Book Title: Nirayavalika Sutram
Author(s): Ghasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 469
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५ वृदिशा सूत्र सुचलीकरणं स एव दन्तवर्णकः, अशुलिदन्तशाणकाष्ठादिभिर्दन्त घर्षणं, म दन्तवर्णकोऽदन्तवर्णकः = दन्तोज्ज्वलीकरणव्यापारराहित्यम् | अच्छत्रकः = छत्ररहितः । अनुपानत्कः = पादत्राणरहितः, उपलक्षणमेतत्-शकटशिविकातुरगादिवाहनानामपि, फलकशय्यां = फलकं = प्रतलमायतकाष्ठं तद्रुपा शय्या (पाटा) इति भाषायाम् । काष्ठशय्या काष्ठं स्थूलमायतमेव तद्रूपा शय्या केशलोच: = स्वपरहस्तेन केशोत्पाटनम् । ब्रह्मचर्यवासः - ब्रह्मचर्ये - विषयसुखत्यागे वसनं ब्रह्मचर्यवासः । परगृहप्रवेशः = भिक्षाद्यर्थमन्यगृहप्रवेशः । पिण्डपातः = भिक्षा अदन्तवर्णक = अङ्गुलि दातन आदिसे दांतोंको स्वच्छ न करना और मिसी आदिसे दांतको न रंगना, अच्छत्र = रजोहरण आदिका भी छत्र धारण नहीं करना, अनुपानत्क= पगरखी तथा मौजे आदिको नहीं पहिनना, एवं गाडी शिबिका और घोडा आदिकी सवारी नहीं करना, फलकशय्या = काष्ठ आदिके पाटपर सोना, काष्ठशय्या = काष्ठपर सोना, केशलोच-अपने या दूसरे साधुओंके हाथसे केशोंका लुंचन करना - कराना । ब्रह्मचर्यवास - विषय सुख परित्याग रूप ब्रह्मचर्यमें स्थिर होना, परगृहप्रवेश= भिक्षा के लिए गृहस्थोंके घर में जाना, पिण्डपात - भिक्षाग्रहण, लब्धापलब्ध वर्णन ( न नहावु ), अदन्तवर्णक = मशुसि दन्तशाण= |ष्ट ( साउडु ) सहिथी हांताने स्वच्छ न १२वा तथा भीशी माहिथी हांतने न रंगवा. अच्छत्र=रनेषु આદિનું પણ છત્ર ધારણ नं. ४२, अनुपानत्क=परम અને માજા આદિ પગમાં ન પહેરવાં, વળી ગાડી પાલખી અને ઘેાડા આદિની સવારી ન કરવી, फळकशय्या=साठठानी ( अष्टनी मनावेली ) पार्ट पर सुवुं, काष्ठशय्या= साडी पर सुवुं, केशलोच= पोताना डे मील साधुमोना हाथथी शोनु सुंथन ४२-४राववु, ब्रह्मचर्यवास विषयसुभ परित्याग३यी प्राथर्य मां स्थिर रहे, परगृहप्रवेश = लिक्षा भाटे गृहस्थाना घरभां भवु, पिण्डपात निक्षाथहायु, लन्धापलब्ध =सान तेभन गेरसाल, For Private and Personal Use Only

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