Book Title: Panchastikaya
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 190
________________ पचास्तिकायः । यदि भवति गमनहेतुराकाशं स्थानकारणं तेषां । प्रसजत्यलोकहा निर्लोकस्य चांतपरिवृद्धिः ॥ ९४ ॥ नाकाशं गतिस्थितिहेतुः लोकालोकसीमव्यवस्थायास्तथोपपत्तेः । यदि गतिस्थित्योराकाशमेव निमित्तमिष्येत्, तदा तस्यं सर्वत्र सद्भावाजीवपुद्गलानां गतिस्थित्योर्निःसीमत्वात् प्रतिक्षणमलोको हीयते । पूर्वं पूर्वं व्यवस्थाप्यमानं श्रांतो लोकस्यो चरोचरपरिवृद्धया विधते । ततो न तत्र तद्धेतुरिति ॥ ९४ ॥ I -- आकाशस्य गतिस्थितिहेतुत्वनिरासव्याख्योपसंहारोऽयम् - ता धमाधम्मा गमणट्टिदिकारणाणि णागास । इदि जिणवरेहिं भणिदं लोग सहावं सुणताणं ॥ ९५ ॥ हैदू गमनहेतुः । किं ? आयासं आकाश, न केवलं गमनहेतुः ठाणकारणं स्थितिकारणं । केषां ? तेसिं तेषां जीवपुद्गलानां । तदा किं दूषणं भवति ? पसयदि प्रसजति प्राप्नोति । सा का ? अलोगहाणी अलोकहानि, न केवलमलोकहानि: लोगस्स य अंतपरिवढी लोकस्य चांतपरिवृद्धिरिति । तद्यथा । यद्याकाशं गतिस्थित्योः कारणं च भवति तदा तस्याकाशस्य लोकबहिर्भागेपि सद्भावात्तत्रापि जीवपुद्गलानां गमनं भवति ततश्वलोकस्य हानिर्भवति लोकांतस्य तु वृद्धिर्भवति न च तथा, तस्मात्कारणात् ज्ञायते नाकाशं स्थितिगत्योः कारणमित्यभिप्राय: ॥ ९४ ॥ अथाकाशस्य गतिस्थितिकारण निराकरणव्याख्यानोपसंहारः कथ्यते; — न जीवपुद्गलों को [ गमनहेतुः ] गमन करनेके लिये सहकारी कारण तथा [ स्थानकारणं ] स्थितिमें सहकारी कारण [ भवति ] हो [ 'तदा' ] तो [ अलोकहानिः ] अलोकाकाश के नाशका [ प्रसजति ] प्रसंग आता है [ च ] और [ लोकस्य ] लोके [ अंतपरिवृद्धिः ] अंतकी ( पूर्णताकी ) वृद्धि होती है । भावार्थआकाश गतिस्थितिका कारण नहीं है, क्योंकि यदि आकाश कारण हो जाय तो लोक अलोककी मर्यादा ( हद्द) नहीं रहेगी अर्थात् सर्वत्र ही जीव पुद्गल को गतिस्थिति हो जायगी । इसलिये लोक - अलोककी मर्यादाका कारण धर्म अधर्म द्रव्य ही है । आकाश द्रव्यमें गतिस्थिति गुणका अभाव है । यदि ऐसा न होता तो अलोकाकाशका अभाव हो जाता और ढोकाकाश असंख्यातप्रदेश प्रमाणवाले धर्म अधर्म द्रव्योंसे अधिक हो जाता अर्थात् समस्त अलोकाकाशमें जीव- पुद्गल फैल जाते । अतएव गतिस्थिति गुण आकाशका नहीं है, किंतु धर्म अधर्म द्रव्यका है। जहां तक ये दोनों द्रव्य अपने असंख्यात प्रदेशोंसे स्थित हैं वहाँ तक लोकाकाश है और वहीं तक गमनस्थिति है ॥ ९४ ॥ आगे आकाशमें गति -स्थितिका कारण गुण नहीं है, सो संक्षेपमें बताते हैं:१ आकाशस्य २ लोकस्यांतो. ३ आकाशे. ४ गमनस्थित्योः कारण न । १० पचा० Jain Education International १५३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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