Book Title: Nirayavalika Sutram
Author(s): Ghasilalji Maharaj, Kanhaiyalalji Maharaj
Publisher: Jain Shastroddhar Samiti

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Page 477
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४५४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साध्वी श्रीपार्वतीबाई, श्रीहेमकुमरा ऽभिधा । वैयावृत्यैकशीला श्री, सम्झनाई महासती ॥ ९ ॥ ५ वृष्णिदशा सूत्र वांकानेर पुरस्थ एष परमोदारो महाधार्मिकः, शुद्धस्थानकवासिधर्मनिरतः सम्यक्त्वभावान्वितः । तत्त्वातत्त्वपयोविवेचनविधौ हंसायमानः सदा, सर्वेषामुपकारको विजयते श्री जैनसंघो महान् ॥ १० ॥ तथा महासती श्री पार्वतीबाई स्वामी और महासती श्री हेमकुंवरबाई स्वामी एवं सेवाभावी महासती श्री सम्भूबाई स्वामी यहाँ तीन ठाणों से विराजती हैं ॥ ९ ॥ वांकानेरका यह परम उदार महाधार्मिक श्री जैनसंघ सदा विजयशाली है । यह जैनसंघ शुद्ध स्थानकवासी धर्म में निरत है तथा सम्यक्त्वभावसे युक्त है, एवं तत्व और अतत्त्व रूपी दुग्ध और जलके विवेचन में हंसके समान है, और यह संघ सभी प्राणियों का हितकारक है ॥ १० ॥ महासती श्री पार्वतीबाई स्वामी तथा श्री हेमकुंवरबाई स्वामी भने सेवापरायशु श्री समजुबाई स्वामी मंडीं गिराने छे. (८). For Private and Personal Use Only વાંકાનેરના આ પરમ ઉદાર મહાધાર્મિક શ્રો જૈનસંઘ સત્તા વિજયશાળી છે. આ જૈનબંધ શુદ્ધ સ્થાનકવાસી ધર્મમાં નિરત છે તથા સમ્યસૂત્વ ભાવથી યુક્ત છે. અર્થાત્ તત્ત્વ અને અતત્ત્વરૂપી દૂધ અને પાણીના વિવેચનમાં હુંસ સમાન છે. અને આ સંઘ સર્વ પ્રાણીઓના હિતકારક છે. (૧૦).

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