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अर्थ - धर्म, अधर्म , आकाश और काल द्रव्य के क्रमशः गति, स्थिति, अवगाहन, वर्तन क्रिया ये चारों उपकार हैं। पुद्गल द्रव्य स्पर्श, रस, गंध और वर्ण गुणों से युक्त होता है।
इति अजीवतत्त्वम्। मिच्छाविरदिपमादा कसायजोगा य आसवा होति। पण वारस पण्णरसा पणवीसापंचदस भेदा।।143||
अन्वय - मिच्छाविरदिपमादा कसायजोगा य आसवा होति पण वारस पण्णरसा पणवीसा पंचदस भेदा।।
अर्थ-मिथ्या दर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये आस्रव अर्थात् बंध के कारण हैं। इनके क्रमशः पाँच, बारह, पन्द्रह, पच्चीस और पन्द्रह भेद होते हैं।
उदये दंसणमोहे अतच्चसद्धाणपरिणदी मिच्छा। एयंतं विवरीयं विणयं संसइदमण्णाणं ।।144||
अन्वय - दंसणमोहे उदये अतच्चसद्धाणपरिणदी मिच्छा एयंतं विवरीयं विणयं संसइदमण्णाणं ।
अर्थ - दर्शनमोहनीय कर्म के उदय में अतत्त्व श्रद्धान रूप परिणति मिथ्यात्व है। वह मिथ्यात्व एकांत, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान इस प्रकार पाँच प्रकार का है।
एयंतं बुद्धमदे विवरीयं बम्हणे तहा विणयो। तावसणिवहे संसयमिच्छे अण्णाण मक्कडिये।। 1451
अन्वय - बुद्धमते एयंतं बम्हणे विवरीयं तहा विणयो तावस संसयमिच्छे णिवहे अण्णाण मक्कडिये।
अर्थ - एकांत मिथ्यात्व में बुद्धमत, विपरीत मिथ्यात्व में ब्राह्मण विनय मिथ्यात्व में तापसी, संशय मिथ्यात्व में इन्द्र तथा अज्ञान मिथ्यात्व में मस्करी इसप्रकार पाँचों मिथ्यात्वों में पाँच मिथ्यादृष्टि मत प्रसिद्ध हैं।
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