Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 19
________________ अर्थ - जिस पुद्गल द्रव्य का छेदना,भेदना और गनः स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना सम्भव है , उसकी बादर-बादर संज्ञा होती है । इस प्रकार आगम में कहा गया है। छेत्तुं भेत्तुमसक्कं जमुवायेणण्णत्थणेदुमवि सक्कं । तंबादरमिदिसण्णा णायव्वा तच्चकुसलेहिं ।।2611 अन्वय – छेत्तुं भेत्तुमसक्कं जमुवायेणण्णत्थणेदुमवि सक्कं तं बादरमिदि सण्णा तच्चकुसलेहिं णायव्वा । __अर्थ - जिन पुद्गलों का छेदना , भेदना अशक्य है। जिन्हें अन्य उपायों के द्वारा अन्यत्र ले जाना शक्य है , उन पुद्गल स्कन्धों की बादर यह संज्ञा तत्त्व में कुशल मनुष्यों को जानना चाहिये । जं छेत्तुं भेत्तुं खलु असक्कमण्णत्थणेदुमवि णो सक्कं । तत्थूलसुहमपुग्गलमिदि णेयं सुत्तजुत्तीहिं ॥27|| अन्वय- सुत्तजुत्तीहिं जं खलु छेत्तुं भेत्तुं असक्कमण्णत्थणेदुमवि णो सक्कं तत्थूलसुहुमपुग्गलमिदि णेयं । अर्थ - सूत्र ज्ञान से युक्त पुरुषों के द्वारा जिन पुद्गल स्कन्धों का निश्चय से छेदना , भेदना अशक्य है तथा एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना अशक्य है , उन पुद्गल स्कन्धों को स्थूल-सूक्ष्म जानना चाहिये। जं चक्खूणमविसयं विसयं सेसिंदियाण-णियमेण । तं सुहुमथूलपुग्गलमिदि णादव्वं जिणोवदेसेण ।।28।। __ अन्वय - जिणोवदेसेण जं चक्खूणमविसयं सेसिंदियाण णियमेण विसयं तं सुहुमथूलपुग्गलमिदि णादव्वं । अर्थ - जिनेन्द्र भगवान के उपदेश से जो पुद्गल स्कन्ध चक्षुरिन्द्रिय के विषय नहीं बनते तथा चक्षुरिन्द्रिय को छोड़कर शेष इन्द्रियों के अर्थात् स्पर्शन, रसना आदि इन्द्रियों के नियम से विषय बनते हैं , उन्हें सूक्ष्म-स्थूल पुद्गल जानना चाहिए । ( 8 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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