Book Title: Pradyumnakumara Cupai Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah Publisher: L D Indology AhmedabadPage 72
________________ भूमिका ६५ आ उपरांत शत्रुने वहेमनो भोग बनावी तेने सीधो करवाना संबंधमां आळना प्रसंगरूपे तेमणे "पडमसिरिचरिउ "मांनी धनश्रीनी कथानुं, जैन वार्तासाहित्यनी "नटपुत्र रोहक "नी वार्तानुं, पूर्णभद्रना "पंचाख्यान " मां अने पश्चिम भारतीय "पंचतंत्र "मां आवतो दंतिल श्रेष्ठ अने गोरंभनी वातनुं तथा सोळमो सदीना अंतमां रचायेला बल्लाल - कृत “भोजप्रबंध" मांनी एक दंतकथानु टूकमां निरूपण करेलु छे. अदेखाईथी प्रेरित आळमां तेमणे "महाउम्मग्ग जातक" तेम ज भोज - कालिदासनी दंतकथाओनो उल्लेख करेलो छे. आम डॉ. भायाणीए आळना कथाघटकनी पृथक्करणशील सोदाहरण चर्चा करेली छे. आ उपरांत डॉ. जनक दवेए तेमना अप्रकट महानिबंधमां पण आळना कथाघटकनो विचार कर्यो छे. दोषारोपना घणां कारणोमांथी वेरवृत्ति पण एक कारणरूप छे एम जणावी, खोड आळ मूकवानां अनेक कथानकोनु तेमणे ट्रंकमां निरूपण करेल छे. तथा साथे साथे तुलनात्मक अभ्यास पण करेलो छे. आळना कथाघटक परत्वे तेमणे जे जे कथानकोनु निरूपण करेल छे ते नीचे प्रमाणे छे : १ भर्तृहरिनी कथा २. बंधनमोक्षजातक ३. एना जेवुं ज एक बीजी जातककथानु कथानक ४. "त्रिषष्टिशला कापुरुष चरित्र" तथा "वसुदेवहिंडी" अंतर्गत प्रद्युम्ननी कथा ५. इजिप्सना वार्ता साहित्यमांनी "अनपू अने बाटानी कथा' ६. " कथासरित्सागर" कथापीठ लंबक - तरंग ५मांनी " वररुचि चितारा" नी कथा ७. पंडित शुभशीलगणिकृत "विक्रमचरित्रम् " प्रकरण ३७मांथी "शारदानंद गुरुनी कथा " ८. "कथासरित्सागर" कथापीठ लंबक-तरंग ५मांनी “आदित्यवर्मा राजा अने शिववर्मा मंत्रीनी कथा " ९शुभशीलगणिकृत "विक्रमचरित्रम्" ना प्रकरण ५६मांनी शतबुद्धि, सहस्त्रबुद्धि, लक्षबुद्धि अने कोटिबुद्धि - ए चार वफादार सेवकोनी वात १०. “पंचतंत्र "मांनी नोळियानी वात ११. " दृष्टांतशतक "मांना १००मा दृष्टांतनी कथा १२. पंडित शुभशीलगणि कृत “विक्रमचरित्रम्" द्वितीय खंडमांनी, प्रकरण ५७मांनी एक जुगारीनी कथा १३. पूरन भगत अथवा चौरंगीनाथनी कथा. १४. “ जहांदारशा अने हुरमनुरझांहा "नी कथा १५. अमरसेन - वयर सेननी कथा १६. हंसराज - वच्छराजनी कथा १७. वीरभाण-उदयभाणनी कथा १८. “ होथल पदमणानो कथा १९ " कथासरित्सागर " - " शक्तियशा लंबक " - तरंग ७मांनी " यशोधर अने लक्ष्मीधर "नी कथा - आम अहीं डॉ. दवेए जुदां जुदां कथानकोमां प्रतीत थतुं आळनु कथाघटक केवी रोते आलेवायुं छे तेनो सारो एवो ख्याल आप्यो छे." १. २. ३. ४. ५. "Shamal's Sinhasanbatrisī-Preparation of an Authentic Edition of Tales Nos. 28, 29, 30, 31 from the Original Manuscripts together with a Critical Study of these Tales." 'The Jatak' vol. I Pages 120 Ed. Cowel E.B. 'The Jatak' vol. IV Page 117. Ed. Cowel E.B. "पंचतंत्र " संपादक डॉ. भोगीलाल सांडेसरा पृ. ३३५-३३७ आ कथानको जे जे पुस्तकोमांथी लीधां छे तेनी सविस्तर माहिती ते महानिबंधमां पृ. ६७२ थी ६९२ सुधीमां, ते ते कथाना उल्लेख प्रसंगे नीचे फूटनोटमां आपेली छे. ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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