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सुन्दबोधिनी टोका शाम प्रशारित
गुणाभिरामो गुमसम्प्रचारे, सदाऽविरामो निहलमा । सुत्यक्तरामोऽपि विभाति नाम्ना, रामो मुनिः केवल इत्ययं च ॥ ७ ॥ प्रवर्तिनी झाकलबाइनाम्नी, श्रीजीकुमारेति सतोतरा च । सन्तोकवाईति परा सती च, तिस्रोऽप्यजस्रं दधते व्रतित्वम् ॥ ८॥
और दूसरे मुनि जो कि गुणोंसे अभिराम ( सुन्दर ) हैं तथा गुणोंके प्रचारमें सर्वदा लगे रहते हैं और जिन्होंने सभी सांसारिक कामनाओंका त्याग कर दिया है इस प्रकारके यह मुनिराज सुत्यकराम ( रामा रोके त्यागी) होनेपर भी 'राम' इस नामसे प्रसिद्ध हैं। और तीसरे विद्यार्थी केवल मुनि हैं ॥ ७ ॥
अघ महासतियों के नाम कहते हैं
यहाँ पर ये महासतिया सर्वदा पञ्चमहाव्रतको धारण करती हुई विचर रही हैं, इनमें प्रथम महासतीका नाम प्रवर्तिनी श्री झाकलबाई स्वामी है, दूसरी महासतीका नाम श्री श्रीजी कुँवरवाई स्थामी है, तथा तीसरी महासतीका नाम श्री सन्तोकबाई स्वामी है। ये तीन ठाणों से स्थिरवास विराजती हैं ॥ ८ ॥
વળી બીજા મુનિ કે જે ગુણે વડે અભિરામ (સુન્દર) છે તથા ગુણેના પ્રચારમાં સર્વદા મંડયા રહે છે તથા જેમણે સાંસારિક બધી કામનાઓને ત્યાગ
थे छ वा मुनि सुत्यक्तराम राम (सी) ने छीन ५५ 'राम' माi नामयी शमी २ छ. अर्थात् lon २५ मुनि छे. alon केवळमुनि छ. (७). .
હવે મહાસતીઓનાં નામ કહે છે –
અહીં સાધ્વીઓ હમેશાં પાંચ મહાવ્રત ધારણ કરતી વિચરે છે. તેમાં પ્રથમ મહાસતીનું નામ પ્રવર્તિની શાસ્ત્રાર્જ સારી છે. બીજી સતીનું નામ भोजोकुंवरबाई स्वामी तथा श्री सतीनुनम भोसंतोकबाई स्वामी छे. मात्र था स्थिपास निराले छे. (८).
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