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अन्वय - जरायुजाण्डजपोदाणं गब्भं देवणिरयजादाणं उववादं सेसाणं संमुच्छणजम्ममिदि णेयं ।
अर्थ – जरायुज, अण्डज और पोतज ये गर्भ जन्म के तीन भेद होते हैं । देवगति और नरकगति में उत्पन्न होने वाले जीवों का उपपाद जन्म होता है। गर्भ जन्म और उपपाद जन्म वाले जीवों को छोड़कर शेष जीवों का संमूर्च्छन जन्म जानना चाहिये।
णारयइगि-विगलिंदिय-संमुच्छण-पंचक्ख सव्व जीवा य। संढा हु कम्मभूमिजणरतिरिया वेदतियजुत्ता ।।133||
अन्वय - हु सव्व णारयइगि-विगलिंदिय-संमुच्छणपंचक्ख जीवा य संढा कम्मभूमिजणरतिरिया वेदतियजुत्ता।
अर्थ - निश्चय से सभी नारकी, एकेन्द्रिय जीव, विकलेन्द्रिय अर्थात् द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय , चतुरिन्द्रिय और समूर्छन पंचेन्द्रिय जीव नपुंसक होते हैं। कर्म भूमि में उत्पन्न मनुष्य और तिर्यंच, तीनों वेद वाले होते हैं।
देवा चउण्णिकाया वरमज्झजहण्णभोगभूजादा । तिरिया णरा य कुणरा पुरिसित्थि वेदगा चेव ।।13411
अन्वय - चउण्णिकाया देवा वरमज्झजहण्णभोगभूजादा तिरिया णरा य कुणरा पुरिसित्थि वेदगा चेव ।
अर्थ - चारों निकायों के देव, उत्तम, मध्यम और जघन्य भोगभूमि में उत्पन्न तिर्यंच , मनुष्य और कुमानषों के पुरुष और स्त्री ये दो ही वेद पाये जाते हैं। हिंसादिसु चाणुरदा सत्तव्वसणेहिं संजुदा णिच्चं । बहुआरंभपरिग्गहसंचिदकम्मा हुजांति णिरयगर्दि।।135।।
अन्वय - हिंसादिसु चाणुरदा सत्तव्वसणेहिं संजुदा णिच्चं बहुआरंभपरिग्गहसंचिदकम्मा हु णिरयगर्दि जांति । अर्थ -जो जीव हिंसादिक पाँच पापों में लीन और सात व्यसनों
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