Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 48
________________ अर्थ - जो मांस और रुधिर से युक्त जार के समान जीव के शरीर का आवरण होता है उसे जरायु कहते है । जरायु में जो उत्पन्न होता है वह जरायुज कहलाता है। जं सुकुलसोणिदाणं परिवरणं णहसरिच्छ कठिणत्तं । परिमण्डलं तमण्डं तम्हि भवो अण्डजो जीवो।।129।। __ अन्वय - जं सुकुलसोणिदाणं परिवरणं णहसरिच्छ कठिणत्तं परिमण्डलं तमण्डं तम्हि भवो जीवो अण्डजो। अर्थ- जो सफेद खून का आवरण नख के समान कठोर होता है तथा गोलाकार होता है वह अण्ड कहलाता है । जो जीव उसमें उत्पन्न होता है वह अण्डज कहलाता है । किंचि वि परिवरणविणा जोणीदो णिग्गदेण मेत्तेण । परिपुण्णावयओ सो परिफंदादिहि जुदो पोदो।।130॥ अन्वय - किंचि वि परिवरणविणा परिपुण्णावयओ जोणीदो णिग्गदेण मेत्तेण परिफंदादिहि जुदो सो पोदो। अर्थ - जो जीव आवरण से रहित होते हैं, जिनके शरीर के अवयवपूर्ण विकसित होते हैं तथा योनि से निकलते ही जो चलने-फिरने लगते हैं, वे पोतज कहलाते हैं। मणुवादिया हु जीवा जरायुजा वग्घपहुदयो पोदा । पक्खिप्पमुहा अण्डजजीवेदे मणुयतिरियगदिजादा ।।131|| अन्वय - मणुयतिरियगदिजादा मणुवादिया हु जीवा जरायुजा वग्धपहुदयो पोदा पक्खिप्पमुहा अण्डजजीवेदे । अर्थ - मनुष्य, तिर्यंच गति में उत्पन्न होने वाले मनुष्यादि जीव जरायुज, बाघ आदि पोतज, पक्षी आदि अण्डज होते हैं। गभं जरायुजाण्डजपोदाणं देवणिरयजादाणं। उववादं सेसाणं संमुच्छणजम्ममिदि णेयं ।।132|| ( 37 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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