Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ अर्थ - कर्मों के क्षय से क्षायिक भाव होता है। कर्मों के उपशम से औपशमिक भाव होता है। कर्मों के उदय के साथ चेतन गुणों का प्रकट होना क्षायोपशमिक भाव है जो कर्म के उदय से उत्पन्न होने वाले कर्म के गुण(भाव) औदयिक भाव कहलाते हैं अर्थात् कर्मों के उदय से उत्पन्न होने वाले कर्म भाव औदयिक हैं। जो कर्मों के उपशम, क्षय, क्षयोपशम इत्यादि की अपेक्षा के बिना स्वभाव रूप भाव होता है उसे पारिणामिक भाव जानना चाहिये। उवसमभावो उवसमसम्म खलु होइ उवसमं चरियं । केवलणाणं दसण तह खइयासम्मचरियदाणादी॥1001 खाइयभावस्सेदे भेदा अह मिस्सभावभेदा हु । चउणाणं तिय दंसणंमण्णाणतियं च वेदगं सम्मं ||101|| देसजमं च सरागं चारित्तं होंति पंच दाणादि । ओदयियभावभेदा गदिलिंगकसाय-लेस्स-मिच्छत्तं ।।102|| अण्णाणं च असिद्धं असंजमं चेदि होति परिणामा । जीवत्तं भव्वत्तमभव्वत्तं चेदि णादव्वा ।।103।। अन्वय - खलु उवसमभावो उवसमसम्म उवसमं चरियं केवलणाणं दंसण तह खइयासम्मचरियदाणादी। खाइयभावस्सेदे भेदा अह मिस्सभावभेदा चउणाणं तिय दंसणंमण्णाणतियं च वेदगं सम्मं देसजमं सरागं चारित्तं पंच दाणादि च होंति ओदयियभावभेदा गदिलिंगकसायलेस्स-मिच्छत्तं अण्णाणं असिद्धं असंजमं च होंति परिणामा जीवत्तं भव्वत्तमभव्वत्तं चेदि णादव्वा । अर्थ- निश्चय से औपशमिक भाव औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र के भेद से दो प्रकार का है। केवलज्ञान, केवलदर्शन, क्षायिक सम्यक्त्व, क्षायिक चारित्र, क्षायिक दान, लाभ, भोग, उपभोग, और वीर्य इस प्रकार कुल नौ क्षायिक भाव के ये भेद और मिश्र अर्थात् क्षायोपशमिक भाव के मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मनःपर्यय ज्ञान ये चार ज्ञान , तीन दर्शन अर्थात् चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और ( 29 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74