Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 39
________________ अन्वय - तह णिच्चयदो चेयण णाणासुहादिहि भावपाणेहिं तिक्काले जो जीवदि जीविस्सदि जीविदो हु सो जीवो । अर्थ - तथा निश्चय से चेतना, ज्ञान, सुखादिक भाव प्राणों के द्वारा तीन काल में जो जीता था, जी रहा है तथा भविष्य काल में जीवेगा निश्चय से उसे जीव जानो । उवसमभावो खइयो भावो खायोवसमियभावो दु । जीवस्स स तच्चोदयियो भावो पारिणामियो भावो ||96|| अन्वय - जीवस्स उवसमभावो खइयो खायोवसमियभावो ओदयियो भावो परिणामियो भावो तच्च । अर्थ - औपशमिक भाव, क्षायिक भाव, क्षायोपशमिक भाव, औदयिक भाव और पारिणामिक ये पाँच भाव जीव के स्वतत्त्व हैं । एतेसिं भेदा खलु दुग णव अट्ठारसं च इगिवीसं । तिणेव होंति कम्मुवसमम्हि जायदि हु उवसमो भावो ॥97|| अन्वय - खलु एतेसिं दुग णव अट्ठारसं च इगिवीसं तिण्णेव भेदा कम्मुवसमम्हि उवसमो भावो जायदि । अर्थ - निश्चय से इन पाँच भावों के क्रमशः दो, नौ, अठारह, इक्कीस और तीन भेद होते हैं । कर्मों के उपशम से उपशम भाव होता है। कम्मक्खयेण खइयो भावो भावोवसमियभावो दु । 'उदयगदचेदणगुणो कम्मभवो होदि कम्मगुणो ||98|| सो ओदइओ भावो कारणणिरवेक्खजो सहाओ दु । सो चेव पारिणामियभावो होदि त्ति णायव्वो ||99|| अन्वय - कम्मक्खयेण खइयो भावो भावोवसमियभावो दु उदयगदचेदणगुणो कम्मभवो कम्मगुणो सो ओदइओ भावो होदि कारणणिरवेक्खजो हु सहाआ सो चेव पारिणामियभावो होदि त्ति णायव्वो । (1) सतच्चो (3) औदयियो । 98. (2) उदयगुण 96. 99.. Jain Education International ( 28 ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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