Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 16
________________ जीवो पुग्गलधम्माधम्मागासा य कालमिदि छक्कं । दविदं दवदि दविस्सदि इदि दव्वं वण्णिदं समये ।।15।। अन्वय - जीवो पुग्गलधम्माधम्मागासा य कालमिदि छक्कं दविदं दवदि दविस्सदि इदि दव्वं वण्णिदं समये । अर्थ- जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये द्रव्य हैं। (जो गुण और पर्यायों के द्वारा) प्राप्त हुआ है, हो रहा है और होगा वह द्रव्य है ऐसा आगम में कहा गया है। उक्तं च - 1. *"पाणेहि चदुहि जीवदि जीविस्सदि जो हु जीविदो पुव्वं । जीवो पाणाणि पुणो बलमिंदियमाउ उस्सासो।।" अर्थ- जो चार प्राणों के द्वारा वर्तमान में जीवित है, भविष्य में जीयेगा और पूर्व में जिया था, वह जीव है। चार प्राण बल, इंद्रिय, आयु और श्वासोच्छ्वास हैं। (पंचास्तिकाय 30) दसणणाणी जीवो पूरणगलणा हु पोग्गलो होदि । गदिपरिणदिजुदचेदण मुत्ताणं धम्म गदि हेदू ।।16।। ठिदिपरिणदिजुदचेदण मुत्ताणमधम्मदव्व ठिदि हेदू । अवगासदाणजोग्गं आगासं सव्वदव्वाणं ।।17।। कालस्सेवं लक्खणमिह सव्वेसिं च जाण दव्वाणं । पज्जायाणं परिवट्टणस्स हेदु इदि सुत्तम्ही ।।18|| अन्वय - जीवो दंसणणाणी पोग्गलो पूरणगलणा होदि गदि - परिणदिजुदचेदण मुत्ताणं गदि हेदू धम्म ठिदिपरिणदिजुदचेदण मुत्ताण ठिदि हेदू अधमदव्व सव्वदव्वाणं अवगासदाणजोग्गं आगासं कालस्सेवं पज्जायाणं परिवट्टणस्य हेदु इदि सुत्तम्ही सब्वेसिं दव्वाणं लक्खणमिह जाण। अर्थ - जीव दर्शन और ज्ञान स्वभाव वाला, पुद्गल द्रव्य पूरण गलन स्वभाव वाला है। गति क्रिया से परिणत जीव और पुद्गलों को जो ( 5 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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