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प्रणवादार ध्यान
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॥ चार शरण मंगल मंत्र ||
अरिहन्त सिद्ध साह केवलिपन्नतो धम्मो ॥ चार शरण, चार मगल चार लोकोत्तमका यह जाप है जिसका अव्यग्रमनसे जाप किया जाप तो कर्मक्षय हो जाते हैं ।
प्रणवाक्षर ध्यान
मणव अक्षर ॐ को कहते है, मन सङ्कलनामें ऐसा मंत्र नही मिलेगा कि जिसमें ॐ का समावेश न हो यह मनका जीवन है माण है इसका ध्यान करनेके लिए शास्त्रमें बयान आता है कि हृदयकमलमें निवास करनेवाला शब्द जो ब्रह्मके कारण रूप स्वर व्यञ्जन सहित परमेष्टिपदका वाचक है और मस्तक रही हुई चद्रासे झरते हुए अमृतरससे भींजे हुवे महामंत्र मणव अर्थात् ॥ ॐ ॥ का कुम्भकसे चितवन करना, और स्तम्भन करनेमें पीला, वशीकरण कर नेमें लाल, क्षोभ करनेमें परवालेकी कान्ति जैसा, विद्वेपमें काला और कर्मका पाठ करनेमें चन्द्रकी कान्ति जैसा ॐकारको ध्यान करना चाहिए। चीन