Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 123
________________ २४ प्रद्युम्नकुमार-चुपई विहार करतां इक गामि आवीया नायल श्रावक तिहां भावीयां नायलनइ घरि रही धीवरी अणसण करी सुरी अवतरी २१२ पंचावन पत्योपम आय पूरी आयु तिहां रुखमणि थाइ मयूरी पुत्रवियोगह करी वरस सोल सुत आवइ फिरी २१३ (नारद ऋषितुं संवररायने त्यां गमन)। नारदिरखि सांभलीयु सहू वांदी चालिउ आणंद बहू वैताढ्यपर्वत मेघकुटपुरइ संवरराया बइंठउ छइ घरइ २१४ नारदरखि2 आव्या जेतलइ ऊठी पगि लाग(इ) तेतलइ संवरराइ दीधू बहू मान कहइ हूं देखं तुम्ह संतान २१५ तव प्रद्युमनकुमर आणियु पेखी नारद वखांणीउ । रूप कुमरनुं देखी करी आविउ नयर द्वारिकापुरी+ २१६ (नारदऋषितुं रुक्मिणी पासे आगमन) जेहां ते बयठी छइ रुखमिणी आवी वात कही सुततणी लिखिमीवतीनी वात सांभली वार वार पूछइ ते वली २१७ खरूं कहिउं सीमंधरदेव भगति करुं हूं तेहनी हेव प्रतिमा सीमंधरनी करी पूज करइ ते इक चित्ति धरी २१८ (पुत्रागमन वखतनी अंधाणीओ) जिती एक आविउ मुझ घरिइ तेणइ वात कही इण परइ ताहर घरइ कस छइ बहू सोनाना जव देखइ सहू २१९ अफल अंब छ तुझ घरतणा जव फलफूल तूं देखइ घणा तव घर-वाडी सूकी अछइ आलीमाली देखिसि पछइ २२० सूकी वावि छइ तुम्ह घरतणी पाणी भरी देखिइ रुखमिणी .. अंचल धुला पीला होइ खीर झरइ थण देखी सोइ २२१ ए अहिनाणह मिलइ जव सही तव तुम्ह कुमर मिलइ गहगही कही सहिनाण गयु ते जाम रूपणि संतोखाणी ताम २२२ 1. संवररांय 2. नारदि 3. प्रद्यमनकुमार 4. द्वारिकापुरी 5. घण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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