Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 116
________________ १३९ तृतीय सर्ग सिल उपाडी विद्याबलइ देखइ कुमर पडिउ सिलतलइ राइ कुमर लीधु ततकाल कनकमालनइ आउ बाल लक्षण बत्रीसइ दीठां अंगि राणी कुमर लीयु उछंगि धर्मपुत्र राजाइ कहिउ विमानि चडी आविउ गहगहिउ १४० नयरमांहि घणु उछव कीधु प्रद्युमनकुमर नाम तसु दीधु अति सरूप अति लक्षणसार । अति वाल्हु प्रद्युमनकुमार १४१ (प्रद्युम्नकुमारनी विद्यासाधना) बीजचंद जिम तिम वधि गयु! __ वरस सातनु बालक थयु नेसालइ मूंकीउ भणवा भणी कला बहुत्तरी आवी सुणी १४२ भरह पिंगल व्याकरण सुछंदि शास्त्र भण्या मननइ आंणंदि जैन-आगम सांभलीयां घणां मत जाण्या खटदर्शनतणां धनुषबाण झाली करवाल सिंधझझ करइ देई फाल लडण-भडण पइसार नीसार3 सवि जाणइ प्रद्युमनकुमार कुंमर पांचसइ मांहि प्रधान वाघिउ कुमर थयु रूप-निधान जिमसंवर देखी हरखंति वली कथा द्वारिका जंति १४५ (पुत्र-वियोगिनी रुक्मिणीनो विलाप) १४३ ढाल रयण दिवसि रोय रुखमिणी पुत्रतणइ वियोगि मुझनइ दुख ए सही ह्युं हिव करम संयोगि माहरइ पोतइ पुन्य नहीं जे हुं पेखु बाल तव सतिभामा आवी कहइ फल लहिउ ततकाल....माहरइ. आंकणी १४७ मणूयजनम पामी करी मइ न कीयु धर्म बालक माइ विछोहीनइ मइ बांध्यां कर्म ...मा.. १४८ कइ मइ पुरुष विछोहीया कय विछोही नारि तिणि दुखइ हुं दुखणी एणइ संसारी... ...मा. १४९ ___ 1. गय 2. सांतनु 3. नीसारं 4. नही 5. आफणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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