Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 24
________________ अर्थ- इस प्रकार आदि में जो व्यवहार काल संक्षेप से वर्णित किया उसी का विस्तार जिनेन्द्र भगवान के द्वारा निरूपित शास्त्र से जानना चाहिये। तिवियप्पो ववहारो तीदो पुण वट्टमाणगो भावी। तीदो संखेज्जावलिहदसिद्धाणं पमाणं तु॥40। अन्वय - तिवियप्पो ववहारो तीदो वट्टमाणगो भावी पुण तीदो संखेज्जावलिहदसिद्धाणं पमाणं तु । अर्थ- तीन भेद वाला व्यवहार काल-अतीतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल रूप है । अतीत काल संख्यात आवलियों से गुणित सिद्धों के प्रमाण जानना चाहिये। समओ दु वट्टमाणो चेदादो णिहल मुत्तिदव्वादो। भविसो अणंतगुणिदोइदिववहारोहवे कालो।।41|| अन्वय - वट्टमाणो दुसमओ णिहल चेदादो मुत्तिदव्वादो भविसो अणंतगुणिदो इदि ववहारो कालो हवे । अर्थ - वर्तमान काल एक समय प्रमाण है समस्त जीव राशि तथा समस्त मूर्तिक (पुद्गल द्रव्य) से भविष्यत काल अनंत गुना है। इस प्रकार व्यवहार काल का प्रमाण होता है। चेयणमचेयणं तह मुत्तममुत्तं अखंड खंडं च । सक्किरियं णिक्किरियं एयपदेसी बहुप्पदेसीय॥42|| तह य विहावसहावा वावगमव्वावगं च सामण्णं । अह य विसेसो हेयोवादेयगुणा हु दवियाणं ॥431 अन्वय – दवियाणं चेयणमचेयणं तह मुत्तममुत्तं अखंड खंडं च सक्किरियं णिक्किकरयं एयपदेसी बहुप्पदेसी य तह य विहावसहावा वावगमव्वावगं च सामण्णं अह य विसेसो हेयोवादेयगुणा सामण्णं विसेसो। अर्थ - द्रव्यों में चेतन-अचेतन , मूर्त-अमूर्त, अखंड(अभेद ( 13 ) Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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