Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 45
________________ समुच्छणजम्मं गब्भजम्ममुववादजम्ममिदि तिविहं । तज्जोणी सच्चित्तमचित्तं तम्मिस्सं सीदमुण्हं तु ।।118|| तम्मिस्सं पुण संवुडविउलं तम्मिस्समिदि हु सामण्णे । णव जोणीओ होंति हु वित्थारे चदुरसीदिलक्खाणि ||119।। अन्वय - समुच्छणजम्मं गब्भजम्ममुववादजम्ममिदि तिविहं तज्जोणी सच्चित्तमचित्तं तम्मिस्संतु सीदमुण्हं तम्मिस्सं पुण संवुडविउलं तम्मिस्समिदि सामण्णे णव जोणीओ होति हु वित्थारे चदुरसीदिलक्खाणि। अर्थ - सर्मूच्छन जन्म, गर्भ जन्म और उपपाद जन्म इस प्रकार जन्म तीन प्रकार का होता है । जन्म की योनियाँ सचित्त, अचित्त सचित्ताचित्त , शीत, उष्ण , मिश्र अर्थात् शीतोष्ण संवृत, विवृत और मिश्र अर्थात् संवृत विवृत इस प्रकार सामान्य से नव योनि होती हैं और विस्तार से 84 लाख योनियाँ जाननी चाहिये। आहारसरीरक्खाणपाणभासामणाण पज्जत्ती । चारिपण छक्कणेया एयक्खे वियलसण्णिह्मि ।।1201 अन्वय - आहारसरीरक्खाणपाणभासामणाण पज्जत्ती एयक्खे वियलसण्णिझि चारि पण छक्क णेया। अर्थ - आहार, शरीर , इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन ये छह पर्याप्तियाँ हैं । एकेन्द्रिय जीव के चार पर्याप्तियाँ विकलेन्द्रिय जीव के पाँच पर्याप्तियाँ तथा संज्ञी पर्याप्तक जीव के छह पर्याप्तियाँ होती हैं। पारंभणं तु पज्जत्तीणं जुगवं कमेण पुण्णत्तं। अंतमुहुत्तह्मि कमो मिलिदे अंतोमुहुत्तं तु ||12111 अन्वय - पज्जत्तीणं पारंभणं तु जुगवं पुण्णत्तं कमेण अंतमुहुत्तमि कमो मिलिदे तु अंतोमुहुत्तं । अर्थ - पर्याप्तियों का प्रारंभ तो युगपत् होता है पूर्णता क्रम से एक-एक अन्तर्मुहूर्त में होती है और सभी पर्याप्तियों के काल को मिलाने पर भी अन्तर्मुहूर्त ही होता है । ( 34 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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