Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 102
________________ प्रथम सर्ग वाजां पंचशब्द वाजंति भरहभावि नाचइ पग धरइ घणी भाति पाउला पेखति ताल विनोद करी मनहरइ १९ (नारदऋषितुं आगमन) हाथि कमंडल छत्री धरी दर्भ पाटली साथिइं करी चडी विमांनि नारदरखि आइ नयर देखी मनि आणंद थाइ २० नमस्कार कीयु सारंगपाणि आसण बइसण दीया आणि सदभावइ पूछइ कृष्ण(म)हराज तुम्हे पहूता किहांथी आज अधोलोक जिनवर वंदेवि गगनथकी हुँ आविउ हेवि नगरी देखि उपनु भाउ तुमइ भेटि यादवराउ तु नारायण विनउ करेव भलु कीयु जउ आव्या देव गाम पवित्र हूउ ए सही नारदरिखि पछइ गहगही कुसलखेम सहूकेनइ अछइ देइ आसीस नइ उठिउ पछइ आवइ हरख धरीनइ जिहां कृष्णतणी पटराणी तिहां २४ २५ २६ (सत्यभामा द्वारा नारदनो अनादर ) तिहां सतिभामा करइ शंगार कंठिइ पहिरइ नवसर हार नयणि रेख काजलनी करइ तिलक ललाटिइ अपूरव धरइ कांने झालि झबूकइ दोइ रत्नजडित सइथु सिरि जोइ सोल श्रृंगार सयरि तिहां करइ तेतलइ नारदरिखि संचरिइ नारद हाथि कमंडल करी कलाचरित्र कलि देखइ फिरी सो सतभामा पीठ पेखीयु दर्पणमाहि2 रूप देखीयु विपरीत रूप हरि दीठउ जाम मनि विलखाणी सुंदरि ताम देखी कूड-कपट कीयु राउ ए लक्षण छइ यादव राउ वडी नारि रखि ऊभउ रहिउ करजोडी बइसु नवि कहिउ । तउ रीस चांपी रे नारि चालिउ सुंदरिनइ पचारि 1. सारिगपाणि 2. दप्पर्णमाहि २७ ñ co Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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