Book Title: Paramagamsara
Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain
Publisher: Varni Digambar Jain Gurukul Jabalpur

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Page 18
________________ वण्णरसगंधफासणवंतो खलु रूवि लक्खणं एदं । रूवि चलियो णियमा अरूविणो णिच्चला होति ।।22|| अन्वय - खलु वण्णरसगंधफासणवंतो एदं रूवि लक्खणं रूवि णियमा चलियो अरूविणो णिच्चला होति । अर्थ - निश्चय से वर्ण, रस, गंध और स्पर्श यह रूपी द्रव्य अर्थात् पुद्गल द्रव्य का लक्षण है। पुद्गल द्रव्य नियम से क्रियावान् अथवा गमनशील और अरूपी द्रव्य अर्थात् धर्म, अधर्म, आकाश और काल स्थिर या निश्चल होते हैं। वसुधा तोयं छाया चउक्खअविसय कम्म परमाणू। एवं पोग्गलदव्वं छव्विहमिदि आगमुद्दिढ़ 123|| अन्वय - वसुधा तोयं छाया चउक्खअविसय कम्म परमाणू एवं पोग्गलदव्वं छब्बिहमिदि आगमुद्दिटुं । अर्थ - पृथ्वी , जल, छाया, चक्षुइन्द्रिय से अगोचर पदार्थ अर्थात् हवा आदि , कार्मण वर्गणायें और परमाणु इसप्रकार पुद्गल द्रव्य आगम में छह प्रकार का कहा गया है। थूलंथूलं थूलं च थूलसुहुमं च सुहुमथूलं च। सुहुमंच सुहुमसुहमंधरादियं होदि छवियप्पं ।।2411 अन्वय - थूलंथूलं थूलं च थूलसुहुमं च सुहुमथूलं च सुहुमं च सुहुमसुहुमं धरादियं छवियप्पं होदि। __अर्थ - स्थूल -स्थूल ,स्थूल , स्थूल-सूक्ष्म , सूक्ष्म-स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्म-सूक्ष्म इस प्रकार पृथ्वी आदि के छह भेद होते हैं। जं पोग्गलं तु छेत्तुं भेत्तुं चाणत्थणेदुमवि सक्कं । तं बादरबादरमिदि सण्णा होदि त्ति णिद्दिटुं ।।25।। अन्वय -जं पोग्गलं छेत्तुं भेत्तुं च अणत्थणेदुमवि सक्कं तं बादरबादरमिदि सण्णा होदि त्ति णिद्दिढें । ( 7 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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