Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 60
________________ सो बंधो पयडिट्ठिदि अणुभागपदेसभेददो चदुधा । तेसिं हवंति जोगा पयडिपदेसा कसायदो सेसा ||171|| अन्वय - सो बंधो पयडिट्ठिदि अणुभागपदेसभेददो चदुधा तेसिं पयडिपदेसा जोगा सेसा कसायदो हवंति । अर्थ - वह बन्ध प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश के भेद से चार प्रकार का है। उसमें अर्थात् प्रकृति और प्रदेश बन्ध योग से होते हैं तथा शेष अर्थात् स्थिति और अनुभाग बन्ध कषाय से होते हैं। इति बंधतत्त्वम् । सव्वेसिमासवाणं विणिरोहो संवरो हवे णामा । सो दुवियप्पो णेयो भावो पुण दव्वसंवरो चेइ ||172|| अन्वय - सव्वेसिमासवाणं विणिरोहो संवरो णामा हवे सो पुण दुवियप्पो भावो दव्वसंवरो चेई णेयो। अर्थ – समस्त कर्मों के आस्रव के रुक जाने का नाम संवर हैं और वह संवर द्रव्य संवर और भाव संवर के भेद से दो प्रकार का जानना चाहिये। वद समिदि पंच गुत्ति तिदयं दस धम्म वारसणुवेक्खा । बावीस परीसहजय पण चारित्तेदि संवरा भावा ।।173|| अन्वय - वद समिदि पंच गुत्ति तिदयं दस धम्म वारसणुवेक्खा बावीस परीसहजय पण चारित्तेदि भावा संवरा। अर्थ – पाँच व्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति, दस धर्म, बारह अनुप्रेक्षा, बावीस परीषहजय और पांच प्रकार का चारित्र ये भाव संवर हैं। सव्वेसिं दव्वाणं कम्माणणिरोहणो हवे णियमा । सो दव्व संवरो खलु णायव्वो जिणुवदेसेण ||174|| अन्वय - जिणुवदेसेण णियमा सव्वेसिं दव्वाणं कम्माण गिरोहणो ( 49 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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