Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 72
________________ अन्वय - हु सद्धागम परमागम तक्कागम णिरवसेस वेदी विजिदसयलण्णवादी अभयसूरिसिद्धति चिरं जयउ । अर्थ - व्याकरण, अध्यात्म शास्त्र, न्याय शास्त्र, आगम शास्त्र के पूर्ण ज्ञाता, समस्त अन्य वादियों पर विजय प्राप्त करने वाले आचार्य अभयचन्द सिद्धान्तिक जयवंत हों । .' णयणिक्खेवपमाणं जाणित्ता विजियसयलपरसमओ । वरणिवइणिवहवंदियपयपम्पो चारुकित्तिमुणी ।।204|| __ अन्वय - णयणिक्खेवमाणं जाणित्ता विजियसयलपरसमओ वरणिवइणिवहवंदियपयपम्पो चारुकित्तिमुणी । अर्थ - नय, निक्षेप और प्रमाण को जान कर जीत लिया है अन्य समस्त पर वादियों को जिन्होंने, श्रेष्ठ राजाओं के समूह कके द्वारा वंदित हैं चरण कमल जिनके ऐसे चारु कीर्ति मुनि हुए । • वरसारत्तयणिउणो सुद्धप्परओ विरहिय परभावो। भवियाणं पडिबोहणपरो पहाचंदणाममुणी।। 205।। अन्वय - वरसारत्तयणिउणो सुद्धप्परओ विरहिय परभावो भवियाणं पडिबोहणपरो पहाचंदणाममुणी। अर्थ - श्रेष्ठ रत्नत्रय में निपुण, शुद्ध आत्मा में लीन, अशुभ भावों से रहित , भव्य जीवों को संबोधित करने वाले प्रभा चन्द्र मुनि हुये। श्री मच्छूतमुनिविरचितपरमागमसारः समाप्तः । 204 . ' तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (भाग 4/420 21) में उल्लेखित श्रुत मुनि पट्टावली के आधार पर नन्दी संघ में श्रुतकीर्ति हुए थे, उनके शिष्य श्री चारूकीर्ति मुनि हुए थे। उनकी शिष्य परम्परा में अनेक गुणों से मण्डित श्रुत मुनि हुए थे। 205.' प्रभाचन्द - तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (भाग 3/274) के अनुसार आप श्रुत मुनि के विद्या गुरु थे। __ ( 61 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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