Book Title: Navkar Mahamantra Kalp
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori

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Page 111
________________ रपस्थ ध्येय स्वरुप १०३ और सर्व प्रकार के कर्मका नाश करनेमें जो समर्थ हैं, जिनके चारो ओरसे मुखके दर्शन होते है, तीनलोकके जीवोंको अभयदान देनेकी शक्तिवाले, तीनमण्डल जैसे तीन श्वेत छत्र सहित शोभायमान, जिनके पीछे सूर्यको भी विटम्बना करता हुवा भामण्डल झगझगाट कर रहा है, जहा पर दिव्य देवदुन्दुभिके सुहावने नाद - गीतगान के साम्राज्य - सम्पतिधाळे, भ्रमर शब्दोके झङ्कारसे वाचाल अशोक वृक्षके शोभायमान समोसरण में सिंहासन पर विराजमान हैं, जिनके उपर चँवर ढल रहे है, सुरासुर नमस्कार करते हैं, रत्नजडित मुकुट कुण्डलकी क्रान्तिसे नमस्कार-चरणवन्दन के समय पावके नखकी दीप्त कान्तिवाले, दिव्य पुप्प समूहसे व्याप्त विशाल परिषद भूमि जहा विश्रमान है, इस तरहका सुन्दर, रमणीय, सुहावना स्थान है, जहा पर मृग, सिंह, गाय, आदि तिर्यञ्च - हिन्सक प्राणी भी निजके स्वभानिक जातिवैर भावको छोडकर समवसरण में बैठते हैं ऐसे अतिशय वाले केवलज्ञानसे प्रकाशमान अरिहन्त भगवन्तके रुपका आल म्वन छेकर ध्यान करना उसी को स्पस्थ ध्यान कहते हैं ।

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