Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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प्रद्युम्नकुमार-चुपई बाल कुमरह आवतु देखिउं सिंघरथिराया हु मोटउ ए लहूयडउ केम जझय ति थाय इम चीतवतां 2 रायनइ बोलावइ कुमार हू आविउ3 अति लहूयडउ दिउ तुम्हे जुझ अपार
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चुपई
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२३७
वचन सुण्या तव धाया। सूर जेम वहइ नदीनां पूर सगणी सीगिणि पाली पटा कटारी कातरि करि कटा हरसी फरसी नइ हडबडी तखारि सेल गदा लि वडी छत्रीसइ हाथिइ हथीयार जूझ करइ आवी अपार घोडासिउ घोडा ते भिडइ हाथी हाथी आवी जडई रथसिउ रथ संग्राम करंति नीसत नर ते नासी जति पालइ पाला घणं आफलइ सूर सूर वेगा सिहं मिलई हाकइ ताकइ नइ धसमसइ कायरपुरुष पाछे राखसइ धाई धंबड नांखइं तीर सेल फेरवी नाखइ वीर मोगरसिउ मोड मियमत्त तेतलइ सिंघरथ आय पहुत सिंघजुध सिंघरथि मांडियु कुमरि अनेरुं जुझ छाडीयु तिहां आवी सिंघ युद्ध करंति संवरराय आवी जोयति बेहुं सिंघतणी परि भडइ पाळे पगि उसरि वलि जुडइ उछालिउ ते सिंधरथराय6 भूमि पडिउ तव चांपिउ पाय झांटि साहि झूडइ कुमार पग साही पेटि दिध प्रहार
मुख साहीनइ पाड्या दंत पजूनकुमर नान्ह उ बलवंत (सिंहरथराजानो प्रद्युम्नकुमारे करेलो पराजय)
हारिउ सिंधरथ गयु भडवाय बांधी आणिउ घालि पाय जय जय सबद हुउ जेतलइ जिम संवर बोलिउ तेतलइ 1. सिघरथि 2. चीतवतां 3. याविउ० 4. ध्याया 5. मोडय मियमित्त 6. सिघरथरायं
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२३९.
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