Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 25
________________ रूप) - खंड (भेद रूप), सक्रिय - निष्क्रिय, एकप्रदेशी - बहुप्रदेशी, विभावस्वभाव, व्यापक - अव्यापक और हेय - उपादेय इत्यादि सामान्य और विशेष गुण होते हैं । तेसु य जीवो चेयणमियरा पुण पणमचेयणा णेया । चेदयदीदि ह चेदण हियमहियं जो ण जाणादि ||44|| सो हु अचेयणणामो जीवो मुत्तं तहा अमुत्तं च । कम्मत्तयसंजुत्तो जीवो ववहारदो मुत्तो ||45|| कम्मविरहिदो णिच्चयणयेण सो वि य अमुत्तसण्णो हु । अह ओदइय्युवसमियक्खओवसमियं खु भावं च ॥ 46|| तह अव्वत्तं खाइयभावं च पडुच्च मुत्तणामा य । णियपरमपारिणामियभावं पडि मुत्तिरहिदो य ||47|| अन्वय तेसु य जीवो चेयणं पुण इयरा पणमचेयणा या चेदयदीदि ह चेदण जो हियमहियं ण जाणादि सो ह अचेयणणामो जीवो मुत्तं तहा अमुत्तं च कम्मत्तयसंजुत्तो जीवो ववहारदो मुत्तो णिच्चयणयेण कम्मविरहिदो सो वि य अमुत्तसण्णो हु अह ओदइय्युवसमियक्खओवसमियं खु भावं खाइयभावं पडुच्च मुत्तणामा य अव्वत्तं णियपरमपारिणामियभावं पडि मुत्तिरहिदो य । अर्थ - उन छहों द्रव्यों में जीव चेतन तथा अवशेष अर्थात् जीव को छोड़कर पाँच द्रव्य अचेतन जानना चाहिये । जो चेतता ( जानता, देखता ) है वह चेतन द्रव्य है । जो हित-अहित नहीं जानता है उसे अचेतन जानना चाहिए। वह जीव मूर्त और अमूर्त है । द्रव्यकर्म, भावकर्म और कर्म से संयुक्त है ऐसा जीव व्यवहार नय से मूर्तिक है । निश्चयनय से कर्म से रहित जीव अमूर्त संज्ञक है अथवा औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक तथा क्षायिक भावों की अपेक्षा से जीव मूर्तिक तथा अव्यक्त निज परमपारिणामिक भाव की अपेक्षा अमूर्तिक है। - अह मुत्तो संसारी मुत्तो जीवो सया अमुत्तो हु । पुग्गलमेव हि मुत्तो धम्मचऊ होंति हु अमुत्तो ॥48॥ ( 14 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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