________________
न्याय - दीपिका
सियोंके लिए संस्कृत भाषामें निबद्ध सुबोध और सम्बद्ध न्यायतत्त्वका सरलता से विशद विवेचन करनेवाली प्रायः यह अकेली रचना है, जो पाठकके हृदयपर अपना सहज प्रभाव अङ्कित करती है । ईसाकी सतरहवीं शताब्दिमें हुए और 'जैनतर्कभाषा' आदि प्रौढ रचनाओं के रचयिता श्वे - ताम्बरीय विद्वान् उपाध्याय यशोविजय जैसे बहुश्रुत भी इसके प्रभावसे प्रभावित हुए हैं । उन्होंने अपनी दार्शनिक रचना जैनतर्कभाषामें न्यायदीपिकाके अनेक स्थलोंको ज्योंका त्यों आनुपूर्वीके साथ अपना लिया है' । स्तुतः न्यायदीपिकामें जिस खूबी के साथ संक्षेपमें प्रमाण और नयका स्पष्ट वर्णन किया गया है वह अपनी खास विशेषता रखता है । और लिए यह संक्षिप्त कृति भी न्यायस्वरूप जिज्ञासुनोंके लिये बड़े महत्व र ग्राकर्षणकी प्रिय वस्तु बन गई है । अतः न्यायदीपिका के सम्बन्ध में नाही कहना पर्याप्त है कि वह जैनन्यायके प्रथम श्रेणी में रखे जाने वाले ोंमें स्थान पाने के सर्वथा योग्य है ।
नामकरण
पलब्ध ऐतिह्यसामग्री और चिन्तनपरसे मालूम होता है कि दर्शन। रचनायुगमें दार्शनिक ग्रन्थ, चाहे वे जनेतर हों या जैन हों, प्रायः शब्दके साथ रचे जाते थे । जैसे न्यायदर्शनमें न्यायसूत्र न्याय
न्यायमंजरी, न्यायकलिका, न्यायसार, न्यायकुसुमाञ्जलि और नावती आदि, बौद्धदर्शनमें न्याय-प्रवेश, न्याय-मुख, न्याय-बिन्दु र जैनदर्शनमें न्यायावतार, न्यायविनिश्चय, न्याय कुमुदचन्द्र आदि हैं। पार्थसारथिकी शास्त्रदीपिका जैसे दीपिकान्त ग्रन्थोंके भी र समय पद्धति रही है । सम्भवतः अभिनव धर्मभूषणने इन ष्टमें रखकर ही अपनी प्रस्तुत कृतिका नाम' न्यायदीपिका रक्खा
उस
े, जैनतर्कभाषा पृ० १३, १४-१६, १७ ।