Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 33
________________ अर्थ - एक कालाणु निश्चय से अव्यापक है । जो तीनों लोक में पूरित है, वह व्यापक है और निश्चय से जो तीन लोक में पूरित नहीं है वह अव्यापक हैं । अत्थित्तं वत्थुत्तं दव्वपदेसित्तमगुरुलहुगत्तं । णिच्चत्तपमेयत्तं परिपरिणामित्तमिदि दवियाणं ||74|| छहं सामण्णगुणा एदे जीवस्स चेयणत्तं च । सक्किरियत्तममुत्तत्तं तिण्णिगुणा विसेसा हु ||75|| अन्वय - अत्थित्तं वत्थुतं दव्वपदेसित्तं अगुरुलहुगत्तं णिच्चत्तपमेयत्तं परपरिणामित्तमिदि एदे दवियाणं छव्हं सामण्णगुणा जीवस्य चेयणत्तं सक्किरियत्तममुत्तत्तं हु विसेसा तिण्णिगुणा । अर्थ - अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यप्रदेशत्व, अगुरुलधुत्व, नित्य प्रमेयत्व, परिणामिकत्व अर्थात् द्रव्यत्व ये, द्रव्यों के छह सामान्य गुण हैं। जीव के चेतनत्व, सक्रियत्व और अमूर्तत्व निश्चय से तीन विशेष गुण हैं । पुग्गलदव्वस्स पुणो मुत्तत्तमचेयणत्तमक्किरियत्तं । इदि तिण्णि विसेसगुणा अचेयणत्तं अमुत्तत्तं ||76|| णिक्किरियत्तं गदिहेदुत्तं इदि चउ गुणा विसेसा हु । धम्मस्स अधम्मस्स य अचेयणत्तं अमुत्तत्तं ॥77॥ णिक्किरियत्तं ठिदिहेदुत्तं इदि चउगुणा विसेसा हु । आयासं दव्वस्स य अचेयणत्तं अमुत्तत्तं ॥78॥ णिक्किरियत्तं ओगाहणत्तमिदि चउगुणा विसेसा हु । कालस्य विसे सगुणा अचेयणत्तममुत्तत्तं ||79|| णिक्किरियत्तं च पुणो तह वट्टणलक्खणत्तमिदि चउरो । एवं छण्हं दव्वाणं पि य कहिया विसेसगुणा ||80|| अन्वय – पुग्गलदव्वस्य मुत्तत्तमचेयणत्तमक्किरियत्तं इदि (कुलकम्) (1) परपरिणामित्त 74. Jain Education International ( 22 ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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