Book Title: Niti Shatak Satik
Author(s): Bhartuhari
Publisher: 

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भवै विकेनि तृषा तृष्णाशमे उपशमेसनि शाम्यान उपशमं गच्छानि कमानिविषकन्याकोशोरिका / / 10 शेसनिसापरिणनिः तृष्णापरिणामः तुंगे परिषंगे आश्लेषेसतिषसरनियुक्तोऽयमर्थः अ परापियाविलासिनी भपनि सातुंगेपरिष्वंगेसनितरां पसरनिननुयामि भनेन लव्यावकाश तृष्णाधिकारमाह विवेकच्याकोशेषिधनिशमेशाम्यतिन्पापरिमंगेतुंगे प्रसनितरांसापरिणतिः राजीर्णचर्ययसनगहनाक्षेपरुपणस्तृषापात्रं यस्यांभवनिमरुनामप्यधिपतिः 10 वात् नया सातृष्णापि मरुनांदेवानामप्यपि निःइंद्रः यस्यां तृष्णायांतृपापात्रं भवनि तुगेपरिषगेछेत्तुमशक्तोभवति इत्यर्थ:मनुनानांनुकाकवा किंविशिष्ठोमानामधिपतिःजराजानुपर्ययसनगहनाक्षेपकपणःजराजीर्णोपर्यतस्पग्रसनेना यदइन तस्यआक्षेपेकपणः विक्षसेअसमर्थ:अतःकारणात तणा गरीयसी 17 For Private and Personal Use Only

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