Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 22
________________ अर्थ - समय , आवली, उच्छवास, स्तोक, लव, नाली, मुहुर्त, दिन, पक्ष, मास, अयन, वर्ष और युग रूप व्यवहार काल जानना चाहिये। उक्तं च गयं - 3. * "आवलि असंखसमया संखेज्जावलिसमूहमुस्सासो। सत्तुस्सासो थोबो सत्तत्थोबो लबो भणियो।" अर्थ - असंख्यात समयों की एक आवली, संख्यात आवलियों का समूह एक उच्छ्वास, सात उच्छ्वासों का एक स्तोक , सात स्तोकों का एक लव कहा गया है। . (गो. जी. 574) 4. * "अकृत्तीसद्दलवा णाली वेणालिया मुहुत्तं तु। एगसमयेण हीणं भिण्णमुहुत्तं तदो सेसं ॥" अर्थ - अड़तीस लवों की एक नाली , दो नालियों का एक मुहूर्त और मुहूर्त से एक समय कम भिन्नमुहूर्त होता है। इसके आगे दो , तीन, चार आदि समय कम करने से अन्तर्मुहूर्त के भेद होते हैं। (गो. जी. 575) 5. * "ससमयमावलि अवरं समयूणमुहुत्तयं तु उक्कस्सं। मझ्झासंखवियप्पं वियाण अंतोमुहुत्तमिणं ॥" अर्थ - एक समय सहित आवली प्रमाण काल को जघन्य अन्तर्मुहूर्त कहते हैं। एक समय कम मुहूर्त को उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कहते हैं। इन दोनों के मध्य के असंख्यात भेद हैं। उन सब को भी अन्तर्मुहूर्त ही जानना चाहिये। (गो. जी. 576) तीसमुहुत्तं दिण तप्पण्णरसो पक्ख तदुगो मासो। तद्गमुडुतत्तिदयं अयणं तज्जुगलवरिसो दु ।।36।। अन्वय- तीसमुहुत्तं दिण तप्पण्णरसो पक्ख तदुगो मासो तद्गमुडुतत्तिदयं अयणं तज्जुगलवरिसो दु। _ अर्थ - तीस मुहूर्त का एक दिन, पन्द्रह दिनों का एक पक्ष, दो ( 11 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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