Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 71
________________ सगकाले हुसहस्से विसयतिसट्ठी(1263) गदेदु विसवरिसे। मग्गसिरसुद्धसत्तमि गुरुवारे गंथसंपुण्णो ||199।। अन्वय - सगकाले हु सहस्से विसयतिसठ्ठी (1263) गद्देदु विसवरिसे मग्गसिरसुद्धसत्तमि गुरुवारे गंथसंपुण्णो । अर्थ - शक् संवत के 1263 वर्ष व्यतीत होने पर मगसिर सुदी सप्तमी गुरुवार के दिन यह ग्रन्थ पूर्ण हुआ । अणुवदगुरुबालेंदु महव्वदे अभयचंद सिद्धती। सत्थेभयसूरि पभाचन्दखलुसुयमुणिस्सगुरु ।।200II अन्वय - खलु अणुवदगुरुबालेंदु महव्वदे अमयचंद सिद्धंती सत्थेभयसूरि पभाचन्द सुयमुणिस्स गुरु । अर्थ - श्रावक अवस्था के गुरु बालेंदु, महाव्रत अवस्था के अभयचन्द्र सिद्धान्तिक, विद्या गुरु अभयसूरि , प्रभाचन्द्र, ये श्रुत मुनि के गुरु थे। सिरिमूलसंघदेसियगणपुत्थयगच्छकोडकुंदाणं । परमण्णइंगलेसरबलिम्हिजादस्स मुणिपहाणस्स।।201|| सिद्धताहयचंदस्स य सिस्सो बालचन्दमुनिपवरो । सोभवियकुवलयाणामाणंदकरो सया जयउ ||202|| __ अन्वय - सिरिमूलसंघदेसियगणपुत्थयगच्छकोडकुंदाणं परमण्णइंगलेसरबलिम्हि जादस्स मुणिपहाणस्स । सिद्धताहयचंदस्स य सिस्सो मुनिपवरो बालचन्दो सो भवियकुवलयाणामाणंदकरो सया जयउ। अर्थ - श्री मूल संघ, देशीयगण, पुस्तकगच्छ, कोण्डकुन्दान्वय की श्रेष्ठ इंगलेश्वरीबली में हुये मुनि प्रधान अभयचंद सिद्धान्त चक्रवर्ती के शिष्य मुनिप्रवर बालचन्द्र मुनि जो भव्य जीवों रूपी नील कमल को विकसित करने वाले हैं , वे सदा जयवंत रहें। सद्धागम परमागम तक्कागम णिरवसेस वेदी हु। विजिदसयलण्णवादी जयउ चिरं अभयसूरिसिद्धति ।।203|| ( 60 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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