Book Title: Nirayavalika Sutram
Author(s): Ghasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 414
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org सुन्दरबोधिनी टीका वर्ग ३ अध्य. ६ माणिभद्र देव ३९१ भद्दसि सीहासांसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं जंहा पुष्णभद्दो, हेव आगमणं, नट्टविही, पुच्वभवपुच्छा, मणिवया नयरी, माणिभद्दे गाहा वई, थेराणं अंतिए पव्वज्जा, एक्कारस अंगाई अहिज्जर, बहूई वासाई परियाओ, मासिया संलेहणा, सहि भत्ताई०, माणिभद्दे विमाणे उबवाओ, दोसागरोवमा ठिई, महाविदेहे वासे सिज्झिहि । एवं खलु जंबू ! निक्खेओ ॥ ॥ छ्टुं अज्झयणं समत्तं ॥ ६ ॥ देवः सभायां सुधर्मायां माणिभद्रे सिंहासने चतुर्भिः सामानिकसहस्त्र यवित् पूर्ण भद्रस्तथैवाऽऽगमनं, नाव्यविधिः, पूर्वभवपृच्छा, मणिपदा नगरी, माणिभद्रो गाथापतिः, स्थविराणामन्तिके प्रव्रज्या, एकादशाङ्गानि अधीते, बहूनि वर्षाणि पर्यायः, मासिकी संलेखना, षष्टिं भक्तानि०, माणिभद्रे विमाने उपपातः, द्विसागरोपमा स्थितिः, महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति । एवं खलु जम्बूः ! निक्षेपकः ॥ १ ॥ ॥ इति षष्ठाध्ययनं समाप्तम् ॥ ६ ॥ 4 'जइणं भंते ' इत्यादि -- टीका - व्याख्या स्पष्टा ॥ १ ॥ छठा अध्ययन. • Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4 जणं भंते ' इत्यादिजम्बूस्वामी पूछते हैं हे भदन्त ! मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान महावीरने पाँचवें अध्ययनका 3 અધ્યયન, ' जइणं भंते ઇત્યાદિ भ्यू स्वाभी पूछे छे:-- હૈ ભદન્ત ! મેક્ષ પ્રાપ્ત શ્રમણ ભગવાન મહાવીર પાંચમાં અધ્યયનના For Private and Personal Use Only

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