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रुपातीत ध्येय स्वरूप ध्यान मुश्किल बात नहीं है। जिन महानुभावको अनन्त मुखकी अभिलाषा है उन्हें यह व्यान अवश्य करना चाहिए।
सपातीत ध्येय स्वरुप
यह तो अलौफिक ध्यान है, अमूर्त, सचिदानन्द स्वरुप निरञ्जन सिद्ध परमात्माका ध्यान जो निराफार, रुपरहित निसको रुपातीत कहते हैं । ___ रुपावीत व्यान बहुत उच्च कोटिका है ।जो पुरप सिद्ध (सरप) भगवानका आलम्बन लेकर इस ध्यानको फरते हैं, उनको योगी ग्राह्य, ग्राहक भावरहित तन्मयता प्राप्त होती है। और अनन्य धारणी होकर तन्मय हो लयलीन हो जाते हैं, जिससे यानी और ध्यानके अभावसे ध्येयके साथ एकरपदा प्राप्त करलेते हैं । जो पुरुप इस तरह एकरुपतामे लीन हो जाते हैं उसीको नासमरसीभाव कहते है। जिसकी एकीकरण, जमेदपन, माना है। इस तरहसे जो आत्मा अभिनतासे परमात्माके विपे लयलीन होता है उसीके कार्यके सिद्धि होती है।