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श्री नवकार महामंत्र-कल्प पसो पञ्च मुज मङ्गलं, एसो पञ्च मुज देवयं ॥ एसो पश्चिति कित्तइस्लामि, वोसिरामित्ति पावगं ||५||
इसके अतिरिक्त चन्द्रपन्नत्तिमें प्रथम गाथा मङ्गलाचरण रूप इस तरह प्रतिपादित है, जिसको भी प्राचीन नवकार ही कहते हैं। नमिऊण असुरसुरगरुलभुयगपरिवन्दियं ॥ गय किलेस अरिहेसिद्धा आयरियउवझायसव्वसाहू य १
इसी तरह और सूत्रोंमें भी बयान आता है, जिज्ञासुओंको जाननेकी कोशीस करना चाहिए।
और इस महामंत्र पर सम्पूर्ण श्रद्धा रखना चाहिए इस प्रकरणमें प्राचीन शास्त्रोंकी साक्षी और परम्परागत व आत्मविश्वासका थोडासा वयान आ गया है जो आदरणीय है।
अशुद्धोचार प्रकरण
धर्मसूत्र-सिद्धान्त मंत्र-स्तोत्र-स्मरण तो वे ही इस समय हैं कि जो प्राचीन कालमें थे। और जिनके प्रभावसे महान् कार्य सिद्ध होने के उदाहरण मिलते हैं। जवके मंत्र स्तोत्र जाप स्मरण वे ही हैं, और उनके अधिष्ठाता देव भी विद्यमान हैं तो इस समयमें