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सुहणामं सुहगोदं सुहाउगं सादपुण्णकम्माणि। एदेसिं इदराणि हु पावाणि हवंति कम्माणि ||18611
अन्वय - सुहणामं सुहगोदं सुहाउगं सादपुण्णकम्माणि हु एदेसिं इदराणि कम्माणि पावाणि हवंति ।
अर्थ- शुभ नाम, शुभ गोत्र, शुभ आयु , सातावेदनीय पुण्य कर्म हैं। इससे भिन्न पाप कर्म हैं अर्थात् अशुभ नाम, गोत्र, आयु आदि पाप कर्म हैं।
पण छस्सत्तणवाणं अत्थाणं सद्ददो य भेदा हु। पुण अत्थदोय भेदाण हवंति हुसव्व कालन्हि।।187।।
अन्वय - हु पण छस्सत्तणवाणं अत्थाणं सद्ददो य भेदा पुण अत्थदो य भेदा सव्व कालम्हि ण हवंति ।
अर्थ - पदार्थो के पांच, छह, सात, नव प्रकार शब्दों की अपेक्षा भेद है किन्तु अर्थ (भाव) की अपेक्षा किसी भी काल मे भेद नहीं हैं ।
इति नवपदार्थस्वरूपनिरूपणम्। ग्रन्थान्तरोक्तपंचदशगाथाभिः पदार्थचूलिका कथ्यते - 11. * जीवो परिणमदि जदा' सुहेण असुहेण वा सुहो असुहो।
सुद्धेण तहा सुद्धो हवदि हि परिणामसब्भावो। अर्थ - जीव जब शुभ भाव से परिणमन करता है तब शुभ रूप होता है। जब अशुभ भाव से परिणमन करता है तब अशुभ रूप और शुद्ध भाव से परिणमन करता है तब शुद्ध रूप होता है क्योंकि जीव परिणमन स्वभाव वाला है ।
(प्र. सार 1-9) 12. * उवओगो जदि हि सुहो पुण्णं जीवस्स संचयं जादि। .
असुहो वा तह पावं तेसिमभावे ण चयमत्थि ।। अर्थ - उपयोग यदि शुभ हो तो जीव के पुण्य का संचय होता है और यदि अशुभ हो तो पाप का संचय होता है उन दोनों के अभाव में (पुण्य-पाप) संचय नहीं होता है ।
(प्र. सा. 2-64) 11*. (1) जया
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