Book Title: Panchastikaya
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 216
________________ पञ्चास्तिकायः । १७१ चतुरिन्द्रियप्रकारसूचनेयम् - उहंसमसयमक्खियमधुकरभमरा पतंगमादीया । रूप रसं च गंधं फासं पुण ते विजाणति ॥११६॥ ___ उदंशमशकमक्षिकामधुकरीभ्रमराः पतङ्गाद्याः । रूपं रसं च गंधं स्पर्श पुनस्ते विजानन्ति ॥ ११६ ॥ एते स्पर्श नरसनघ्राणचक्षुरिन्द्रियावरणक्षयोपशमात् , श्रोतेन्द्रियावरणोदये नोइन्द्रियावरणोदये च सति, स्पर्शरसगंधवर्णानां परिच्छेत्तारश्चतुरिन्द्रिया अमनसो भवंतीति ॥११६॥ पञ्चेन्द्रियप्रकारसूचनेयम् ;सुरणरणारयतिरिया वण्णरसप्फासगंधसद्दण्हू । जलचरथलचरखचरा बलिया पंचेंदिया जीवा ॥११७॥ सुरनरनारकतिर्यश्चो वर्णरसस्पर्शगंधशब्दज्ञाः । जलचरस्थलचरखचरा बलिनः पञ्चन्द्रिया जीवाः ।। ११७ ।। अथ स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्रेन्द्रियावरणक्षयोपशमात् नोइन्द्रियावरणोदये सति स्पइन्द्रियावरणोदये च सति त्रीन्द्रिया अमनसो भवंतीति सूत्राभिप्रायः ॥ ११५ ॥ अथ चतुरिन्द्रियभेदान् प्रदर्शयति;-उद्देशमशकमझिकामधुकरीभ्रमरपतंगाद्याः कर्तारः स्पर्शरसगंधवर्णान् जानन्ति यतस्ततः कारणाञ्चतुरिन्द्रिया भवन्ति । तद्यथा-निर्विकारस्वपंवेदनवानभाउनोसन्नसु. खसुधारसपानविमुखैः स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुरादिविषयसुखानुभवाभिमुखैबहिरात्मभिर्यदुपार्जितं चतुरिन्द्रियजातिनामकर्म तद्विपाकाधीना तथा वीर्यातरायस्पर्शनरसनघ्राणचक्षुरिन्द्रियावरणक्षयोपशमलाभाव श्रोत्रेन्द्रियावरणोदये नोइन्द्रियावरणोदये च सति चतुरिन्द्रिया अमनसो भवंतीत्यभिप्रायः ॥ ११६ ॥ इति विकलेन्द्रियव्याख्यानमुख्यतया गाथात्रयेण तृतीयस्थलं गतं । पंचेन्द्रियभेदानावेदयति;-सुरनरनारकतिर्यचः चत्वारः वर्णरसगंधस्पर्शशब्दज्ञाः यतः कारणाआवरणका उदय हो तब त्रीन्द्रिय जीव कहे जाते हैं ॥ ११५ ॥ आगे चौइन्द्रियके भेद कहते हैं,-[ उद्द शमशकमक्षिकामधुकरीभ्रमराः पतङ्गाद्याः ] डांस, मच्छर, मक्खी, मधुमक्खी, भँवरा, पतंग आदिक जीव [ रूपं ] रूप [ रसं ] स्वाद [ गंधं ] गंध [ पुनः ] और [ स्पर्श 1 स्पर्शको विजानन्ति ] जानते हैं इस कारण । ते ] . वे निश्चयसे चौइन्द्रिय जीव जानो । भावार्थ-जब इन संसारी जीवोंके स्पर्शन, जीभ, नासिका, नेत्र इन चारों इन्द्रियोंके आवरणका क्षयोपशम एवं कर्णइन्द्रिय और मनके आवरणका उदय हो तब स्पर्श, रस, गंध, वर्ण इन चार विषयोंके ज्ञाता चार इन्द्रियसहित कर्ण और मनसे रहित चौइन्द्रिय जीव होते हैं ॥ ११६ ॥ अब पंचेन्द्रिय जीवोंके भेद कहते हैं-[ सुरनरनारकतियश्चः ] देव, मनुष्य, नारकी और तिर्यच गतिके जीव [ पंचेन्द्रियाः ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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