Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ तिण्णि विसेसगुणा अचेयणत्तं अमुत्तत्तं णिक्किरियत्तं गरिहेदुत्तं इदि चउ विसेसा गुणा धम्मस्स य अधम्मस्स अचेयणत्तं अमुत्तत्तं णिक्किरियत्तं ठिदिहेदुत्तं इदि चउगुणा विसेसा य आयासं दव्वस्स अचेयणत्तं अमुत्तत्तं णिक्किरियत्त ओगाहणत्तमिदि हु चउगुणा विसेसा कालस्स विसेस गुणा अचेयणत्तममुत्तत्तंणिक्किरियत्तं च पुणो वट्टणलक्खणत्तमिदि चउरो । एवं छण्हं दव्वाणं पिय विसेसगुणा कहिया। अर्थ - पुद्गल द्रव्य के मूर्त्तत्व , अचेतनत्व, सक्रियत्व ये तीन विशेष गुण जानना चाहिये । अचेतनत्व अमूर्तत्व , निष्क्रियत्व, गति हेतुता, ये चार विशेष गुण धर्म द्रव्य के हैं और अधर्म द्रव्य के अचेतनत्व, अमूर्तत्व, निष्क्रियत्व और स्थिति हेतुत्व ये चार गुण विशेष हैं । आकाश द्रव्य के अचेतनत्व, अमूर्तत्व , निष्क्रियत्व अवगाहनत्व ये निश्चय से चार विशेष गुण होते हैं । काल द्रव्य के विशेष गुण अचेतनत्व, अमूर्तत्व , निष्क्रियत्व और वर्तना लक्षण ये चार विशेष गुण हैं । इस प्रकार छह द्रव्यों के विशेष गुण कहे गये हैं। जस्सससव्वेयणणाणजणिय च इदण्ण अमियरससादी। तित्तस्स अंतराधस्सयहेया सयल परदव्वा ।।81|| नोट - इस श्लोक का अर्थ स्पष्ट भासित नहीं है। सयलविभावविरहिदो समदाभावो हु अंतरप्पा जो । णियपरमपारिणामियभावत्तसम्मत्तणाणचरियाणं 182|| एयत्तं गंतूणादारादेयस्सरूवगो जादो । सयमेव णिव्वियारो वियप्परहिदो चिदाणंदो ||83| अन्वय - हु समदाभावो जो अतंरप्पा सयलविभावविरहिदो णियपरमपारिणामियभावत्तसम्मत्तणाणचरियाणं एयत्तं गंतूणादारादेयस्सरूवगो सयमेव णिब्वियारो वियप्परहिदो चिदाणंदो जादो। अर्थ – समता स्वभावी अतंरात्मा भव्य जीव, समस्त विभाव ( 23 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74