कीधी सान जण दसवीस करिउ भडिवाय चडति भांनु4 गलि दीधु पाय चडी विप्र असवारी करइ अंतरीक ते घोडउ फिरइ
देखी सभा अचंभु थयु चमकार करि ऊंचु गयु (प्रद्युम्न द्वारा बे मायामयी अश्वन निर्माण )
वली सो पुरुष विद्याबले होइ बिंइ घोडी नीपजावइ सोइ वन-उद्यान राउल जिहा घोडा लेईनइ पहुतु तिहा तुरंगम लेई वनमांहि जइ देखि रखवाला ऊभा थाइ एणइ वनि चारि न चारइ कोइ कापइ चारि विगूचइ सोइ रखवालानी कीधी मनोहारि काम मूंद्रडी दीइ ऊतारि रखवाला घणु हरखा सहू घोडा बिहुंनइ चराविउ बहू फिरिफिरि घोडा वनमाहि चरइ तलइनी माटी ऊपरि करइ देखी रखवाला कूटइ हीयुं बिहु घोडे वन चउपट कीयु भाई लिइ ताहरी मुद्रडी खाधू वन अम्ह आरति पडी आघउ वीर पहूंतु तिहा सतिभामानी वाडी जिहां 1. हास 2.
त 3. तुरुणाथी 4. भानु
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