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अन्वय - अणुरेगपदेसत्थो वि य बहुखण्डाण ठाण दादुंच सक्कदि उवयारा सो बहुप्पदेसी य कायो य ।
अर्थ - अणु एक प्रदेशी होने पर भी बहुत से खण्डों (स्कन्धों) को स्थान देने में समर्थ होता है, इसलिये वह उपचार से बहुप्रदेशी और कायवान् है।
जं खेत्तं परमाणूओट्टध्दं तं पदेसमिदि भणिदं । सो चिय सव्वाणूणं ठाणं दादुंच सक्कदे णियमा ।।56||
अन्वय - जं खेत्तं परमाणूओट्ठध्दं तं पदेसमिदि भणिदं णियमा सो चिय सव्वाणूणं ठाणं दादुं च सक्कदे ।
अर्थ - जो क्षेत्र परमाणु से घिरा है अर्थात् परमाणु आकाश के जितने क्षेत्र को घेरता है उसको प्रदेश कहा जाता है और नियम से वह प्रदेश समस्त परमाणओं को स्थान देने में समर्थ होता है।
जो पंचासवजुत्तो सो कुणदि सुहासुहाणि कम्माणि । तक्कयसुहदुक्खं पुण पभुंजदे बहुबिहं णियमा ।।57।।
अन्वय - जो पंचासवजुत्तो सो सुहासुहाणि कम्माणि कुगदि पुण तक्कय णियमा बहुविहं सुहदुक्खं पभुंजदे।
अर्थ - जो जीव पाँच आस्रवों से युक्त होता है , वह शुभअशुभ कर्मो को करता है और उन शुभ-अशुभ कर्मों के फल स्वरूप नियम से बहुत प्रकार के सुख-दुःख को भोगता है।
जो अव्वत्तं खाइय-उदयुवसममिस्सभावसंजुत्ता। तह सयलं ................................. ||58||
नोट - गाथा अपूर्ण ही उपलब्ध है। वीदावरणवियारवियप्पो णियपरमपारिणामियभावे । जो वट्टदि परमसुही सो चेव सहावजीवो दु ।।59।।
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