Book Title: Niti Shatak Satik Author(s): Bhartuhari Publisher: View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भनी पवहारयेत् एतेअपरिता दृष्टांताः कालेनमाविष्यतिपरंतु प्रनिनिविष्ट आविरचित्तःस नयक्तिचितमनसितंनत्यजति कस्यापिवचनंनभृणोति तस्य मूरवस्यचित्तुमाराधितुंन| शक्यंज्ञानापिआविष्टचित्तःसन्यत्किंचित्करोतिस्वहितंनजानातिसोपिमूरर्वोतःपातिरेवया भुजंगमपिकोपितंशिरसिपुष्पवदारयेन्नतुप्रतिनिविष्टमूरर्वजनपित्तमारा धयेत् 4 लभेचसिकतासतेलमपियत्नतःपीडयपिबेञ्चमृगणिकासु सलिलंपिपासादितः थारावणदुर्योधनादयः 4 लमेदिति सिकतासवालुकासुनै लंयत्नतः प्रयासेनपीडयन् सन् कदाचिलभेत् तथाच पातःसनमृगाष्णिकाससलिलक दाचित्पिबेत् कदाचित् पृथ्वी पर्यटन्सनशशस्यविषाणंशंगं प्राप्नुयात् एवमपरितघरनं For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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