Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

View full book text
Previous | Next

Page 57
________________ हस्सादिणोकसाया रागो दोसो य मोहपहुदी हु । थूलो सुहुमो वेसिं भावो खलु होइ असुहमणं ||16011 अन्वय - हस्सादिणोकसाया रागो दोसो य मोहपहुदी हु थूलो सुहुमो वेसिं भावो खलु असुहमणं होइ। अर्थ - हास्यादि नव नो कषाय, राग , द्वेष और मोहादि ये स्थूल अथवा सूक्ष्म रूप भाव निश्चय से अशुभ मन हैं। अत्थत्थिभत्तकहा रायकहा पिसुणचोरबेरकहा । परपीडदेसकामकहादिसु वयणं वियाण असुहमिदि||161|| अन्वय - अत्थत्थिभत्तकहा रायकहा पिसुणचोरबेरकहा परपीडदेसकामकहादिसु असुहमिदि वयणं वियाण । अर्थ - धन कथा, स्त्री कथा, भोजन कथा, अवनी पाल कथा, चुगली, चौर्य , बैर कथायें , दूसरों को दुःख देने वाली, राष्ट्र, काम आदि रूप कथायें, अशुभ वचन जानो। बंधनताडनछेदण मारणकिरियादिगा य जे सव्वे । ते कायव्वावारा णायव्वा असुहकायमिदि ||162|| अन्वय - बंधनताडनछेदण मारणकिरियादिगा य जे सव्वे कायव्वावारा इदि ते असुहकायं णायव्वा । अर्थ – बाँधना, पीटना, छेदना, मारना आदि रूप क्रियायें सभी जो शरीर के व्यापार हैं। उन्हें अशुभ काय जानना चाहिये। असुहादो जोगादो पुरिसा पावंति दारुणं दुक्खं । संसारपरिभमंतो सहजसरीरादिजणिदबहुभेयं |163|| अन्वय - असुहादो जोगादो पुरिसा संसारपरिभमंतो सहजसरीरादिजणिदबहुभेयं दारुणं दुक्खं पावंति । अर्थ - अशुभयोग से जीव संसार में परिभ्रमण करता हुआ सहज (मानसिक, आगुन्तक) और शरीर आदि से उत्पन्न अनेक प्रकार के दुःखों को प्राप्त करता है। ( 46) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74