Book Title: Panchastikaya
Author(s): Kundkundacharya, 
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 233
________________ १९६ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । परिणामो द्रव्यपापस्य निमित्तमात्रत्वेन कारणीभूतत्वात्तदास्रवक्षणार्ध्व भावपापम् पुद्गलस्य कर्तृनिश्चयकर्मतामापनो विशिष्टप्रकृतित्वपरिणामो जीवशुभपरिणामनिमित्तो द्रव्यपुण्यम् । पुनलस्य कर्तृनिश्चयकर्मतामापन्नोऽविशिष्टप्रकृतित्वपरिणामो जीवाऽशुभपरिणामनिमित्तो द्रव्यपापम् । एवं व्यवहारनिश्चयाभ्यामात्मनो मूर्तममूर्तश्च कर्म प्रज्ञापितमिति ॥ १३२ ॥ मूर्तकर्मसमर्थनमेतत् ;जमा कम्मस्स फलं विसयं फासेहिं भुञ्जदे णियदं । जीवेण सुहं दुक्खं तम्हा कम्माणि मुत्चाणि ॥१३३।। विशिष्टः ? पोग्गलमेतो पुद्गलमात्रः कर्मवर्गणायोग्यपुद्गलपिण्डरूपः कम्मत्तणं पत्तो कर्मत्वं द्रव्यकर्मपर्यायं प्राप्त इति । तथाहि-यद्यपि अशुद्धनिश्चयेन जीवेनोपादानकारणभूतेन जनितौ शुभा. शुभपरिणामौ तथाप्यनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण नवतरद्रव्यपुण्यपापद्वयस्य कारणभूतौ यतस्ततः कारणाद्भावपुण्यपापपदार्थों भण्यते । यद्यपि निश्चयेन कर्मवर्गणायोग्यपुद्गलपिण्डजनितौ तथाप्यनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण जीवेन शुभाशुभपरिणामेन जनितौ सद्वेद्यासद्वद्यादिद्रव्यप्रकृतिरूपपुद्गलपिण्डौ द्रव्यपुण्यपापपदार्थो भण्येते चेति सूत्रार्थः ॥ १३२ ।। एवं शुद्धबुद्धकस्वभावशुद्धात्मनः योः ] इन दोनों शुभाशुभ परिणामोंका [ पुद्गलमात्रः भावः ] द्रव्यपिण्डरूप ज्ञानावरणादि परिणाम [ कर्मत्वं ] शुभाशुभ कर्मावस्थाको [प्राप्तः ] प्राप्त हुआ है । भावार्थ-संसारी जीवके शुभअशुभके भेदसे दो प्रकारके परिणाम होते हैं । उन परिणामोंका अशुद्ध निश्चयनयकी अपेक्षा जीव कर्ता है, शुभपरिणाम कर्म है, वही शुभ परिणाम द्रव्यपुण्यका निमित्तत्वसे कारण है। पुण्पुप्रकृतिके योग्य वर्गणा तब होती है जब कि शुभपरिणामका निमित्त मिलता है। इसकारण प्रथम हो भावपुण्य होता है; तत्पश्चात् द्रव्यपुण्य होता है । इसीप्रकार अशुद्ध निश्चयनयकी अपेक्षा जीव कर्ता है, अशुभ परिणाम कर्म है। उसका निमित्त पाकर द्रव्यपाप होता है, इसलिये प्रथम ही भावपाप होता है, तत्पश्चात् द्रव्यपाप होता है । और निश्चयनयकी अपेक्षा पुद्गल कर्ता है, शुभप्रकृति परिणमनरूप द्रव्य पुण्यकर्म है। वह जीवके शुभपरिणामका निमित्त पाकर उपजता है। और निश्चयनयसे पुद्गलद्रव्य कर्ता है। अशुभप्रकृति परिणमनरूप द्रव्य पापकर्म है, जो आत्माके ही अशुभ परिणामोंका निमित्त पाकर उत्पन्न होता है। भावित पुण्यपापका उपादानकारण आत्मा है । द्रव्य पापपुण्यवर्गणा निमित्तमात्र है। द्रव्यसे पुण्यपापका उपादान कारण पुद्गल है। जीवके शुभाशुभ परिणाम निमित्तमात्र हैं। इसप्रकार आत्माके निश्चयनयसे भावित पुण्यपाप अमूर्तीक कर्म हैं और व्यवहारनयसे द्रव्यपुण्यपाप मूर्तीक कर्म हैं ॥ १३२ ॥ आगे मूर्तीक कमका स्वरूप दिखाते १ समीचीनप्रवृत्तयः. २ द्रव्यकर्म-। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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