Book Title: Navkar Mahamantra Kalp
Author(s): Chandanmal Nagori
Publisher: Chandanmal Nagori
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ise Homhdwww.A-R ॥ श्री वीतरागाय नी पुष्प श्री नवकार महामंत्र - कल्प APDI M जिसमें 3 नवकार के मात्रका संग्रह है सम्पादक-प्रकाशक चदनमलजी नागोरी पोष्ट छोटी सादडी (मेन) 卐 प्रकाशक चदनमल नागोरी जैनपुस्तकालय पोट-छोटी सादडी (मेवाड) संवत् १९९९ तीसरी आवृत्ति की शा ई सन् १९४२ 399985 Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक: जैन साहित्य सदन पो. छोटी सादडी (मेवाड) सम्पादकने सर्व हक्क स्वाधीन रखा है लाइन. शुद्धिपत्र अशुद्ध विनयरीन रो रहा है कर्मयाग विनयहीन हो रहा है कर्मवोग س है س ة ه م س م ७८८ ७२४ नौटका नौदफा तर्जनीके नीचेका, चोथा मध्यमाके नीचे पाचवां अ -नामिकाके नीचे मावे पावे इक्रीस इक्कीस पीता पीडा पीडा षोडशा जाप जाय पाथवी पार्थिवी मुद्रक: शाह मणीलाल छगनलाल नवप्रभात प्रीन्टींग प्रेस घीकांटारोड अहमदाबाद. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सद्गत आचार्यचर्यश्री विजयनीतिमरिजी महाराज ना ... 7 -RE अति पाकी यादगार म यह पुप्पाजरी म्याम म्बीगार करियेगा मगाना Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीमान् कल्याणदास नारायणदास ट्रस्ट फड. इस फढसे विशेष करके सिधांते क्षेत्रमें प्रतिवर्षकी आवक से खर्चा किया जाता है इस वर्ष ज्ञान साठे सर्च करनेका इरादा श्रीयुत भाइचदभाई मोतीचंद भादोल वालोंको प्रेरणा हुवा इस समय इस ट्रस्टके ट्रस्टी साहब (1) श्री भाइचदभाई मोतीचंद भादोरवाले (२) रमणलाल देवचद ओल्पाडवाले (३) 31 ( ४ ), हैं, मेम्बरोंको सभामें भाइचदभाईकी खास प्रेरणा से यह प्रस्ताव रखा गया कि श्री नवकार महामन कल्पकी तीसरी आरति प्रकाशित होती है उसमें सहायता देकर काफी तायदाद में नकले पुज्यपाद मुनिमहाराज ज्ञानभंडार आदिको सेवामें मेट दी जाय। भाईचदभाई धर्मिष्ट प्रवृत्ति वाले तपस्वी वयोद्ध और सज्जन आत्मा है इनके प्रति ट्रस्टीयोंको भी मान है अत दरख्वास्त मजूर की गई । इस लिये चारों ट्रस्टो साइयोंको धन्यवाद है, खास कर भाईचदभाई जिन्होंने ऋपिमंडल स्तोन- भावार्थं नामक पुस्तक पट कर परिचय बढाया और इसका ध्यान करनेके अभ्यासी होकर छे महिनेसे आय बिटको तपस्या कर ध्यान कर रहे हैं व ध्यानमें गति चढ़ा रहे हैं इस लिए इनकी यह किया प्रशसनिय व धन्यवादके पान है। इनको इस ध्यानके प्रभावसे शांति प्रदान हो यही अवरेच्छा है । इस पुस्तक के प्रकाशनका श्रेय उस अमर आत्मा है कि जिनको कमाइसे यह टस्ट बना है और अमर नाम कर गए हैं अस्तु । ठी प्रकाशक. 27 गमनलाल रुपचंद ओपाठवाले चीमनलाल सुबचद सूरतवाले Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विश्चित् वक्तव्य श्रीनवकार महामंत्र कल्पको तीसरी आवृत्ति I पाठकों के सामने रखते हुवे हर्ष होता है । जैन समाजने प्राचीन प्रथका संग्रह जिस प्रकार किया था उतने प्रमाण में रक्षा नही हो सकी जिससे बहुतसा साहित्य लोप हो गया है। फिर भी जो कुछ बचा है वह कम नही हैं, इस समय जो प्राचीन भण्डार देखने में आते हैं उनको भव भी रक्षित रखे जांय तो जैन समाजका गौरव है । यह नवकार महामंत्र कल्प हमें एक भण्डारमेंसे प्राप्त हुवा था जिसका वृत्तान्त प्रथम प्रकाशन में दिया गया है, इस कल्प पर स्वाभाविक ही प्रेम होनेसे सम्वत् १९९० के कार्तिकी पूनमको प्रथम आवृतिका प्रकाशन हुवा और इतनी जल्दी पुस्तकें खतम हो गई कि दूसरी आवृत्तिका प्रकाशन १९९१ वैशाख सुदी १ अर्थात् साडे पांच महिने बाद ही कराना पडा इन प्रकाशनमें हमारा नया साहसथा और कुछ जल्दी भी थी इस लिए अशुद्धियां रहजाना संभव था । प्रथम आवृत्ति शेठ कुवरजीभाई आनन्दजी भावनगर वालोंकी सेवामे भेजी गई और आपने जहां जहां अशुद्धियां देखी सुधार कर कापी वापस भेजी लेकिन उसके आनेते पेशतर दुसरी आवृत्तिका प्रकाशन हो चुका था इस लिए अशुद्धियां नहीं सुधार सके । लेकिन जब जब पुस्तक हाथमें आती थी शेठ कुंवरजीभाईकी याद आ जाती और अब तक वे अशुद्धियां अखरती रही, दरम्यानमें ऋषिमंडल स्तोत्र भावार्थ -- नामकी पुस्तक के प्रकाशनमें लग जानेसे व और भी अनिवार्य संजोगसे प्रकाशन नही हो सका । इस तीसरी आवृत्तिमें शेठ कुंवरजीभाईकी आज्ञाके मुवाफिक सुधार किया गया है, फिर भी सम्भव है अशुद्धियां रह गई हों तो पाठक सुधार कर पढें । इस विषयमें कुंवरजीभाइके हम अत्यंत आभारी है । Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तरीकेके मुवाधिक पहली व दूसरी भारत्तिकी प्रस्तावना इस आवृत्तिमें छपवाना चाहिए था लेकिन कागज को बन्चन करनेके लिए प्रस्तावना नही छपाई, दूसरी आवृत्ति (1) नवकार मनका छद (1) नवकार छद, (३) द्ध नवकार छपवाया था, लेकिन यह और पुस्तकोंमें भी छप चुके है इस लिए इस आत्तिने नही छपवाए हैं। 1 चिन पहली व दूसरी आवृत्तिनें छपवाए थे उतनेही इसमें t, cert as, or यत्र समोमरण पर ध्यान और आसनके अलग अलग चित्र लगभग पन्द्रह और दाखिल करनेका इरादा था लेकिन मंहगाई और कागजको कम मिलगतसे यह भावना स्थगित गई है । यह चित्र प्रगट हो जाते तो ध्यान करनेमें Erraat सहायता मिलता । (६) अारके पाच विभाग वाली योजनासे यह बताना था कि इन पाच नम्बरोंके चिनसे कोनसे नम्बरों द्वारा कोनसा अक्षर बनता है, लेकिन इस पृष्ट सख्या घट जानेसे इस आत्तिनें दाखिल नहीं की है, और सिर्फ (इ) के विभाचित्र दे दिया है जो पहली-दुसरी आवृत्ति नही था । इस पुस्तक रम सामग्री दूसरे अन्योंसे ले हुई है इसमें मेरा तो सिर्फ एक करनेका प्रयत्न भाग है अत इस विषयका सारा श्रेय उन अन्यकारों व प्रकाशकों को है कि जिनके नाम अन्यन प्रगट किये गये है । " मु अहमदाबाद वैद्यान शुक्र १५ गुरुवार संवत् १९९८ सा. ३० अप्रैल १९४२ भवदीय चदनमल नागोरी छोटी सादडी (वाट) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर्याप्त पुस्तकें १ ऋषिमडल स्रोत्र-भावार्थ विधि-विधान आमना सहित साथमै २३ इंचका यत्रभी है तीन रंगके चित्रोवाला को. १॥ २ केसरियाजी तीर्थका इतिहास सचिन जिसमें पट्टे परवाने शिलालेख आदिसे सिद्ध किया गया है कि तीर्थश्वेताम्वर है. ०॥ 3 वस्त्रवर्णसिद्धि जिसमें १०० पाठ सूत्रोके देकर भावार्थ किया है. ०॥ ४ जेसलमेरमें चमत्कार ऐतिहासिक पांच कथाए है. ५ चतुररंभा और कामीभरतार अध्यात्मिक एक वार्ता है न ) ६ दुवौषधिदुख इसको पढनेसे आत्माकी स्थिति मालूम होगा ) ७ जातिगगा-ज्ञातिको उपयोगिता सिद्ध की गई है ८ मेवाडके नवयुवको प्रति संदेश ९ चैत्यवन्दण रहस्य जिसमें २४ द्वार दशत्रिकके ३० भेद २०७४ भेदानुभेद आदिका वर्णन है. वाल युवक वृद्धको समान उपयोगी है. पाठशालामें चलाने योग्य है ) प्रकाशिक होनेवाली पुस्तकें १ लोगस्सकल्प अति उत्तम और देखने योग्य है की. ॥) २ स्नात्रपूजा अर्थ सहित इसको पढने बाद पूजामें अपूर्व आनद आवेगा घरघरमें रखने लायक है। को.) ३ गृहस्थधर्म यह तो प्राचीन ग्रंथ हैं श्री कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्रसूरिजी महाराज रचित्त है, बाल, युवा, युद्ध सबके लिए एकसा उपयोगी है पढनेसे उत्तमता मालूम होगा की. om ४ यंत्रनिधि जिसमें विजय पताका, वर्धमान पताका, जय पताका आदि बहुतसे यन्नविधि विधान आमना सहित दरज होंगे ___ की १५) पोष्ट खर्च अलग हैं। प्राप्तिस्थान सद्गुण प्रसारक मित्रमंडल पो. छोटी सादडी (मेवाड) Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका नबर नाम पृष्ट नंवर नाम पृष्ट १ मत्रमहिमा प्रकरण १६ श्री नरकार महामत्र २ नवपद् प्रकरण कल्प ४५ ९ ३ अशुद्धोवार प्रकरण १०१७ मपावाक्षर ध्यान । नवाद प्रकरण २९ १८ होकार ध्यान १ ५ माला प्रकरण २५/११९ ध्यान प्रकरण ६ आवर्त प्रकरण २८२० ध्याता-पुरुपकी ७ शखावर्त प्रकरपा ३० योगता ८८ ८ नन्दावर्त प्रकरण ३१ २२ पिण्डस्थ ध्येय स्वरुप८९ ९ वर्त प्रकरण ३१ २२ पदस्थ प्येय स्वरुप ९३ १० दूसरा चर्स प्रकरण ३३/ २३ रुपस्थ ध्येय स्वरूप१०२ ११ नवपद आवर्त प्रकरण ३४ २४ रुपातीत ध्येय स्वरुप १२ होगः प्रकरण ३५) २५ धर्मध्यान प्रकरण १०६ १३ पटनावर्त प्रकरण ३७, २६ विधि विधान १४ सिद्धापर्त प्रकरण ३८ प्रकरण १०८ १५ भासन प्रकरण ३९ २७ मत्रसूची नवर चित्रसूची पृष्ट नवर चित्रसूची पृष्ट १ आचार्य महाराज वर्त (२), ॥ ३३ २ स्वस्तिक, २४ जिन ,९ नवपद आवत ३ नवपद मडल १० वीवत , ४ आवच गिननेका चित्र २८/११ सिद्धावर्त , ३८ ५ शवावर्ग , , ३०/१२ मे २४ जिन ६ नदावत , ,३११३ में पचपरमेष्टि ७९ ७ ऊँव (१), ३१४ ही में चोवीसजिन ८१ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आभार प्रकाशनमें जिन पुस्तकोंसे सहारा लिया गया है। उनके कर्ता व प्रकाशकको धन्यवाद देते हुवे नामावली प्रगट करते हैं । १ आवश्यक सूत्र २ भगवती सूत्र ३ महानिशीथ सूत्र ४ श्रमण सूत्र ५ कल्प सूत्र ६ व्यवहार भाष्य ७ चन्द्रप्रशप्ति ८ पट् पुरुष चरित्र ९ प्रतिष्ठा कल्य पद्धति १० श्रीनवकार कल्प ११ योगशास्त्र १२ आचार दिनकर | १३ धर्म बिंदु १४ श्राद्धविधि १५ प्रियंकर चरित्र ९६ योग विंशिका १७ गौतम रास १८ जैन तत्त्वादर्श १९ पंच प्रतिक्रमण २० चौदह पूर्वाधिकार २१ श्रीपाल रास २२ नवस्मरण २३ अध्यात्म कल्पद्रुम २४ विवेक विलास Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . . . . स्वस्तिकमें चोवीस जिन स्थापना Here KRISHNA PRATANPOLE AHMEDABAD Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ ॐ नम सिद्धेभ्य ।। श्री नवकार महामंत्र-कल्प मत्रमहिमा प्रकरण उपरोक्त मत्र-नवकार मनके नामसे जैनशासनमें प्रसिद्ध है, इसकी महिमा पारावार है, और जैन धर्ममें जितनी भी क्रिया व्रत नियम सयम ध्यान समाधी वताई गई है उन सबमें इस मनकी जरुरत होती है स्मरण जप ध्यान करने के लिए मत्र, स्तोत्र, और स्तवन यह तीन बातें प्रसिद्ध है। मत्रका नाम जिस जगह आता है भ्याता पुरुष समझता है कि इसमें चमत्कार जरुर है, मत्रमें अक्षर थोडे होते है लेकिन प्रणवाक्षर मायावीज आदि सहित जिनमें यथाक्रमानुसार योजना होती है और उस मत्रके अधिष्ठाता देव होते हैं वही स्मरण करनेवालेकी भावनाको पूरी करते हैं। मनुप्यको निजकी भावनाएं पूर्ण करनेमें एक देवकी सहायता मिल जाती है इसी लिए मनुप्य मत्र द्वारा अपनी कार्य सिद्धिके लिए Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र-कल्प सहायक ढूंढता है, मंत्रसे यथाविधि जाप करनेपर अधिष्टायक देव आकर्षक होते हैं, इसी लिए मंत्रका नाम सुनतेही चमत्कार दीखता है और मनुष्य आराधना करता है। स्तोत्र पाठमें महिमाका वर्णन होता है जिससे देवकी शक्ति कला प्रतिभा जाननेमें आती है और इतना जाननेसे देवके प्रति प्रेमभाव पुज्यभाव होता है देवकी शक्तिका मूर्तिमंत दृष्टान्त सामने खडा हो जाता है और वारवार यथाविधि स्तोत्र पाठ करनेसे स्तुतिके कारण देव प्रसन्न होते हैं, इसी लिए स्तोत्रका पाठ मनुष्य बहुत चावसे करता है। स्तवना में गुणानुवाद आता है जिसके कारण स्तवना करने वालेकी आत्मा पर गुणका असर होता है और आत्मा इस तरहके गुणानुवाद करते करते गुणी बन जाता है इसी लिए मानवी स्तवन-भावना बहुतही प्रेमके साथ लयलीन हो करता रहता है । उपरके तीनों विधान जैन समाजमें प्रचलित हैं और बहुधा वालपनसेही इसका अभ्यास जारी हो जाता है। यहां मंत्र विधानका सम्बन्ध है, इस लिए Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंत्रमहिमा प्रकरण यह देखना है कि जिस तरह अनेक प्रकारके मत्र, होते है, उनके अधिष्ठाता है उनही मत्रोंमें से यह भी एक नवकार मत्र है या कुछ और बात है। सोचते है तो यह मत्र साधारण नहीं है, और अनेक मत्रों के जो अधिष्ठाता देव है चद्द भी अपनी आत्माके लिए इस नवकार महामत्रका जाप करते हैं इस लिए उन मत्रोंसे तो यह मत्र कइ दरजे उच्चकोटिवाला है, इसकी महिमा करने के लिए देवभी समर्थ नहीं हो सकते तो मानवी किस तरह क्यान कर सकता है जैनसिद्धान्तमें तो कहा है कि। जिणसासणस्स सारो, चउद्दसपुयाण जो समुद्वारो।। जस्स मणे नवकारो, ससारो तस्स किं कुणइ ॥१॥ एसो मगलनिलो, भवक्लिो सयरसघसुहजणभो। नवकारपरममतो, चितिथमित सुह देई ||५|| भावार्थ-जैन शासनमें चवदापूर्वका सारभूत नवकारमन बताया है, और इसका बहुतसा वर्णन दश पूर्वमें या जिसका गणघर भगवानने वयान किया, ऐसे इस महामभाविक मत्रका जो नित्यप्रति ध्यान-स्मरण करते है उनका इस ससारमें कोई भी अनिष्ठ चिन्तवन नही कर सकता। यह मंत्र महामग Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ fear प्रकरण यह देखना है कि जिस तरह अनेक प्रकारके मंत्र होते है, उनके अभिष्टाता है उनही मत्रोंमें से यह मी एक नवकार मंत्र है या कुछ और बात है ? सोचते है तो यह मंत्र साधारण नही है, और अनेक मत्रोंके जो अधिष्टाता है वह भी अपनी आत्माके लिए MY इस नवकार महामत्रका जाप करते हैं इस लिए उन मत्रोंसे तो यह मंत्र कइ दरजे उच्चकोटिवाला है, इसकी महिमा करने के लिए देवभी समर्थ नही हो सकते तो मानवी किस तरह बयान कर सकता है जैनसिद्धान्तमें तो कहा है कि । ॥ जिणसासणस्स सारो, चउदसपुव्याण जो समुद्वारो ॥ जस्स मणे नयकारो, ससारो तस्स किं कुणइ ॥१॥ एसी मगलनिलो, भवविलओ सयल्सघमुद्दजजओ ॥ नवकारपरममतो, चितियमित सुह देई || ॥ भावार्थ- जैन शासनमें चवदापूर्वका सारभूत नवकारमन बताया है, और इसका बहुतसा वर्णन दशवें पूर्वमें था जिसका गणधर भगवानने बयान किया, ऐसे इस महा प्रभाविक मत्रका जो नित्यमति ध्यान - स्मरण करते है उनका इस ससारमें कोई भी अनिष्ठ चिन्तवन नही कर सकता। यह मंत्र महामग Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र-कल्प स्मरण अवश्य करना चाहिए यह मंत्र मनोवाञ्छित फलके देने वाला है। ___इस महामंत्रका आदि करता कोई नही है, यह तो अनादी है।आगे कई चोविसियां हो चुकी और अब भविष्यमें होंगी लेकिन यह मंत्र इसी रुपमें था और रहेगा। __ इस महामंत्रके लिए इस प्रकरणमें मंगलरुप चवदापूर्वका सार, दशपूर्वसे उद्धरित चिंतामणीरत्नके समान जिसके एक अक्षरके जापसे भी अपूर्व लाभ विशेष संख्याके जापसे मोक्ष सुखका मिलना, और अनेक प्रकारके कष्टका क्षय होना व किस जगह किस समय स्मरण करनेका संक्षिप्त वयान मूल सूत्रोंके पाठ सहित बताया गया जिससे यह प्रतीति होजाती है कि यह मंत्र अपूर्व है । हर एक मंत्रके मानने म चार प्रतीति-यर्थात् साक्षी हो तो उस पर विश्वास जम जाता है। (१) एक तो शास्त्रकी साक्षी, (२) दूसरे गुरु महाराज या शास्त्रवेत्ता-कर्ता पर श्रद्धा, (३) तीसरे वृद्ध जन आदिकी परम्परागत साक्षी, और (४) चोथे निजका आत्मविश्वास, यह चारोंही Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनवपद मंडल Share WAVE KAREEN HEART SARANA malas (H MEES SHARMA SO1DRAPRACan पृष्ठ-७ Krisana Printery, Ratanpole, Ahmedabad, Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंत्रमदिमा प्रकरण चातें इस प्रकरण में मोजूद है, इस रिये यह मत्र जैन धर्मानुयायीयों के लिए सर्वमान्य महामगलकारी है। और दूसरे जो अनेक जातिके मत्र हैं जिनका अषिष्टाता एक देव होता है, लेकिन इस मत्रके अधिसाता नही देय दो सेवक रपमें काम करते हैं और जो पुरुप इसका ध्यान करता है उसकी मनोकामना देव पूरी करते है अस्तु । नवपद प्रकरण श्री नकार महामत्रके नव पद हैं, इनकी स्यापनासे सिद्धचक्र वनवा है। श्रीपालजी महाराजने इनही नचपदकी आराधनाकी यी जिससे कोड (कृष्ट) रोग चला गया था, मुदर्शन सेठका मरणान्त कष्ट निवारण करनेमें च शूली की जगह सिंहासन बनानेमें यही मत्र सहायक था। कचे मृतसे बंधी हुई चालपीसे कुवेमें से पानी निकारनेमें इसी मनसा चमत्कार या। चम्पानगरीके दरवाजे सोरनेमें भी इसी मत्रका मभाव या इस तरहसे इस मनी महिमाफा वर्णन शामेिं कई प्रकारसे पूर्वाचार्योने दिया है और नवपद आराधनमे यहा तक पताया है कि, Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र-कल्प सिद्धाः सिद्धयन्ति सेत्स्यन्ति ये जीवा भुवनत्रये ॥ सर्वेऽपि ते नंवपदाराधनेनैव निश्चितम् ॥१२०॥ श्रीपाल चरित्र भावार्थ-श्रीपालजी महाराजके चरित्रमें तो यहां तक वयान किया है कि जो सिद्धावस्था तक पहुंच चुके हैं और जो जीव अब सिद्ध होंगे उन सबके लिये किसी न किसी रूपमें नवपद आराधन मुख्य समझना चाहिए। आवश्यक सूत्रकी नियुक्तिमें नवकार स्मरण करनेकी परिपाटी यूं बताई गई है। अरिहताणं नमोकारोः सवपावप्पणासणो ॥ मंगलाणं च सव्वेसि, पढमं हवइ मंगलं ॥१॥ सिद्धाणं नमोकारो. सव्वपावप्पणासणो ॥ मंगलाणं च सव्वेसि, वीयं हवइ मंगलं ॥२॥ आयरियाणं नमोकारो, सवपाचप्पणासणो ॥ मंगलाणं च सब्वेसि, तइयं हवइ मंगलं ॥३॥ उवज्झायाणं नमोकारो, सव्वपायप्पणासणो ॥ मंगलाणं च सव्वेसिं, चोत्थ हवइ मंगलं ॥४॥ साहणं नमोकारो, सव्वपावप्पणासणो ॥ मगलाणं च सवेसिं, पञ्चमं हवइ मंगलं ॥५॥ एसो पंच नमोकारो, सव्वपावप्पणासणो ॥ मंगलाणं च सम्बेसि, पढम हवह मंगलं ॥६॥ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवपद प्रकरण उपरोक्तमनका विधान आवश्यक सूत्रकी निर्युतिके व्यानशतक में प्रतिपादित है सो आदरणीय है भवभीरु महानुभावोको जिज्ञासु होकर जानना चाहिए। इस मका वर्णन करते " महानिशीयसून " कहा है कि नासेर चोर - सावय, विसहर जलजलण वधण भयाइ ॥ चितिजतो रस्सरणरायभयाइ भाषेण ॥ भावार्थ- चोर, सिंह, सर्प, पानी, अग्नि, वधनका भय, राक्षस, सग्राम, राजभय आदि उपस्थित हुवे हों तो पच परमेष्टिमत्र के जापसे और व्यानसे तमाम प्रकारके भय नष्ट हो जाते हैं । इसी सूत्रमें नरकारमत्र गिननेकी परिपाटी एक और तरह से मी बताई है । अरिहन्ता मुज महल, वरिहन्ता मुज देवय ॥ मरिदन्तेति कित्तस्सामि, बोसिरामिति पाग ॥१॥ मिया मुझ महल, सिद्धा मुज देवय ॥ मिद्धे ति कित्तरस्सामि बोसिरामित्ति पान ||२|| आयरिया मुज मङ्गल, आयरिया मुज देवय ॥ परिपनि वित्तस्नामि, वोसिरामित्ति पारंग ||३|| उपन्याया मुत्र देवय ॥ सामि प्रोसियमिति पाग ||४|| उपाय मुख म वायचि Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र-कल्प पसो पञ्च मुज मङ्गलं, एसो पञ्च मुज देवयं ॥ एसो पश्चिति कित्तइस्लामि, वोसिरामित्ति पावगं ||५|| इसके अतिरिक्त चन्द्रपन्नत्तिमें प्रथम गाथा मङ्गलाचरण रूप इस तरह प्रतिपादित है, जिसको भी प्राचीन नवकार ही कहते हैं। नमिऊण असुरसुरगरुलभुयगपरिवन्दियं ॥ गय किलेस अरिहेसिद्धा आयरियउवझायसव्वसाहू य १ इसी तरह और सूत्रोंमें भी बयान आता है, जिज्ञासुओंको जाननेकी कोशीस करना चाहिए। और इस महामंत्र पर सम्पूर्ण श्रद्धा रखना चाहिए इस प्रकरणमें प्राचीन शास्त्रोंकी साक्षी और परम्परागत व आत्मविश्वासका थोडासा वयान आ गया है जो आदरणीय है। अशुद्धोचार प्रकरण धर्मसूत्र-सिद्धान्त मंत्र-स्तोत्र-स्मरण तो वे ही इस समय हैं कि जो प्राचीन कालमें थे। और जिनके प्रभावसे महान् कार्य सिद्ध होने के उदाहरण मिलते हैं। जवके मंत्र स्तोत्र जाप स्मरण वे ही हैं, और उनके अधिष्ठाता देव भी विद्यमान हैं तो इस समयमें Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्धोचार प्रकरण ११. आराधक पुरुषको प्रत्यक्ष क्यों नही दीखते ? और प्रत्यक्ष नही आते है इसी लिए उपासकोंकी श्रद्धा कम होती जाती है। बात मानने योग्य भी है, क्योंकि मत्र बदले नही अधिष्ठाता पदले नहीं तो फिर प्रत्यक्ष दर्शनमें कोनसी खामी है ? विचार करते हैं तो मारी बातें वही है कि जो पूर्वकालमें थी, लेकिन स्मरण करने वाले वह नहीं है कि जो पूर्वकालमें ये । न उनकी सी धैर्यता श्रद्धा और योग्यता है । हमारी अयोग्यताका विचार करें तो बहुत लम्बा है । लेकिन मनोचारकी तरफ देखें तो यथाविधि उच्चार हम नही कर सकते । पूर्वाचार्यांने तो योजना करनेमें और हर तरहकी तरकीब बताने में कमी नहीं की और हमने घृष्टता करनेमें कमी नही की सो कमी नही करनेमें वो दोनों बरावर है, लेकिन उनका ध्येय कुछ और था और हमारे विचार कुछ और ही मकारके है । पूर्वाचार्याने स्पष्ट उच्चारके लिये भावि भाविके कथन प्रतिपादित किये और सून पाठ आदिमें पद, सम्पदा, गुरु, लघु आदिकी व्यवस्था की है जैसे नरकारमनमें पदसा ||९|| सम्पदा ॥८॥ स्वर्ण ||७|| लघुवर्ण ॥ ६१ ॥ सर्ववर्ण ||६८ || इस Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ श्री नवकार महामंत्र - कल्प प्रकार से भिन्न भिन्न बताया है, और बतानेका हेतु स्पष्ट है कि इसकी आराधना करनेवाला गुरु अक्षर, लघु अक्षर, संयुक्ताक्षर, पदच्छेद, आदिसे क्रमसर ध्यान स्मरण करे तो मंत्री शक्ति प्रगट होती है, और शुद्धता पूर्वक वोलनेसे तत्काल सिद्धि होती है यही पूर्वाचार्योंकी भावनाऐं होना चाहिए । आज समाज में देखिए तो इस प्रकारसे शुद्ध बोलने वाले बहुत कम नजर आयेंगे तो फिर सिद्धिकी आशा किस प्रकार की जावे । हरएक सूत्र, मंत्र, स्तोत्रका अर्थ समझे बिना महत्त्वता जाननेमें नही आती और महत्त्वता जानने में आ जाती है तो मनोभाव भी एक तानमें लयलीन हो जाते हैं । शुद्ध वोलने में कइ प्रकारकी सिद्धियां समाई हुई हैं । जो मनुष्य इसके आनन्दको पा चुका है वही इसके महत्त्वको भी समझ सकता है, और जो मनुष्य अशुद्ध बोलनेके आदी हैं वह शुद्ध बोलने जांय तो भूल जाते हैं या थोडी देरके उच्चारण बाद ही फिर उसी लाइन पर आ जाते हैं ऐसे पुरुषों को समझाने के लिए, बोलनेमें जो आठ प्रकारके दोषका त्याग करना बताया है जिनका कुछ वर्णन इस प्रकार है । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मगुसाचार प्रकरण (१) प्रथम च्याविद्धव दोप, अर्याद प्रमह समझे विन शेग्ना, वात घुउ और ही चल रही हो और आप आपनी यदानी और ही कहते जाते हो इस तरहकी आदत मिनरी हो उन्हे छोडनेका प्रयत्न करना चाहिए। (२) मा व्यन्यानंदित्व दोप, इसका यह मतप कि एक आदमी गात कर रहा हो और मीपमे आप अपनी जमाते जाते हों,याने एक साय पर आगो भागय जो बोलते है उनमें से परमी भी गात ममसमें नहीं आती और परिश्रम यही पग मावा और मुनने वाला भी घृणा पता है भतः पेसी आदत निन पुरपाकी हो उन्हें चाटिगि पर देखें। (3) तीसरा पीनासर दोप, पदमें, शन्दमें कम मसर पोपना निगम यम लिपना निमसे र्यका मन ही माता रे, मवन्य चटा नावाई और गुननेवागममा नारी माता निन महानुभावोंको पाट वचारी में बोल्नेग पाम परता हो यह इम भरी नन्दी वीरार परेंगे और निनी आदत Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ श्री नवकार महामंत्र-कल्प अक्षर खानेकी है उनका पेट तो अक्षर खाये बिना भरेगा नही, नित्य खाली होगा और नित्य खावेंगे अतः ऐसी आदत हो तो त्याग करना चाहिए। (४) चोथा अति अक्षर दोप, यह दोप तीसरे नम्बरके दोपसे मिलता हुवा है, जो बोलने में लिखनेमें शब्द पदको विगाड कर ज्यादे अक्षरका उपयोग करते हैं उनको चाहिए कि ऐसे दोपका त्याग कर देवे। (५) पांचवें पदहीन दोष, वोलते समय पदको गाथा को भूल जाना या जल्दीके मारे जान बूझ कर कम बोलना और क्या वोलते हैं यह न तो खुद समझते हैं न दूसरा समझ पाता है अतः यह दोष हानि-कर्ता है, ऐसी आदत हो तो छोड देना चाहिए। ) (६) छटा विनयरीन दोष, सूत्र, मंत्र, स्तोत्र 'आदिके वोलते समय विनयकी आवश्यकता है, कोनसा सूत्र-मंत्र किस मुद्रासे बोलना और किस प्रकार नमृताका भाव रखना यह सब सीख लेना चाहिए जिन पुरुषोंमें यह अवगुण विनयहीनताका हो 'उन्हें चाहिए कि त्याग कर देवे।। Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्धोचार प्रकरण १५ (७) सातवा उदाचादि दोप, जिसके तीन भेद होते हैं एकतो उदात्त, दूसरा अनुदाच, और तीसरा स्वरित, इनमें से उदासका यह मतलब है कि खूब उचे स्वरसे चिल्लाते हुवे गला निकाल कर बोलना जिससे अक्षर गुरु है या लघु इसका भान नही रहता और अपनी धुन्नमें बोलता ही जाय । दूसरे अनुदात उसको कहते हैं कि बहुत मद स्वरसे इतना धीरे बोले कि जिससे न तो आप समझे और न सुनने वाला समझ सके । यह दोष भी त्याग करने योग्य | तीसरा स्वरित दोष का यह मतलब है कि समरीतसे बोलता जाय बहुत उचे स्वरसे भी नही और -मद स्वरसे भी नही सामान्य रीतसे इस तरहसे वोले कि जिससे गुरु, लघु संयुक्ताक्षरका भान ही नही रह सके, ऐसी आदत हो तो यह भी त्याग करने योग्य है । (c) आठवें योग हीन दोष, अक्षर- स्वर व्यञ्जन स्व दीर्घका मिलान किए बिना बोलता जाय और मिलान हो उसे तोड कर वोलता जाय, पदच्छेद, सन्धि आदिका खयाल नही रखे तो भावार्थ विगड Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र-कल्प जाता है अतः मंत्र स्तोत्रके पाठकों को स्वरुप बिगाड कर नही वोलना, इस तरह विगाड कर बोलनेकी आदत हो तो त्याग कर देखें। ___ उपरोक्त कथनानुसार आठों दोष त्याग करने के योग्य है, और सूत्र, मंत्र, स्तोत्रका उच्चार करते समय समझते हुवे मर्यादा सहित पद्धतिसर वोलना चाहिए इन आठों दोषों के लिए अलग अलग दृष्टान्त भी हैं लेकिन इस विषयको बढाना असंगत है, श्रमण सूत्रम बयान आता है कि, हीणक्खरं अञ्चक्खरं पयहीणं। विनयहीणं घोसहीणं जोगहीणं ॥ भावार्थ---अक्षर हीन हो, गाथा बोलते समय कम या ज्यादा बोली जाय पदच्छेद रहित उच्चार करते हों मिलान किए विना विना सम्बन्धके बोलते हों, योगवहन किए विना याने अनाधिकारी होते हुवे उच्चार किया जाय तो अनुचित है। इस लिए मंत्र यंत्र तंत्र करनेसे पहले अधिकारी बनना चाहिए, जिन्होंने अधिकार प्राप्त नही किया है और ऐसे कार्योंमें प्रवेश करते हैं उन पुरुषोंको सिद्धि प्राप्त Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अशुद्धोचार प्रकरण ૨૭ नही हो सकती । लेकिन आजके वरतमे अपनी अयोग्यताको तो देखते नही और मत्रकी व मनके अधिष्ठाता देवकी शक्तिको हीन मानते हैं । पुरषार्थ अपना नही ब्रह्मचर्यादि गण नही धैर्यता व सतोप नही तप जप चारित्रकी शुद्धि नही और रहेंगे मंत्रोका अश जाता रहा । महानिशीथ सूत्रमें तो स्पष्ट वयान किया है कि श्रावक श्राविका उपधान के किए बिना नवकारमत्रका उच्चार करे तो निषेध है। विषय बहुत लम्बा है, यहा इस चर्चा को बढाना असंगत है, लेकिन वर्तमान में इस निर्देश मर्यादाका कितना उलन रो रहा है सो सब जानते हैं। जनके नवकार भनका उच्चार करनेका अधिकार भी हमने आज्ञाके पाफिक प्राप्त नही किया है तो मत्र साधन मनोवारसी तो बात ही वडी है, समझ सकते है कि खुद अधिकारी ने नही और रहेंगे देवो अश जाता रहा। शास्त्रोंमें बताये अनुसार अधिकार प्राप्त करने के बाद भी हर एक धर्मक्रिया करते समय पाच मणिधानका ध्यान रखना चाहिए, जिसका विवेचन Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र - कल्प “योगविंशिका " में श्रीमान् हरिभद्रपरिजी महाराजने प्रतिपादित किया है, और न्याय विशारद्द न्यायाचार्य श्री यशोविजयजी महाराजने “योगविंशिका" की टीकामें टीका इस विषयको स्पष्ट करते हुवे फरमाया है कि, पांच आशय रहित जो धर्मक्रियायें होती हैं वह असार हैं, क्योंकि धार्मिक क्रियायें योगरुप होनेके कारण (१) प्रणिधान, (२) प्रवृत्ति, (३) विघ्नजय, (४) सिद्धि, और (५) विनियोग इन पांच आशयसे अलंकृत होना चाहिए, और ऐसे परिशुद्ध योगके पांच प्रकार बताए गए हैं । (१) उर्ण, (२) वर्ण, (३) अर्थ, (४) आलम्बन, और ( ५ ) अनालम्बन इस प्रकार पांच भेद हैं, इन भेदों में से उर्ण और वर्ण यह दोनों तो कर्म याग हैं, और अर्थ, आलम्बन, अनालम्बन यह तीनों ज्ञानयोग है। इन स्थानादि पञ्चयोगोंका तात्त्विक दृष्टिसे विचार किया जाय तो प्रत्येकके (१) इच्छा, (२) प्रवृत्ति, (३) स्थिरता, और (४) सिद्धि इस प्रकार चार चार भेद होते हैं, और इनके चार चार अवा तर भेद बताये हैं (१) प्रीति अनुष्ठान, (२) भक्ति अनुष्ठान, (३) वचन अनुष्ठान, और (४) असंग अनुष्ठान इस तरह के चार १८ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवा प्रकरण चार अवान्तर भेदको फैलाते हैं तो कुल सस्या ८० होती है। जिनके स्वस्पको समझ कर क्रिया की जाय तो अवश्य फलदाई होगी। जो पुरुष स्वरुप समझें नही योग्यता प्राप्त करें नही और स्वच्छन्दी पन कर साधना करें उन्हें सिद्धि किस प्रकार हो सकती है। अत' शुद्धोचारकी तरफ बहुत लक्ष देना चाहिए और जो क्रियाएँ-सारनाऐं की जाय उनमें गुरुगम अवश्य लेना चाहिए। नवाङ्क प्रकरण नवकार, नवपद, नवतत्व आदि जिनका ९ के असे उच्चार होता है उनमें अनेकानेक गुप्त सिद्धिया समाई हुई होती है। नवाईमें अक्षय सिद्धि है, अर्थात् इस अङ्गकी सिद्धि खण्डित नही होती अखण्ड रुप रहती है, क्योंकि अकमें यह चैतन्यरुप है इसके उदाहरणको देखिये कि, व्यञ्जन क, ख, ग, घ, ङ, इत्यादि जो वतीस अक्षर है यह सब जड सहप्य माने गए है, और जब पदार्थ जितने हैं वह मायः सय हो जाते हैं । इन व्यञ्जनके साथ अ, आ, इ, ई, आदि सोलह स्वर जो चतन्य सहप्प है, इनको लगाए Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० श्री नवकार महामंत्र - कल्प जांय तो व्यञ्जनकी शोभा होती है, और स्वराअक्षर चैतन्य रूप होने से खण्डित नही होते और अपने रुपमें अक्षय रहते हैं, इस सिद्धान्तकी सत्यताका यह प्रमाण है कि क, च, ट, त प, वर्गादिका उच्चार करते हैं तो व्यञ्जनका शीघ्र ही नाश हो जाता और तत्काल स्वरका उच्चारण होने लगता है । अतः सिद्ध हुवा कि व्यञ्जन अक्षर उच्चार होते ही विलय हो जाते हैं, और स्वर अक्षयरूप रह जाते हैं, तदनुसार अङ्क गणित में भी (९) नवाङ्क अक्षय रूप है इसका क्षय कदापि नही हो सकता, यह अपने स्वरुपको नही छोड़ता और कायम रहता है । कायम रहता है इतना ही नही किन्तु जब दूसरे अङ्कोंके साथ मिल जाता है तो उनमें रमण करते हुवे भी लिप्त न होकर अपने स्वरूपमें अलग ही रहकर अन्तिम निज स्वरूपमें निकल आता है, इसी लिए इसकी शोभा विशेष है । दूसरे अङ्क एक, दो, तीन, चार, पांच, छे, सात और आठ तकके हैं यह निज स्वरूपमें नही रहते और खण्डित होते जाते हैं । जब एक दूसरेके साथ अंक मिलता है तब भी निज स्वरुपमें नही रह Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ नवाक प्रकरण सकते और शेष गिनती के साथ अपने स्वरपको छोडे हुवे घटित अवस्थामें नजर आते हैं। इसी लिए यह अह आदरणीय नही माने गए और नवाङ्क अन्य अङ्कीके साथ रमण करता हुवा भी निज स्वरप को नही छोड़ता इस लिए आदर पाता है, ससारी आत्माओं को निजका स्वरूप समझने के लिए इस उदाहरणको अपनी आत्मा पर घटित करना चाहिए इस विषय में एक उदाहरण देखियेगा । नरका पाहुडा गिनते जाइए और आगे जोड लगाइए तो नवाङ्क ही शेष आवेगा, साथही स्मरण रहे कि शून्य को इसमें नही गिनते है । ९ +९ १८ +९ २७ +९ ३६ +९ ४५ +९ ५४ +९ ६३ + ० २ +९ ८१ +९ ९० +९ समझमें आ गया होगा कि, एक और आठ नौ, दो और सात नौ, तीन और जे नौ, चार और पांच नौ, पाच और चार नौ, छे और तीन नौ, साव Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ श्री नवकार महामंत्र - कल्प और दो नौ आठ और एक नौ, इस तरह गुणाकारकी चढती कला में भी निज - रुपको नही छोड़ता है और एकसे लगा कर आठ तकके जितने पाहुडे है, अथवा ग्यारा इक्कीसा, इकतिसा आदि तमाम पाहुडे अपने रुपसे हट जाते हैं और चढती पडती कलाका अनुभव करते हुवे कभी कम कभी ज्यादे होते रहते हैं, लेकिन ग्यारा, इक्कीसा, इकतिसाके किसी भी पाहुड़े के साथ नवाङ्क शामील हो जाता है तो कितनीही चढती कला पाकर भी अपने स्वरुपको नही छोडता और शेषमें अक्षय रुप तैर आता है जिसका उदाहरण देखिये | १२ +९+१०८ + ९ १३ +९ + ११७ +९ १४ +९+१२६ +९ १५ +९+१३५ +९ १६ +९+ १४४ +९ १७+९+१५३ +९ १८+९ + १६२ +९ १९ +९+ १७१ +९ २० +९+१८० +९ उपर बताए मुवाफिक बारह नवां आदिसे बीसके पाहुडे तक गिनते जाइए और १०८ - ११७ की अनुक्रमसे गिनती करिए तो शेष नौ अङ्क आवेगा इसी तरह किसी भी अंक के कितनेही पाहुडे नौका Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवाक प्रकरण ર૩ अङ्क लगा कर गिनते जाइए और गुणाकारके अडकी जोड़ दीजिये तो शेष नवाङ्क ही आवेगा इसमें किसी कार सन्देह नही है । इसके अतिरिक्त अपनी इच्छा के मुनाफिक सैकडी हजारों लाखोंके अङ्क लिख लो और अनुक्रमसे जोडते जाइए जहा तक नवाङ्क शेष न आ जाय अङ्कके योगको कम करके शेषाङ्क निकालिए और इसी तरह करते जाइए आखिर कार अवशेष नवाह्न ही आवेगा इसमें किसी प्रकारका सन्देह नही है। उदाहरण देखिए । ૪૮ २० ५३२८ १८+९ ३२३५ १३ ३२२२+१ पाच हजार तीनसौ अडतालीस लिखे और इन अकी गिनतीकीतो पाच, तीन, चार, आठको जोड़ते वस आए, इन बीसको पाच हजार तीनसौ अडवालीसमें से कम किए तो शेष पाच हजार तीन सौ अट्ठाइस रहे अब पाच, तीन, दो, आयी गिनती की Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ श्री नवकार महामंत्र - कल्प तो अट्ठारा आए बस एक और आठ-नौ वही शेपाङ्क अक्षयरूप नौ रह गया । इस तरहसे चाहे कितनी ही गिनती के अङ्क रख उपरोक्त कथनानुसार गणित करते जाइए शेषाङ्क नौ रह जायगा. इस तरह नौ के अकी महिमा बताई जिससे सिद्ध हो जाता है कि नवाङ्क अक्षय रूप है कभी खण्डित नहीं होता। जबके Tags इतनी महिमा है और अक्षयताका भण्डार है तो सार रूप नवकार, नवपदमें अक्षयताका समावेश कितने दरजे है सो मेरे जैसा क्षुद्रात्मा क्या बता सकता है । इनकी तो अपरम्पार महिमा शास्त्रोंमें प्रतिपादित है, जिसको चवदापूर्वकासार बताया गया उसके चमत्कारका कोन पार पा सकता है। ऐसे महामंत्र का स्मरण करनेवाला दरिद्री नही रह सकता लेकिन श्रद्धा, संतोष, एकाग्रता, शुद्धोच्चार और विधि विधान सहित स्मरण हो तो अवश्यमेव फलदाई 'होता है | अतः इच्छावान पुरुषको चाहिए कि श्री नवकारमहामंत्र कल्पमें अलग अलग कार्यकी सिद्धि लिए जो विधि विधान बताये गये हैं तदनुसार गुरु गम प्राप्त करके ध्यान स्मरण करेंगे तो अवश्य फल दाई होगा | Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माला प्रकरण माला प्रकरण ध्यान स्मरण करने वालोंके लिये जाप सख्या बतानेके हेतु मालाकी आवश्यक्ता होती है, इसी लिए मालभी ध्यान के एक अद्रुप है ।माला भूतकी, रेशमकी सोनेकी, चादीकी, रत्नकी, चदनकी, रद्राक्षकी, अफलवेरकी, केरवेकी, मृगाफी, और मोतीकी जैसी जिसकी शक्ति और कार्य हो तदनुसार माला छेना चाहिए। जिस हायमें माला रहती है उस हायको माला फेरते समय हदयके पास स्पर्श करते हुये रसना, और मागको दाहिने हायके अङ्गुठे पर रखना चाहिए, मालाके मणिये फिराते समय उनके नख न टगना चाहिए और मालामें जो मेरु होता है उसको उरहन नही करना जो मनुष्य माला फेरते समय मणियोंके नख लगाते है या मेरुका उलटून फरते है, उनको लाभ कम होता है इस लिए माला फेरते समयपिसानको याद रखना चाहिए शुभ कार्य के लिए सफेद माला साफ-सुथरी और एक्सा मणियेकी टेना चाहिए । पष्ट निवारणार्य लाल रंग Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૮ श्री नवकार महामंत्र-कल्प - जो मोक्ष प्राप्तीके अमिलापी है, और निरंतर यही भावना रखते है उनको चाहिए कि माला फेर ते समय अङ्गुठे पर रख करके अनामिका उङ्गलीसे जाप करे। जिनको शुभ कामनाके लिए माला फेरना है, और द्रव्यप्राप्ति कुटम्वशान्ति, सन्तानवृद्धि, एहिक सुख द्रव्यादिके लिए मध्यमा उङ्गगलीसे फेरना चाहिए, जिनको क्रूर कार्य, मारण, उच्चाटन के लिए जाप करना हो वह अङ्गठेसे माला फेरे,और रिपुक्षय, वैरनाशाय या लेशादिके नाश निमित्त तर्जनी उगलीसे माला फेरना चाहिए इस तरह माल.का विधान समझ कर उपयोग सहित एकचित्तसे ध्यान स्मरण करने वालों को अवश्य सिद्धि प्राप्त होगी। आवर्त प्रकरण आवर्तसे जाप करना भी बहुत श्रेष्ठ बताया गया है, जिन महानुभावोंको मालाके वजाय अपने हाथकी उङ्गलियों पर जाप संख्या पूरी करना हो उसीका नाम आवर्त है और यह रीति सुगम भी है इस तरह ध्यान करनेसे मनभी स्थिर रहती है और Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवर्त प्रकरण आसनमी जम जाता है आवर्तके भेद तो विशेष हैं शेरिन यहा पर तो उन्हींका वर्णन किया जायगा कि जो समझमें आ गए हैं, और मत्येक आवर्तको सुगमता से समझने के लिए हायके पक्षका चिन यता फर उगलियो पर नम्बर दिये गए हैं जिसको देखने से समझनेमे और भी मुविधा होगी। ___आवर्तसे माला फेरनेका पहला विधान इस तरहसे बताया है कि निजके दाहिने हाथकी उगालि योमेसे फनिष्टा उगलीके नीचेके पेवेंसे शुरुआत फरे, जिससे कनिष्टाके तीनों पेरवें चोथा अनामिकाके उपरका पाचपा मव्यमाके उपरका छटा तर्जनीके उपरका सातवा तर्जनीके मायका आठवा तर्जनीके नीचेका नौवा मध्यमाके नीचेकादशना अनामिकाके नीचेका ग्यारहया अनामिकाके मयका और वारहवा मध्यमाके मध्यरा, इस तरहसे बारह हुवे सो नी यार गिननेसे एक मालापूरी हो जाती है, इसीका नाम आवर्त है, इस आपसे जो जाप करते है उनको शान्ति दृष्टि पुष्टि तत्काल होती है अतः यह आवर्त भादरणीय है। । Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० श्री नवकार महामंत्र - कल्प शङ्खाव प्रकरण दूसरी रीति शङ्खावर्त्तकी बताई गई है जो अपने दाहिने हाथकी उङ्गलीयों पर ही गिना जाता है इसकी शुरुआत मध्यमा उङ्गलीके मध्यका पेरवां फिर दूसरा अनामिकाका मध्य, तीसरा अनामिकाके नीचेका चोथा कनिष्टाके नीचेका पांचवां कनिष्ठाके मध्यका छट्टा कनिष्ठाके उपरका सातवां अनामिकाके उपरका आठवां मध्यमाके उपरका नौवां तर्जनी के उपरका दशवां तर्जनी के मध्यका ग्यारहवां तर्जनी के नीचेका और चारहवां मध्यमा के नीचेका इस तरह इन बारह को नौका गिनने से एक माला पूरी हो जाती है । इसीका नाम शङ्खावर्त्त है, और जो मनुष्य इस विधानसे जाप करते हैं उनको इस आवत्तके कारण ही भूत, पिशाच, व्यव्तर आदिसे भय प्राप्त नही होता और दुष्ट देव नही सताते और जाप भी शीघ्रता से 'फलता है, मनोकामना सिद्ध होती है शांति मिलती है, सुख पहुंचता है, और धैर्यता आती है इस लिए यह आवर्त्त भी ध्यान करने मोग्य है । जिसका चित्र पाठकोंके सामने है । Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दार प्रकरण मन्दावर्त प्रकरण तीसरा नन्दावर्त बताया गया इस आवर्तको सौम्य माना गया है जिसकोवर्जनी उगलीके उपरके पेरवेंसे शुरुआत करे, दुसरा तर्जनीका मध्य, तीसरा तर्जनीके नीचेका छटा अनामिके मायका, सातवां अनामिकाके उपरका आठवा मध्यमाके उपरका नौवा मध्यमाके मध्यका इस तरह नौ हवे जिनको चारह वख्त गिननेसे एक माला पूरी होती है । इस आवर्तको बहुत मगलिक माना गया है, सौम्यसभावी है, शान्ति, वृष्टि, पुष्टि के देने वाला है इस लिए यह आवतभी आदर करने योग्य है, जिसका चित्र आपके सामने है। ॐवर्त प्रकरण ___ यह आव उन पुरषोंके लिए कामका है कि जो ॐ का जाप किया करते हैं।ॐ की महिमा तो पारावार है जिसको जैन शास्त्रोंमे मणवाक्षर फहते है, और इसमें अशीहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधू इन पाच पदको स्थापना मानी गई है Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ श्री नवकार महामंत्र - कल्प जिसका अद्भुत चमत्कार है क्यों कि नवकार मंत्रके पांचो पदका इसमें समावेश है, इस लिए जो इसका ध्यान किया करते हैं उनको यह आवर्त्त बहुत उपयोगी माना गया है, जिसको गिनते हुवे प्रथम मध्यमा के मध्यका पेरवां, दूसरे अनामिका के मध्यका, तीसरा अनामिका के उपरको, चोथा मध्यमाके उपरका, पांचवां तर्जनीके उपरका, छट्टा तर्जनीके मध्यका सातवां तर्जनीके नीचेका, आठवां मध्यमाके नीचेका नौवां अनामिका के नीचेका दशवां कनिष्टाके नीचेका ग्यारहवां कनिष्ठाके मध्यका और बारहवां कनिष्टाके उपरका इस तरह इन बारहको नौ वार गिनते हुवे एक माला पुरी होती है, और जितने जाप होते हैं उतनाही आलेखन ॐ का उङ्गलियोंके पेरवों पर होता जाता है इसी लिए ॐ के जो उपा सक हैं वह इस आवर्त्त से जाप किया करते हैं और ॐ के जापका वर्णन करना तो शक्तिसे बाहर है । इसी आवर्त पर दूसरे मंत्रकी या और कोई साधनाकी माला गिनी जाय तो बहुत ही लाभदाई है, विशेषमें आवर्त्तके विधानका चित्र आपके सामने है सो देख लेवें । Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूसरा स्वर्ण प्रकरण दूसरा ॐवर्त प्रकरण उपर ववाए हुवे ॐवनकी दूसरी तरकीर इस तरह पर है कि, प्रथम शुरुआत अनामिाके मध्यसे करे, दूसरा मध्यमाका मभ्य, तीसरा मध्यमाके नीचेका, चोथा अनामिकाके नीचेा, पाचमा कनिष्टाके नीचेका, छटा पनिष्टाके मध्यका, सातवा कनिष्टाके उपरका, आठवा अनामिकाके उपरका, नौवा मध्यमाके उपरका, दशवा तर्जनीके उपरका, ग्यारहवा वजनीके मध्यका और पारवा तर्जनीके नीचेश, इस तरहसे नी वार जाप करनेसे माला पुरी होती है और ॐवन धनता है। इसमें भी प्रति जापके साथही उगलियो पर ॐ का आलेखन होता जाता है और यहभी कहत आदरणीय है जिसका चित्रमी दिया जाता है सो देख लें और जितना लाभ उठा समें उठाइएगा। ___ एक तीसरी तरकीर ॐ वर्तकी और भी हैं लेफिन यह दक्षिणावर्त नही होनेसे जाप करनेमें कम लेते है क्यापि जानकारीके लिए यहा लिखते हैं। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र-कल्प प्रथम मध्यमा उङ्गलीके मध्य भागके पेरवेंसे शुरुआत करे, दूसरा अनामिकाका मध्य, तीसरा अनामिकाके नीचेका, चोथा मध्यमाके नीचेका, पांचवां तर्जनीके नीचेका, छट्ठा तर्जनीका मध्य, सातवां तजनीके उपर, आठवां मध्यमाके उपरका, नौवां अनामिकाके उपर का, दशवां कनिष्टाके उपरका, ग्यारहवां कनिष्टाके मध्यका, और वारहवां कनिष्टाके नीचेका, इस तरह तीसरी तरकीव है जिसका चित्रभी दिया गया है सो जैसा जिसको पसंद हो आदर करे। नवपद आवर्त प्रकरण नवपद आवर्त्ततो जैनियोंमें मशहूर है जो महामंत्र सूचक है और यह पुस्तक ही सारा नवपद पर ही लिखी जा रही है, श्रीनवकार महामंत्रका दूसरा नाम नवपद है जिसके आवर्तसे कोइ जाप करना चाहे तो तरकीब यूं बताई गई है कि मध्यमा उङ्गलीके मध्यके पेरवेंसे शुरु करे, दूसरा मध्यमाके उपरका, तीसरा तर्जनीके मध्यका, चोथा मध्यमाके नीचेका, पांचवां अनामिकाके मध्यका, छट्ठा तर्जनीके उपरका, Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकरण ३५ साना तर्जनीके नीचे, आठवा अनामिकाके नीचेका, नौवा अनामिका के उपरका इस तरहसे बारह दफा गिनने से एक माला पुरी होती है, यह विधान खास काम हो और थोडा स्मरण हो उसमें उपयोगी होता है लम्बे जापमे और विशेष सरया में करना हो तो इस आवर्चसे गिनते समय भूल हो जाना सभव है इस आवर्त्तकामी चित्र देकर नम्बर दे दिये है सो जिज्ञासुको ठीक तरह समझ लेना चाहिए । ह्रीवर्त्त प्रकरण ही मायानीज है जिसका वर्णन इसी पुस्तकमे आगे आवेगा यहा तो सिर्फ आवर्ता सम्बन्ध इस लिए यही बनाया जाता है, आपके खोज करने पर भी चरापर पता नहीं पा सके है तथापि जो प्राप्त कर सके हैं वही पाठकों के सामने रखते हैं । इसके दो आप हमे मिले है जिसमें पहला वर्त्त तो वर्जन उपरके पैसे चलता है, दूसरा मध्यमाके उपरका, तीसरा अनामिका के उपरका चोथा कनिष्ठा के उपरत्रा, पाचवा कनिष्ठाके मध्यका छठा अना Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ श्री नवकार महामंत्र - कल्प मिका के मध्यका, सातवां मध्यमाके मध्यका, आठवां तर्जनी के मध्यका, नौवां तर्जनीके नीचेका, दशवां मध्यमा के नीचेका ग्यारहवां अनामिकाके नीचेका, और बारहवां कनिष्टाके नीचेका इस तरह नौ दफा गिनलेने से एक माला पूरी हो जाती है, यह ह्रीवर्त्त वरावर ध्यानमें नही आता है तथापि जैसा पाया है वैसाही पाठकोंके सामने रखते हैं, और साथ ही इसका चित्र भी दिया गया है सो देख लेवें । sa एक दूसरी तरकीबसे भी गिनते हैं सो इस तरह है कि उपर मुवाफिक वारह गिन लेने वाद मध्यमाके मध्यका तेरहवां, चौदहवां अनामिकाका मध्य, पन्द्रहवां कनिष्ठाका मध्य, सोलहवां कनिष्ठाके नीचेका, सत्तरहवां अनामिका के नीचे, अट्ठारहवां मध्यमाके उपर, उन्नीसवां तर्जनीके उपर, बीसवां तर्जनीका मध्य, इक्कीसवां तर्जनीके नीचे, वाइसवां मध्यमा के नीचे, तेइसवां अनामिकाके नीचे, चोइसचां कनिष्ठाके नीचे । इस तरह चोबीस तीर्थङ्करोंकी स्थापना वर्णवार हीमे है उस पद्धती से उगलियोंपर चोबीसजिनका जाप इस प्रकार कर सकते हैं, यह आ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पटना प्रकरण होकी उपासना करने वालो के लिए आदरणीय है इस विषय में और भी खोज की जायगी तो विशेष जानकारी होना सम्भव है । पदनावर्त्त प्रकरण ३७ पटनावर्त्तके लिए ऐसा पाया गया है कि पांच पदका इससे जाप होता है, प्रथम ब्रह्मरन्धमें, दूसरा ललाटमें, तीसरा कण्ठ पिञ्जरमें, चोथा हृदयमें और पाचवा नाभि कमलमें पञ्चपरमेष्टिको स्थित करके ध्यान करता जाय । दूसरी तरकीन पटनावर्तकी यह भी है कि मयम ब्रह्मरन्धमें दूसरे ललाटमें, तीसरे चक्षु चोथे श्रवण, और पाचवे मुख इस तरह व्यान करता जाय । तीसरी एक तरकीब और भी है जिसके लिए कहा है कि trat युगले नाशिका ललाटे । के नामी शिरमि हृदये तालुनि भुयुगान्ते 11 ध्यानस्थानानाम्यमलमतिमि कितितान्पत्र देहे । प्रस्मिन निगत विषय चित्तमालम्वनीयम् ॥१॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र-कल्प भावार्थ-मनुष्यके निर्मल देहमें दोनों नेत्र, दोनों कान, नासिका, ललाट, मुख, नामि, मस्तक, हृदय, तालु, और दोनों भ्रकुटीका मध्यभाग, इन दशको ध्यान करने के स्थान बताए गए हैं, इस लिए इन दशमेंसे चाहे किसी एकके विषे विकार रहित होकर ध्यान करे तो बहुत ही उत्तम है । इस ध्यानको इन दश स्थानमें किस तरहसे जमाना चाहिए इसका विवरण जो ध्यान करनेके अभ्यासी हों उनके साथ रहकर सीखना चाहिए इसमें गुरुगमकी विशेष आवश्यकता है। सिद्धावर्त प्रकरण सिद्धात्मा और चोवीस जिन भगवानके ध्यानकी तरकीब इस आवर्त द्वारा इस तरहसे बताई गई है कि, दोनों हाथोंको सामने खुले रखकरदोनों हाथोंकी आयुष्य रेखाको मिलावे वरावर मिलाने के बाद उसको सिद्धशिलाकी भावनासे देखे और आठों उङ्गलियोंके चोवीस पेरवोंको चोबीस जिन भगवानकी स्थापनासे देखे और वाकी जगहमें सिद्धात्मा समझ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आसन प्रकरण कर ध्यान करता रहे यह तरकीय उत्तम है हरएक जगह जहा आलम्पन भी न हो और ध्यान करनेका दिल हो जाय तो स्थिरता रखनेमे यह आवर्त काम आ सकता है, जिसका चित्र भी पाठकोके समझने के लिए साथ ही दिया है सो देख लेवें। ___इस तरहसे आपतका बयान पूरा हो गया अब सिर्फ कमलायका बयान बाकी है सो ठीक तरह समझने पर पाठकाके सामने रखेंगे। आसन प्रकरण आसन शुद्ध करना और अनुकुल आसनमें जय प्राप्त करना ध्यान सारने में सहायक होता है।आसन जम जाने से शरीर भी उपाधि रहित रहता है और शारीरिक स्थिर आजानेसे मन भी स्थिर हो जाना सम्भव | आसन जमाने के लिए एकान्त स्थान हो जहा किसी प्रकारकी चिन्ता भय माप्त होनेकी सम्भावना न हो अनुकुल सयोग और समाधि सहित ध्यान हो सके ऐसे स्थानको पसन्द करना चाहिए। जिसमे भी तीर्थस्थान-जिनेश्वर भगवानकी कल्याणक भूमि हो तो विशेष आनन्ददायक होगा। Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र-कल्प __ द्रव्यप्राप्ति, सम्पत्ति, शांति, सौभाग्य आदि कार्योंमें सफेद आसन सफेद वस्त्र और सफेद माला व पूर्व दिशाकी तरफ मुख करके बैठना चाहिए । कष्ट निवारणके लिये उत्तर दिशाकी तरफ मुख करके वैठना और लाल आसन लाल वस्त्र लाल ही माला लेना चाहिए । मारण उच्चाटन आदि कर कार्यमें भी लाल वस्त्र आदि काममें आते है और उत्तर दिशा पश्चिम दिशा व दक्षिण दिशाकी तरफ मुख करके वैठे। पीले वस्त्र व आसनादिका उपयोग भी शान्ति तुष्टि पुष्टि ऋद्धि वृद्धिके लिए करते है और पश्चिम दिशामें मुख करके बैठे तो भी चल सकता है, जिसका कुछ खुलासा विधान प्रकरणमें करेंगे। ____ आसनके रंग जाननेके वाद आसन सिद्ध करना सीखना चाहिए, आसन वैसे तो चोरासी प्रसिद्ध हैं, उन सबका उल्लेख करना हमारी शक्तिसे बाहर है, लेकिन उपयोगी आसन जिनको गृहस्थ कर सके उन्हींका वर्णन करेंगे। आसनों से पर्यङ्कासन, वीरासन, वज्रासन, पद्मासन, भद्रासन, दण्डासन, उत्कटिकासन, गौदो Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यातन प्रकरण हिकासन, और कायोत्सर्गासन, यह नौ प्रकारके आसन गृहस्य सुगमतासे कर सकता है। पहला पर्यवासन जिसे मुखासन भी कहते , यह आसन बहुत ही आरामसे सिद्ध हो सकता है, जिसको इस वरद्दसे करते हैं कि दोनों जलाके नीचे का भाग पावके उपर करके बैठे याने पारखी लगाकर बैठे और दाहिना व पाया हाय नाभि कमलके पासमें ध्यान मुद्रामें रखे तो पर्यङ्कासन बन जाता है। दाहिना पार वायी जड्डा पर व चाया पाव दाहिनी जहा पर रख कर स्थिरतासे बैठे तो चीर।सन बन जाता है, और वीरासनमेंही पीठको तरफसे लेकर दाहिने पावका अगुठा दाहिने हाथसे और वायें पावका अड्गुठा बायें हाथसे पकडे तो चीरासनका बनासन बन जाता है। दोनो जडाफो परस्पर मायमें सम्बन्ध कर बैठे तो पदमासन बनता है। पुरुप चिसके आगे पारके दोनो तलिए मिलाकर उनके उपर दोनो हायकी उगलिया परस्पर एकके साथ एक याने कर सम्मेलन करनेके पाद दशी उगलिया ठीक तरह दीखती रहे इस भकार दाय Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ श्री नवकार महामंत्र - कल्प जोड कर बैठना उसका नाम भद्रासन है । जिस आसनमें बैठनेसे उद्गलियां गुल्फ व जङ्घा भूमिसे स्पर्श करे इस प्रकार पत्रोंको लम्बे कर बैठना उसको दण्डासन कहते हैं । गुदा और एडीके संयोगसे वीरता पूर्वक बैठे उसको उत्कटिकासन कहते हैं । गाय दूहने को बैठते हैं उस तरह बैठ ध्यान करना उसको गौदोहिकासन कहते हैं । खडे खडे दोनों भुजाओंको लम्बी कर घुटनेकी तरफ बढाना या बैठे बैठे कायाकी अपेक्षा नहीं रख कर ध्यान करना उसको कायोत्सर्गासन कहते हैं । इस तरहका आसन धार्मिक क्रियामें करनेकी प्रथा प्रचलित है । ध्यान करनेको खटे रहते हैं उस समय हाथोंको दाहिनी बांयी ओर ज्यादे फैलाना नहि चाहिए, सीधे हाथ रख कर खडे रहते समय पावोंकी उगलियोंके बीचमें चार अङ्गुल अन्तर रखना व एडीयोंके बीच में चार अङ्गुलसे कुछ कम अन्तर रख कर खडे रहना चाहिए। इस तरहसे खढे रहने से जिनमुद्रा बन जाती है और ध्यान करने में यह बहुतही उपयोगी है, अतः अनुकुलता व निजके सघयन-शक्ति देखकर आसन सिद्ध करलेना चाहिए । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३. आसन प्रकरण ___ ध्यान करने के लिए बैठे तय झुक कर अथवा शरीरको शिथिल बना कर नहीं बैठना चाहिए, बिलकुल स्टार होकर इस तरह चैठना कि जिससे वासकी नली सीधी रहे और श्वास रोकने व निका. लनेमें वाधा न आवे इस तरहसे सुखासन पर जो बैठते है उनका ध्यान अच्छा जमता है। ध्यानशक्तिके प्रभावसे तीन लोकको विजय कर मोसमुख पा सकते है । इस लिए व्यान शक्ति पर श्रद्धा रखना चाहिए और ध्यान करते समय अनिवार्य सङ्कट सहन करना पड़े तो भी दृढ चित्त रह कर एकाग्रता सहित ध्यान करते रहना, आत्मविश्वास रखना, ज्ञानियोके वचनको सत्य मानना वो अपश्य उच्च पद माप्त होगा। कितने भाई कहा करते है कि क्या कर मन वशमें नही रहता इस लिए ध्यान करने में स्थिरता नही आती। इस तरहका कहना स्वच्छन्दताका है। मन तो वशमें रहता है किन्तु जप-ध्यान करते समय हम नहीं रख सकते । अगर मन कशमें नहीं रहता हो तो रपया गिनते दस्त नोट सम्भालते वरत, Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - पृष्ठ-४५ (: : (: (:.( "RC ॐमें चोवीस जिन स्थापना Krishna Pintery. Ratanpoic Ahmeda had Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प ॐनमः सिद्धेभ्यः ॐनमः पञ्चपरमेष्टिभ्यो नमः श्रीनवकार महामन्त्र फल्प लिरयते । ॥ यात्मशुद्धि मंत्र ॥ ॥ ॐ ही नमो अरिनताण ॥ ॥ॐही नमो सिद्धाण ॥ ॥ॐ ही नमो आयरियाण ॥ ॥ॐही नमो स्व.झायाण || ॥*ही नमो रोस यसाहण ॥ श्रीनवकार महामन्त्र पल्पमें से किसी भी जापफी शुरुमात फरनेसे पहले आत्मशुद्धि के लिए महलके हेतु मुत उपरोक्त मनकी दस मारा अवश्य फेरना Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ श्री नवकार महामंत्र कल्प चाहिए जिससे मङ्गलिक कार्यकी सिद्धिमें सहायता मिलेगी। ॥ इन्द्राव्हाहन मंत्र ॥ ॐ ही वनाऽधिपतये आँ ह्रा ए हूँ ह्रौ यूँ हूँ क्षः ॥२॥ प्राण प्रतिष्ठाके लिए आहवानन करनेको उपरोक्त मंत्र बताया है, इस मंत्रका इक्कीस जाप करके प्राण प्रतिष्टा करले ने बाद इसी मंत्र द्वारा निजकी चोटी (शिखा) जनेऊ कङ्कण कुंडल अंगुठी, वस्त्र आदिको मंत्रित करके सर्व सामग्रीको शुद्ध कर लेना चाहिए। ॥ कवच निर्मल मंत्र ॥ ॐ ही श्री बद वद वाग्वादिन्यै नमः स्वाहा ॥३॥ ___ कवच दो प्रकारके बताए गए हैं, एक तो यंत्र जिसको मादलियेमें रखते हैं और वह अष्टगंधसे भोजपत्र पर लिखा हुवा होता है, दूसरा श्री सिद्धचक्रयंत्र जिसका आलम्बन लेकर ध्यान करनेको Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामन कल्प बैठते हैं, जिसमें मत्राक्षर आदि होते हैं और कई तरहकी स्थापनाओंसे मुशोभित होता है। ऐसे कचचको उपरोक्त मन द्वारा निर्मल बनाना चाहिए । ॥ हरत निर्मल मन ।। ___ॐ नमो अरिहन्ताण अन्देवि प्रशस्तहरते हूँ फट् स्वाहा ॥१॥ - इस मत्रका चोल कर निमके हाथोंको धूपके अथवा अगरबत्तीके वे पर रख कर शुद्ध करना चाहिए। ॥ फाय शुद्धि मन ॥ णमोमपापलयकरि ज्वालासह सम्वरित मापाप जहि जहि दह दह क्षा क्षी क्षौ क्षक्षीरधरले अमृतसम्भवे बधान यधान हूँ फट् स्वाहा ॥५॥ पापकों का नाश करने के लिए अन्तरायकर्मको मिटाने के रिए और शरीरको शुद्ध करने के हेतु अत.करणको शुद्ध करनेकी भावनाके लिए उपरोक मरका जाप करना चाहिए जिससे तत्काल सिद्धि होगी। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प ॥ हृदय शुद्धि मंत्र ॥ ॐ ऋषभेण पवित्रेण पवित्रीकृत्य आत्मानं एनीमहे स्वाहा ॥६॥ प्रत्येक मंत्र साधनके काममें अंतःकरणको शुद्ध रखने की अति आवश्यकता है इस लिए इस मंत्रका जाप करना चाहिए, और ईर्ष्या कुविकल्प चार कषायका त्याग करना, झूठ नहीं बोलना और हृदयको निर्मल बनाना । ॥ मुख पवित्र करण मंत्र ॥ ૪૮ U ॐ नमो भगवते झौ ह्री चन्द्रप्रभाय चन्द्रमहिताय चन्द्रमूर्त्तये सर्वसुखप्रदायिने स्वाहा ॥ इस मंत्र द्वारा मुख पवित्र बनाना जिससे चेहरे पर गम्भीरता, सरलता, नम्रता, सुशीलता, सभ्यता आदिका भाव मुखपर झलकता रहे जिससे सज्जनताका परिचय हो जाय और कृत्रिमताका भास न होने मावे | ॥ चक्षु पवित्र करण मंत्र ॥ ↓ ॐ ह्री क्षी महामुद्रे कपिलशिखे हूँ फट् स्वाहा ||८|| Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प ____उपरोक्त मनद्वारा नेत्र पवित्र करना चाहिए, और आमि स्नेहभाव, सरलता, भद्रिकता, भव्यता, के भावका प्रकाश हो, इस तरहसे दृष्टि रखना चाहिए । दृष्टि सिद्धिसे बहुत बड़े काम सिद्ध हो सकते हैं। मंत्र साधनमें दृष्टियोग रहुत सहायक होता है, ध्यान जमाने के लिए चित्तकी स्थिरताके लिए, दृष्टि स्थिर रखनेका प्रयल करना चाहिए, दृष्टि सिद्धि हो जाय तो उच्च स्थितिमें आते देर नही लगती, उत्कर्ष अवस्थामें आनेके लिए यह साधन अमूल्य समझना चाहिए। ॥ मस्तर्फ शुद्धि मध ॥ ॐ नमो भगवती ज्ञानभूतिः सप्तशतक्षुकादि महाविद्याधिपतिः विश्वरूपिणी ही है क्षो क्षा शिरस्त्राणपचित्रीकरण ॐ णमो अरिहताण हृदय रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा ॥९॥ ज्ञान ध्यान मत्र तत्र साधन प्रयोग आदि तमाम कामि दिमागी ताकतकी आवश्यक्ता है जहा मगर जशक्तिका अभाव होता है वहा किसी तरह की Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प साधना सिद्ध नहीं हो सकेगी इस मंत्रद्वारा मस्तिष्क निर्मल करना चाहिए जितनी आवश्यकता हृदयशुद्धिकी है उतनी ही मस्तिष्क शुद्धि की है मगजकी स्थिरता साध्यविन्दुको तत्काल सिद्ध करती है। । ॥ मस्तक रक्षा मंत्र ॥ ॐ णमो सिद्धाणं हर हर विशिरो रक्ष रक्ष हँ फट् स्वाहा ॥१०॥ - मंत्रका आराधन करते समय कोई देव दानव मगजकी स्थिरताको खराव न करदे इस हेतुसे इस मंत्र द्वारा मस्तक रक्षा की भावना रखना चाहिए। ॥ शिखा बन्धन मंत्र ॥ ॐ णमो आयरियाणं शिखां रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा ॥११॥ इस मंत्रको बोल कर शिखा-चोटीको पवित्र करना मंत्र बोलते जाना और चोटीको लपेटते रहना, चोटीके गांठ नही लगाना सिर्फ लपेट करही स्थिर कर देना। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प ५१ || मुख्य रक्षा मंत्र ॥ ॐ णमो उवज्झायाण महि एहि भगवति वज्र कवच वत्रिणि रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा ॥ १२ ॥ मुखके अवयवोको किसी तरहका नुकसान न पहुचे, देव दानव द्वारा किसी प्रकारकी पीढा न होने पावे इस हेतु इस मत्रका ध्यान करना । || इन्द्रस्य कवच मन ॥ ॐ णमो लोग सव्वसारण क्षिम साधय साधय वज्रहस्ते शूलिनि दुष्ट रक्ष रक्ष आत्मान रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा ॥१३॥ किमी दुष्ट मनुष्यकी तरफसे सताप पीडा आई दो या आने वाली हो तो इस मत्रसे मिट जाती और निजके आमाकी रक्षा होती है । || परिवार रमा मत्र ॥ ॐ अरिहय सर्व रक्ष रक्ष हँ फट् स्वाहा ॥ इस मंत्र द्वारा कुटम्प परिवारकी रक्षाके लिए ध्यान करना चाहिए कोई आपत्ति सकट हो तब उपयोग करे । Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ श्री नवकार महामंत्र कल्प ॥ उपद्रव शांति मंत्र॥ ॐ ह्री क्षी फट् स्वाहा किटि किटि घातय घातय परवितान् छिन्द्धि छिन्द्धि परमंत्रान् भिन्द्धि भिन्द्धि क्षः फट् स्वाहा ॥१५॥ किसी शठ पुरुपकी ओरसे मानव प्रकृति द्वारा या मंत्र प्रयोग द्वारा, भूत प्रेत द्वारा कष्ट आया हो या आनेवाला हो तो उपरोक्त मंत्र सारे कष्टोंको रोक देता है, यह मारण उच्चाटन मुंठ आदिको भी रोक सकता है। । ॥ पञ्चपरमेष्टि मंत्र ॥ ॐ अ. सि. आ. उ. सायनमः ॥१६॥ इस पञ्च परमेष्टिमंत्रका पटनावर्त-मुद्रा से जो. आगे आवर्त प्रकरणमें बताई गई है उस पर ध्यान करे तो मनोवाञ्छित फलकी प्राप्ति होती है। यह महा कल्याणकारी मंत्र है, इसमें अनेक प्रकारकी सिद्धियां समाई हुई है जो मनुष्य कर्मक्षय करनेके लिए इस मंत्रका ध्यान करना चाहते हैं वह शावतसे करेंगे तो उनको अधिक लाभ होगा। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३ भी नवकार महामन फल्प ॥ महारक्षा सर्वोपद्रव शाति मत्र ॥ नमो अरिहन्ताण शिखायां। नमो सिद्धाण मुखाचरणे । नमो आयरियाण अङ्गरक्षायां । नमो उवज्झायाण आयुधे । नमो लोग सवसाहण मौर्वी । एसो पञ्चनमुकारो-पादतले वजशिला सयपायपणासणो, चञमयप्राकार चतुदिक्षु मङ्गलाणचसम्वेसि,खादिरागारखातिका, पढम हवइ महल, वप्रोपरि वज्रमयपिधान १७ ___ यह महा रक्षामत्र तमाम तरहके उपद्रवको हटानेवाला है इसका उच्चार करते समय शिखा अर्थात् मस्तक-चोटीकी जगह हाथ लगाना मुखावरण कहते मुख पर हाथ फेरना, अंगरक्षा कहते शरीर पर हाय फेरना इस तरह इसका विधान जो सकली. करण रूप बताया गया है जिसका स्मरण बहुतही लाभदाई होगा हर वरहके विघ्न नाश होंगे। ॥ महामत्र ॥ __ॐ णमो अरिहन्ताण, ॐ हृदय रक्ष रक्ष हूँ फट स्वाहा । ॐणमों सिद्धाण ही शिरो रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा । ॐ णमो आयरियाण हूँ शिखा रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वारा । ॐ णमो उव Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प ज्झायाणं है एहि पहि भगवति वज्रकवचे वज्रपाणि रक्ष रक्ष हूँ फट् स्वाहा । ॐ णमो लोए सव्वसाहूणं हः । क्षिप्रं साधय साधय वज्रहस्ते शलिनि दुष्टान् रक्ष रक्ष हँ फट् स्वाहा । एसो पञ्चनमुक्कारो वज्रशिलाप्राकारः । सव्वपावप्पणासणो वप्रोवज्रमयो मङ्गलाणं च सव्वेसिं खादिरांगारमयीखातिका । पढमं हवइ मङ्गलम् वप्रोपरिवज्रमय पिधानं ॥१८॥ ५४ उपरोक्त मंत्र चमत्कारी है इसमें सकलीकरण भी आ गया है, इसके प्रभावसे शांतिका साम्राज्य होगा और तमाम तरह के विघ्न नष्ट होंगे ऋद्धि सिद्धिदाता और मङ्गलिक मंत्र है | ॥ वशीकरण मंत्र (१) ॥ ॐ ह्रीं नमो अरिहन्ताणं, ॐ ही नमो सिद्धाणं, ॐ ही नमो आयरियाणं, ॐ ही नमो उवज्झायाणं, ॐ ह्री नमो लोए सव्वसाहूणं, ॐ ह्रीं नमो णाणस्स ॐ ह्रीं नमो दंसणस्स; अमुकं मम वशी कुरुकुरु स्वाहा ॥१९॥ A Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प ५५ इस मनकी साधना करनेके बाद जिसको आधीन करना हो उसका नाम "अमुक " के बजाय छेकर जाप किया जाय तो सवा लक्ष जाप हो जाने पर सिद्ध होता है, और जब कार्यका मसग आवे तर वीस बार जाप करे और मति जाप नये वस्रके या पगडीके एक गांठ देता जाय और खोल कर फटकारता जाय तो कार्य की सिद्धि हो जाती है । ॥ वशीकरण मन्त्र (२) ॥ ॐ नमो अरिहन्ताण, ॐ नमो सिद्धाण, ॐ नमो आयरियाण, ॐ नमो उवज्झायाण, ॐ नमो लोग ससाण, ॐ नमो नाणस्स, ॐ नमो दसणस, ॐ नमो चारितस्स, ॐ ही मैटो वशकरी ही स्वाहा ॥२०॥ उपरोक्त मनका साधन करके जल वगैराह मनित करके पीलाने से या कोई वस्तु खिलानेसे प्रयोजन सिद्ध होता है। लेकिन अकार्यके हेतु यह मन काममें न लिया जाय समविवन्त आत्माको कार्य तरफ ही दृष्टि रखना चाहिए । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ श्री नवकार महामंत्र कल्प ॥ वशीकरण मंत्र (३) ॥ ॐ ह्री नमो लोए सव्व साहूणं ॥२१॥ इस मंत्रको सिद्धकर उत्तर क्रियामें ऐं ह्रीं के साथ जाप करके वस्त्रके गांठ देता जाय और १०८ वार गांठको शिलापर फटकारता जाय तो कार्यसिद्ध होता हैं, वस्त्र नया और शुद्ध होना चाहिए । ॥ बन्दीगृह मुक्त मंत्र ॥ साध्वस एलो मोण, णंयाज्झावर मोण, णंयारियआ मोण, गंद्धासि मोण, णंताहंरिअ मोण ||२२|| इस मंत्र को विपर्यास कहते हैं, इसको सिद्ध करनेके बाद जाप किया जाय तो बन्दीखानेसे तत्काळ छुटकारा हो जाता है चित्त स्थिर रख कर जाप करना चाहिए । ॥ सङ्कटमोचन मंत्र ॥ ॐ ह्रीं नमो अरिहन्ताणं, ॐ ही नमो सिद्धाणं, ॐ ह्रीं नमो आयरियाणं, ॐ ह्रीं नमो उवज्झायाणं, ॐ ही नमो लोए सव्वसाहूणं W ॥२३॥ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थी नवकार महामन कल्प इस मत्रका साहे वारह हजार जाप करनेके बाद नवाक्षरी मत्रको सिद्ध कर लेवे । नाक्षरी मन ॥ ॐ ही नमः अहं क्षी स्वाहा ॥२४॥ इस मंत्रका मनमें ही जाप करे तो दुष्ट मनुप्यका, तस्करका भय मिट जाता है, अनादृष्टि, अतिरष्टिमें मी इस मत्रका उपयोग करे तो चमत्कार बताने वाला है। महाभयके समय या मार्गमें चोरादिके भयको निवारण करने के लिए इस मका जाप करता जाय और चारों दिशामें फुक देवा जाय दो भय मिट जाता है। ॥ सर्वसिद्धि मन ॥ ॐ अरिहन्त सिद्ध आयरिय उवज्झाय सब्बसाह, सव्वधम्मतित्थयराण, ॐ नमो भगवण, सुयदेवयाण, सतिदेवयाण, सव्वपधयणदेवाण, पञ्चलोगपालाण,ॐ हीअरिहन्तदेव नमः ॥२५॥ इस मत्रको सिद्ध करनेके लिए देवस्थान या किसी और जगह शुद्ध देख कर बैठना चाहिए, सर्व Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ श्री सरतरराष्ट्रीय शानी विकासहामंत्र कल्प सिद्धिका भण्डार है । कठिन कार्यके समय विधि सहित जाप करने से कष्ट मिटता है, और सात बार मंत्र बोलकर के गांठ लगाता जाय तो तत्काल चमत्कार बताता है । व्याघ्रादि हिन्सक प्राणीका या अन्य कारका भय उपस्थित हुवा हो तो नष्ट हो जाता है । 11 वैरनाशाय मंत्र || हसास एलो मोण, णंयाज्झावर मोण, णंयारियआ मोण, द्वासि मोण, णंताहंरिअ मोण ||२६|| इस विपर्यास मंत्रका कथन पहले कर चुके हैं । लेकिन विधान दूसरा होनेसे फिर उल्लेख किया जाता है। इस मंत्र का सवालक्ष जाप विधि सहित करनेके बाद चोथ या चवदसके दिन साधना करे और सिद्धि. क्रिया के बाद परमेष्टि नमस्कार गिनकर धूलकी चिहुँटी भरकर प्रक्षेप करने से वैरभाव - शत्रुता मिट जाती है और परस्पर प्रेम भाव बढता है । ॥ मन चिन्तत फलदाता मंत्र ॥ ॐ ह्रीं ह्री हैं हो हः अ. सि. आ. उ. सा. नमः ||२७|| Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामन कल्प १९ इस मनकी एक माला प्रतिदिन फेरना चाहिए, जो इसका आराधन करेंगे उनको मनचिंतित फल्की प्राप्ति होगी । लेकिन सिद्धि अवश्य करना चाहिए, बिना सिद्धि किए मन फल नही देते । || लाभदायक मन ॥ ॐ नमो अरिहन्ता । ॐ नमो सिद्धाणं । ॐ नमो आयरियाण । ॐ नमो उवज्झायाण । ॐ नमो लोए सव्यसादृण।ॐ हाँ ही हूँ हो ह स्वाहा ||२८|| इस मनको शावर्त्तसे या पटनावर्चसे गिनना चाहिए इसका जाप उच्चार रहित अर्थात् मनमें ही करना चाहिए होट जीम ही नहीं और जाप होता रहे तो विशेष लाभदाई होगा । रक्षा मने !! पदम चट मंगल वज्रमयी शिला मस्तकापरि नमो अरिहन्ताण अट्गुष्ठयोः नमो सिद्वाण तर्जन्योः नमो आयरियाण मध्यमयोः नमो उवज्झायाण अनामिकयोः नमो लोए सव्य Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प साहणं कनिष्ठिकयोः एसो पञ्चनमुक्कारो वन्नमयं प्राकारं सवपावप्पणासणो जलभृतां खातिकां, मङ्गलाणं च सवेस्सि खादिरागारपूर्णा खातिकां, आत्मानं निश्चिन्त्य महाशकलीकरणं ॥२९॥ यह अंगरक्षा मंत्र सकलीकरण सहित है इसका विधान गुरुगमसे जानना चाहिए। ॥ अनुपम मंत्र॥ ॐ हाँ ही हौ हः अ. सि. आ. उ. सा स्वाहा ॥३०॥ इस अनुपम मंत्रको चित्त स्थिररखकर कायशुद्धिकर विधि सहित जाप करे तो अनुपम फलके देने वाला है। ॥ सर्व कार्य सिद्धि मंत्र ॥ ॐ ही श्री अर्ह अ. सि. आ. उ. सा. नमः ___ यह मंत्र सर्व कार्यकी सिद्धि करने वाला है शुद्धोचारसे स्थिरता पूर्वक आराधन करना चाहिए। ॥ वन्दीमुक्त मंत्र ॥ ॐ नमो अरिहन्ताणं उम्ल्यूँ नमः, ॐ पा३॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामत्र कल्प नमो सिद्धाण इम्ल्यूँ नमः, ॐ नमो आयरियाणं रम्ल्यूँ नमः, ॐ नमो उवज्झायाण झर्य नमः, ॐनमोलोग सव्यसादण झाल्ये नमः, अमुकस्य यदिनो मोक्ष कुरु कुरु स्वाहा ॥३२॥ इस मनका साधन फरते समय मनको पट्ट पर अष्टगधसे लिखना, पह सोनेका हो चादीका वायेका या जैसी शक्ति हो टेवे । मनलिख कर पट्टको याजोट पर स्थापित करे, आलम्बनमें श्रीपार्थनाय भगवानकी प्रतिमा अथवा मनमोहक चित्र स्थापित कर सामने वैठे, चित्रको नासिका सीधमें ऐसे ढगसे स्थापित करे कि जो ठीक मध्यमे आवे याने चित्रका मान्य और नासिकाका मन्य सीधा मिला हुचा रहे। बाद में धूप दीप आदि सामग्री जो जयणा सहित काममें छेनेकी हो वह लेवे और पाचसी घुप्प सफेद जाई के लेकर पुष्प छायम टेवा जाय और मन बोलता जाय, मत्र पूर्ण होते ही पुष्पको उन स्थिविमें मत्रके उपर चदाता जाय तो बन्दीवानका इटकारा होता है। बन्दीवानके लिए फोई दूसरा जाप करे तो भी यह मात्र काम देता है। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प ॥ स्वप्ने शुभाशुभ कथितं मंत्र ॥ मंत्र नम्बर ३२ जो उपर बताया है, इसको खडे खडे कायोत्सर्गमें स्थित रह कर ध्यान करे और ध्यान पूरा होने पर किसीसे वोले बिना मौनपने भूमिशय्यापर पूर्वदिशा की तरफ सो जावे तो स्वप्न में शुभाशुभ फलका भास होता है ॥३३॥ દર || विद्याध्ययन मंत्र ॥ अरिहन्त सिद्ध आयरिय उवज्झाय सव्वसाह ॥ ३४ ॥ इस मंत्र का जाप करनेसे विद्याध्ययनमें सहायता मिलती है, और द्रव्य प्राप्ति व सुखके देनेवाला है । || आत्मचक्षु परचक्षु रक्षा मंत्र ॥ ט ॐ ह्रीं नमो अरिहन्ताणं पादौ रक्ष रक्ष, ॐ w ही नमो सिद्धाणं कटिं रक्ष रक्ष, ॐ ह्रीं नमो ७ आयरियाणं नाभि रक्ष रक्ष, ॐ ही नमो उव w ज्झायाणं हृदयं रक्ष रक्ष, ॐ ह्रीं नमो लोए Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प ६३ सव्वसादृण ब्रह्माण्ड रक्ष रक्ष, ॐ ही एसो पश्चनमुकारो शिखां रक्ष रक्ष, ॐ ही सव्वपावप्पणासणो आसन रक्ष रक्ष, ॐ ही मगलाण च सच्चेसिं पढम हवइ मङ्गल ||३५|| इस मनकी सिद्धि प्राप्त करनेके बाद इक्कीस जाप करनेसे कार्य सिद्ध हो जाता है इसका विशेष स्पष्टीकरण गुरगमसे जानना चाहिए, इसका विशेष खुलासा असल प्रतमें नहीं है । इस मन्त्रमें सकलीकरणका भी समावेश है । || पथिक भयहर मध !! ॐ नमो अरिहन्ताण नाभौ, ॐ नमो सिद्धाण हृदये, ॐ नमो आयरियाण कण्ठे, ॐ नमो उवज्झायाणं मुसे, ॐ नमो लोग सच्चसाहण मस्तके, सर्वापु अम्ह रक्ष रक्ष हिलि हिलि मानहिनी स्वाहा ॥ रक्ष रक्ष ॐ नमो अरिहाण आदि ॐ नमो मोहिणी मोहिणी मोहय मोहय स्वाहा ||३६|| इस मत्रको साध्य करे और मार्गमें चलते समय Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प विकट पंथ या निजगृह में अथवा अन्यत्र चोरादि उपद्रव उत्पन्न हुवा हो उस समयमे इस मंत्र का जाप करनेसे उपद्रव शान्त हो जाता है और भय चला जाता है । इस मंत्र में शक्ति तो इतनी है कि चौरादिका स्तम्भन हो जाता है, किन्तु ध्याता पुरुषका पराक्रम हो तब इतनी सिद्धि तक पहुंच सकते हैं । सम्भव है श्री जम्बूस्वामीने इसी मंत्रका उपयोग किया हो ज्ञानीगम्य है । ॥ मोहिनी मंत्र || ॐ नमो अरिहन्ताणं, अरे अरिणि मोहिणि, अमुकं मोहय मोहय स्वाहा ||३७|| इस मंत्र को साध्य करते समय पटिक्रिया करके अमुक नाम सहित जाप करे और प्रत्येक मंत्र सफेद पुष्प हाथमें लेकर बोलता जाय और सामनेके आलम्बन पर चढाता जाय तो मोहिनि मंत्र सिद्ध होता है पटिक्रिया गुरुगम से जानना चाहिए । ॥ दुष्ट स्तम्भन मंत्र ॥ ॐ ही अ. सि. आ. उ. सा सर्वदुष्टान Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनवकार महामंत्र फल्प ६८ स्तम्भय स्तम्भय, मोहय मोहय, अधय अंधय, मुख्य मुख्य, गुरु कुरु ही दुष्टान् ठः ठः ठः ||३८|| इस मत्रकी साधना करते समय प्रातःकाल मध्याह और सन्ध्या समय जाप करना चाहिए पूर्व दिशाकी तरफ मुस रखना, और उत्तर किया करें ? तर ग्यारहसो जाप करने से सिद्धि होती है, इसकी साधना मे “दलदारभ्यामुमुवे" आदि क्रियाए करना चाहिए सो गुरुगमसे ज्ञात करना । ॥ व्यन्तर पराजय मंत्र || उपर बताया हुवा नम्बर ३८ वाले मनके प्रभाबसे व्यन्तरका उपर किसी मानमे महल्में या मनुष्य स्त्री आदिमें हो तो केवल ग्यारहसो जाप विधि सहित करने से उपद्रव मिट जाता है । इसकी साधना इशारणमें मुख रखना चाहिए और आठ रात्रि तक आधीरात के समय साधन करे तो व्यन्तरादि भय मिट जाता है । ॥ सी गया मंत्र ॥ ॐ नमो अरिहन्ताण, ॐ नमो सिद्धाण, Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ श्री नवकार महामंत्र कल्प ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमो लोए सव्व साहूणं झुल झुल कुल कुलु चुलु चुल मुल स्वाहा ||४०|| इस मंत्रका आराधन जीवदया, जीवरक्षा, बंदीवानको मुक्त कराने के हेतुसे करना चाहिए साधन करते समय थाली में या पट्ट पर जो सप्तधातुकी हो या ताम्बेकी हो उस पर अष्टगन्धसे मंत्र को लिखे सवालाख जाप करे, जब जाप पुरे हो जाय तब सिद्धिक्रियामें चलिकर्म अर्चनादिका विधान वरावर करे तो देव सहायक होते हैं, और जीवरक्षाके समय अमुक संख्या में जाप करनेसे विजय होता है । || सम्पत्ति प्रदान मंत्र ॥ ॐ ह्रीं श्री क्की अ. सि. आ. उ.सा. चुलु चुल झुल झुल कुल कुलु मुल मुलं इच्छियं मे कुरु कुरु स्वाहा ॥४१॥ इस मंत्र का चोबीसहजार जाप करना चाहिए, विधि सहित जाप हो जाने वाद उत्तर क्रिया करना और बादमें एक माला नित्य फेरते रहना सर्व प्रकारकी सम्पत्तिका लाभ होगा । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प ॥ सरस्वती मन्त्र ॥ ६७ ॐ ॐ' सि. आ. उ. सा नमोई वाचिनी, सत्यवाचिनी वाग्वादिनी वद वद् मम चाचया, ही सत्य हि सत्य यहि सत्य वद सत्य वद अस्खलितप्रचार तदेव मनुजासुरसहसी हो अर्ह अ. सि. आ. ७. सा. नमः स्वाहा ॥४२॥ यह मंत्र सरस्वती देवीकी आराधनाका है इस मंत्र द्वारा श्रीमान् वप्यभट्टसूरिजी महाराजने सरस्वती देवीको प्रसन्न की थीं, इस भत्रका एक लाख जाप करने से सिद्ध होता है । ॥ शांति दाता भव ॥ ॐ अ अ. सि. आ. उ. सा. नमः ॥४३॥ इस मनका नित्य स्मरण करनेसे शान्ति होती है गृह कलह आदिका नाश होता है, और सम्पत्ति आती है । ॥ मंगल मंत्र ॥ ॐ अ. सि आ. प. सा. नमः ॥४४॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ श्री नवकार महामंत्र कल्प ___ यह मंत्र तुष्टि पुष्टि देता है नित्य स्मरण करनेसे सुख मिलता है। ॥ वस्तु विक्रय मंत्र ॥ नहट्ठमयट्ठाणे पण कम्महनसंसारे। परमट्टनिहियट्टे अट्टगुणाधीसरे बंदे ॥४५॥ इस मंत्रकी साधना स्मशानभूमिमें कृष्णपक्षकी चतुर्दशीके दिन करते हैं । सन्ध्याकालके वाद डेढप्रहर रात्रि गये आरम्भ करे। धूप दीप जयणा सहित रक्खे, और कटपत्र तेल गुगल आदिका होम जयणा सहित करे, प्रतिदिन दोहजार जाप कर सिद्धि प्राप्त करे वादमें जिस वस्तुको वेचना हो तब इक्कीस जापसे मंत्रितकर विक्रय करे तो अच्छा मूल्य आवेगा। ॥ सर्व भय रक्षा मंत्र ॥ - ॐ अर्हते उत्पत उत्पत स्वाहा त्रिभुवनस्वामिनी, ॐ थम्भेइ जलजलणादिघोरुषसग्गं मम अमुकस्य अवाय णासेउ स्वाहा ॥४६|| इस मंत्रको लिखने के लिए चन्दन या अष्टगंध आदि सामग्री तैयार करके एक वाजोटपर रखना और धूप दीप जयणा सहित रख कर एक माला Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नत्रकार महामन फल्प श्रीनवकार मत्रकी फेरनेके बाद मत्रको लिखना, लिखे वाद पट्टकी पूजन-अर्चन मुगन्धी पदार्थ व पुष्पादिसे करके मत्र सिद्ध करना और भय उपस्थित हो तव अमुफ जाप किया जाय तो भय नष्ट हो जाता है। ॥ तम्बर स्यम्भन मंत्र ॥ ॐ नमो अरिहन्ताण, घणु धणु महाधर्म्यु महाधणु स्वाहा ॥४७॥ __ इस मनका ध्यान ललाटमें चित्तको स्थिर करके करनेसे महालाभ होता है, और इसीके प्रतापसे चोर स्तम्भन हो जाते हैं, और इसी मत्रको पटीक्रिया करते लिखता जाय और वाये हायसे लिखे हुवेको मिटाकर मुष्टि वध करता जाय इस तरहसे अमुक सरयामें लिखे वाद मुष्टि गध कर जाप करे-जाप पूर्ण होते ही मुष्टिको खोल कर दिशामें फैसने जैसा हाथ लम्बा करे तो चोरादि भय नही हो पाता और दृष्टिगत भी नही होंगे। ॥ गुभाशुम दर्शन मन ॥ ॐ ही अर्थ नमः क्ष्वी स्वाहा ॥४८॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प इस मंत्रका जाप करनेसे पहले निजके हाथोंको चन्दनसे लिप्त कर लेवे बादमे एक माला जितना जाप कर मौनपने भुमिशय्या पर सो जावे तो स्वप्नमें शुभाशुभका भास होता है। ॥ प्रश्नोत्तर विजय मंत्र ॥ ॐ नमो भगवइ सुयदेवयाए सव्वसुयमायाए वारसंगपवयणजणणीएसरस्सइए सच्चवायणिसुववउ अवतर अवतर देवी मम सरीरं पविस पुच्छंतस्स पविस्स सब्वजणमयहरिए अरिहन्तसिरिए स्वाहा ॥४९॥ ___ इस मंत्रकी साधना करनेके बाद प्रश्नोत्तरका कार्य हो तव या किसी मुकद्दमेके समय सवाल जवाव करनेसे पहले अमुक संख्यामें इस मंत्रका जाप कर लेनेसे विजय प्राप्त होगा और हर्ष उत्पन्न होगा। ॥ सर्वरक्षा मंत्र॥ ॐ नमो अरिहन्ताण, ॐ नमो सिद्धाणं, ॐ नमो आयरियाणं, ॐ नमो उवज्झायाणं, ॐ नमोलोए सवसाहणं, एसोपञ्चनमुक्कारो, सव्व Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प ७१ पावप्पणासणो, मङ्गलाण च सचेसि, पहम एवइ मङ्गलम्, ॐ ही हॅ फट् स्वाहा ||२०|| इस मन्त्रका स्मरण हरएक कार्यमें सुखदाई होता | नित्यप्रति इस मत्रका ध्यान खूव करना चाहिए सर्व मकारसे आनन्द मङ्गल करने वाला यह मंत्र है । ॥ द्रव्यप्राप्ति मन ॥ ॐ ही अरिहन्ताण सिद्धाण आयरियाण उवज्झायाण साहण मम ऋद्धि वृद्धि समीहित कुरु कुरु स्वाहा ॥५१॥ इस मत्रको नित्य प्रति मातः काल मध्याह और सायकालको मत्येक समय मे वतीसवार स्मरण-ध्यान करे तो सर्व प्रकारकी सिद्धि होकर धन लाभ होता है और हर तरहसे कल्याण होगा । || ग्रामप्रवेश मन ॥ ॐ नमो अरिहन्ताण नमो भगव महाविज्ञाय सत्ता गिरे गिरे चलु मरवाहिनिए स्वाहा ॥५२॥ चन्टाइ चुलु इस मंत्र का जाप पोसकृष्णा दशमी के दिन उप Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ હર श्री नवकार महामंत्र कल्प वास करके करना चाहिए, कमसे कम एकसौ बार तो अवश्य करे और उत्तर क्रिया कर सिद्ध कर लेवे वादमें ग्राम में प्रवेश करते समय इस मंत्रका सातबार जाप करके जिस तरफका स्वर चलता हो वही पांव पहले उठाकर ग्राम प्रवेश करे तो लाभ प्राप्त होता है, साधु मुनिराज स्मरण करें तो लाभ व सन्मान होता है, हर तरहसे आनन्द होगा । ॥ शुभाशुभ जानाति मंत्र ॥ ॐ नमो अरिह० ॐ भगवओ बाहुबलीस्स य इह समस्त अमले विमले निम्मलनाणपयासिणि ॐ नमो सम्बभासह अरिहा सव्वभास केवली एएणं सव्ववयणेणं सव्व होउ मे स्वाहा ॥५३॥ इस मंत्र का ध्यान कायोत्सर्गमुद्रामें खडे रह कर करे और ध्यान पूरा हो जावे तव भूमिसंधारे सो जावे तो स्वममें शुभाशुभका भास होता है । जाप ऐसे समयमें करना चाहिए कि पूरा होते ही सो जाने से निद्रा जल्दी आ जावे और जाग्रत अवस्थामें दूसरी बातोंका चितवन नही हो । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी नपकार महामन कल्स ____॥ विवाद विजय भन । ॐ हं सः ॐ ही अहेरो श्री अ.मि. आ. अ. सा नमः ॥५४॥ विवाद करते समय उपरोक्त मरका इकीस पार मनमें मौनपने जाप करके विवाद शुरु करे तो विजय माप्त होगा। ॥ उपयाग्न फल मन ॥ ॐनमोअ अ.सि आ. उ.सा णमो अरिरन्ताण नमः ॥२०॥ __ इस मका एफसी गाठ यार स्मरण करनेसे उपवासके फल निवना लाम माप्त होता है। ॥ अग्निभय मन ॥ उपर पत्ता नवे मत्र नम्बर ५ को मिद्धि फरनेके याद २१ दफामत्र द्वारा पानीको मचिन फरक अग्निका उपहार हो उस समर तीन असलीसे या अग्निपेष्टिन जलधारा देंच तो आग उपर गात रो जाता है ॥५॥ Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॐ४ श्री नवकार महामंत्र कल्प ॥ सर्पभयहर मंत्र ॥ ॐ ही अहँ अ. सि. आ. उ. सा. अनाहत विजये अर्ह नमः ||२७|| इस मंत्र की साधना करे तब प्रतिदिन सुबह, दोपहरको और सायंकालको स्मरण करे और प्रत्येक दीवालीके दिन १०८ जाप करे तो यावज्जीव सर्पका भय नही होगा । || लक्ष्मीप्राप्ति मंत्र ॥ 9 ॐ ह्रीं हूँ णमो अरिहन्ताणं हौ ननः ॥ ५८ ॥ इस मंत्र का नित्यप्रति एकसौ आठ जाप करने से लक्ष्मी प्राप्त होती है सुख मिलता है और द्रव्य आता है। ॥ कार्यसिद्धि मंत्र ॥ ॐ ह्रीं श्री क्ली क्लौ ब्लू अर्ह नमः ||१९|| इस मंत्रके जापसे सर्व कार्यकी सिद्धि होती है, साधन करते समय इक्कीस हजार जाप करना चाहिए बादमें एक माला नित्य गिनना चाहिए । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामन कल्प ७५ ॥ शत्रुभयहर मन ॥ ॐ ह्री श्री अमुक दुष्ट साधय साधय अ. सि. आ. उ. सा. नमः ||६०|| इस मत्रकी इक्रीस दिन तक मातःकालमें माला फेरे और उत्तर क्रियाके बाद जब काम हो उस समय अमुक सख्यामें जाप करे तो धनुका भय नष्ट होता है, आपचि व क्लेशका नाश होता है। ॥ रोग, क्षय मंत्र ॥ ॐ नमो सयोसहिपत्ताण, ॐ नमो खेलोसहिपत्ताण, ॐ नमो जल्लोसहिपत्ताण, ॐ नमो सव्वोसहिपत्ताण स्वाहा ॥ ६१ ॥ इस मंत्र के जाप से रोग पीडा मिटती है, न्याधि दिन दिन कम होगी एक माला सबेरेही फेरना चाहिए। ॥ व्रणहर मंत्र ॥ ॐ नमो जिगाण जावयाण पुमोणि भ एणि सनवायेण वगमापच उमाष उमाफुट् ॐ ॐ ठः ठः स्वाहा ॥६२॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प उपरोक्त मंत्रसे राख मंत्रित कर व्रण-जिनको वण भी कहते हैं वालकोंके शरीर पर हो जाते हैं उन पर अथवा शीतलाके वण पर लगावे तो वण सिट जाते हैं। ॥ सूर्यमङ्गलपीडा मंत्र || ॐ नमो सिद्धाणं ।।६३॥ सूरज व मंगलकी दिशा पीडाकारी हो तब उपरोक्त मंत्रका जाप एक हजार रोजाना जहां तक ग्रहपीडा रहे किया करे तो सुख प्राप्त होता है। ॥ चन्द्रशुक्रपीडा मंत्र ॥ ॐ ही नमो अरिहन्ताणं ॥१४॥ चन्द्रमा और शुक्र दोनोंकी दृष्टि पीडाकारी हो तब एक हजार जाप प्रतिदिन करनेसे सुख प्राप्त होता है। ॥ बुधपीडा मंत्र ॥ ॐ ही नमो उवज्झायाणं ॥६६॥ बुधकी दशा हानिकारक हो तब प्रसन्न करनेके ईलए इस मंत्रका जाप एक हजार नित्य करना चाहिए। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामन्त्र कल्प وع ॥ गुरुपीडा मन ॥ ॐ ही नमो आयरियाण ||६६ || गुरुकी दृष्टि हानिकारक हो तब इस मन्त्रका जाप एक हजार रोजाना करना चाहिए । ॥ शनि राहु केतु पीता मत्र ॥ ॥६७॥ ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसा इस मत्रका नित्य एक सहस्र जाप करने से शनि - वर राहू केतुकी दृष्टि हानिकर हो तो मिट जाती है और सुख मिलता है। ॥ चतुराक्षरी मन ॥ " “ अरहन्त " को चतुराक्षरी मंत्र कहते है इसका चारसौ बार जाप करे तो लाभ दाई होता है ॥ ॥ पञ्चानरी मन ॥ 66 अ. सि आ. उ. सा. " इसका पाचसौ बार जप करे तो अति उत्तम है | ॥ पारी मंत्र || "अरिहन्त सिद्ध " इस मत्रका तीनसौ बार जाप करे तो उत्तम है। | Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S4 श्री नवकार महामंत्र कल्प ॥ सप्ताक्षरी मंत्र ॥ ॐ श्री ही अहं नमः ___ इस मंत्रका जाप बहुत ही कल्याणकारी है सर्व शान प्रकाशक सर्वज्ञ समान यह मंत्र है। || पन्द्राक्षरी मंत्र ॥ ॐ अरिहन्त सिद्ध सयोगी केवली स्वाहा ॥ इस मंत्रका ध्यान परम पदके देनेवाला है नित्य करना चाहिए। ॥ पोडाक्षरी मंत्र । अरिहन्त सिद्ध आयरिय उवझाय साहू ॥ इस मंत्रको पञ्चपरमेष्टि व गुरु पञ्चकभीकहते हैं सोलह अक्षर होनेसे षोडाक्षरीके नामसे भी प्रसिद्ध है इसका जाप दो सौ वार करे तो उपवासका फल पाता है। ॥ पञ्च तत्त्व विद्या मंत्र ॥ अ. सि. आ. उ. सा. हाँ ही हूँ हौ है: इस मंत्रसे संसारके तमाम क्लेश दूर हो जाते हैं, इसको पंचतत्त्व विद्याका जाप कहते हैं। Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TRISHNA S पंचपरमेष्टि स्थापना पृष्ठ-७१ 1 回回 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रणवादार ध्यान G ॥ चार शरण मंगल मंत्र || अरिहन्त सिद्ध साह केवलिपन्नतो धम्मो ॥ चार शरण, चार मगल चार लोकोत्तमका यह जाप है जिसका अव्यग्रमनसे जाप किया जाप तो कर्मक्षय हो जाते हैं । प्रणवाक्षर ध्यान मणव अक्षर ॐ को कहते है, मन सङ्कलनामें ऐसा मंत्र नही मिलेगा कि जिसमें ॐ का समावेश न हो यह मनका जीवन है माण है इसका ध्यान करनेके लिए शास्त्रमें बयान आता है कि हृदयकमलमें निवास करनेवाला शब्द जो ब्रह्मके कारण रूप स्वर व्यञ्जन सहित परमेष्टिपदका वाचक है और मस्तक रही हुई चद्रासे झरते हुए अमृतरससे भींजे हुवे महामंत्र मणव अर्थात् ॥ ॐ ॥ का कुम्भकसे चितवन करना, और स्तम्भन करनेमें पीला, वशीकरण कर नेमें लाल, क्षोभ करनेमें परवालेकी कान्ति जैसा, विद्वेपमें काला और कर्मका पाठ करनेमें चन्द्रकी कान्ति जैसा ॐकारको ध्यान करना चाहिए। चीन Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० श्री नवकार महामंत्र कल्प लोकको पवित्र करनेवाला पञ्चपरमेष्टि नमस्कार मंत्रका निरन्तर चिन्तवन करना चाहिए योगी पुरुषोंको और भय भीरु आत्मा के लिए तो यह रत्नचिन्तामणीके समान है, क्योंकि इसमें पञ्चपरमेष्टिका समावेश है इसी लिए कहा है कि पप पञ्च नमस्कारः । सर्वपापप्रणाशनं ॥ मङ्गलानां च सर्वेषां । प्रथमं जयति मङ्गलम् ॥ पांच परमपदको नमस्कार करनेवालेके तमाम पापोंका क्षय हो जाता है, यह पद इसी लिए सर्व प्रकार के मङ्गलमें पहला मंगल माना गया है । यह महामंत्र है और यह मंत्रपद ॐकार दर्शक है अतः इस ॐ का जो ध्यान करता है उसको मनवाञ्छित फलकी प्राप्ति होती है, इस लिए अंकार शब्द सूचक पञ्चपरमेष्टिको नमस्कार करना कल्याणकारी है। इस पदका ध्यान करनेके लिए जो जो मार्ग बताए हैं उनमें से एक मार्ग यह भी है कि नाभिकमलमें स्थित ॥ अ॥ आकार ध्यावे, ॥ सि ॥ सिवर्ण मस्तककमलमें स्थित ध्यावे, ॥ आ ॥ आकार मुखकमलमें स्थित कर ध्यावे, ॥ ॥ उकार हृदयकमलमें स्थित ध्यावे और Alternatiff plugin for Windows Users and Plugger plugin for Linux Users( Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAAAEXXXXXXXXXXXXXX हीमें चोवीस जिन स्थापना IITHHTHHTHHHIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIII - IIIIIIII ******************* Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रणयाक्षर ध्यान सा। साकार काण्ठपितरमे स्थित कर व्याये तो यह जाप सर्व कल्याणके करने वाला है। अतः उपर वताए अनुसार अ. सि. आ उ. सा. यह पाचों पीजाक्षर है और इन पाचोसाकार बनता है जो मनुप्य इनका ध्यान करते है उनको यह मत्र महान् कल्याणके करनेवाला होगा इसी लिए कहा है कि अपार बिन्दु सयुक्त, नित्य ध्यायन्ति योगिन ॥ फामद मोक्षद चेच, अकाराय नमो नम ॥ यह मन धर्म अर्थ काम और मोक्षके देने वाला है इसकी महिमा पारावार है यहा पर सक्षेप स्वरुप बताया है विशेप जाननेकी इच्छा वाले जिशामुओंको चाहिए किशानीयोकी सेवाकर मात करे। हीकारका ध्यान ध्यायेरिसता चपत्रातरष्टवर्गी दलाएको । ॐ नमो अरिहन्ताणमिति वर्णानपिनमात् ॥१॥ मुखके अन्दर आठ कमावाले श्वेत कमलका चिन्तवन करे और उसके आठो कमम्मे अनुक्रमसे “ॐ नमो अरिहन्ताण" इन आठ अक्षरोंको म्यापन करे, और इनमें केसरा पक्तिको स्वरमय बनाये और Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨ श्री नवकार महामंत्र कल्प कर्णिकाको अमृतबिन्दु से विभूषित करे, उन कर्णिकाओंमेंसे चन्द्रविम्वसे गिरते हुवे मुखसे सञ्चारते हुवे प्रभामण्डलके मध्य में विराजित चन्द्र जैसी कान्ति वाले माया वीज " ही ” का चिन्तवन करे, चिन्तवन करनेके बाद पत्रोंमें भ्रमण करते आकाशतलसे सञ्चा रित मनकी मलीनताका नाश करते हुवे अमृतरससे झरते और तालुरन्ध्रसे निकलते हुवे भृकुटीके मध्य में शोभायमान तीन लोक में अचिन्त्य महात्म्य वाले A तेजोमयकी तरह अद्भुत ऐसे इस हीकारका ध्यान किया जाय तो एकाग्रतासे लय लगानेवालेको वचन और मनका मेल दूर करने पर श्रुतज्ञानका प्रकाश होता है । इस प्रकार छे महिने तक अभ्यास करने वाला निजके मुखमेंसे निकलती हुई धूम्रकी शिखाको देखता है । इसी तरहसे एक वर्ष तक अभ्यास किया जाय तो सुखमें से निकलती हुई ज्वालाको देखता है, और ज्वाला देख लेनेके बाद संवेगवान होकर सर्वज्ञ सच्चिदान्द परमात्मा के मुखकमलको देखता है । इतना देख लेने के बाद सतत् अभ्यास करते करते अत्यन्त महात्म्यवाले कल्याणकारी अतिशय सहित Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होकारका ध्यान ८३ भामण्डलके मध्यमें विराजित साक्षात् सर्वज्ञ भगचानको देखता है, और उन सर्वज्ञके विपे मन स्थिर कर निश्चय युक्त लय लगाता रहे तो परिणामकी धारा ऐसी चढ जाती है कि उस मनुप्यके निकटवर्ती मोक्षके मुख उपस्थित हो जाते हैं, और वह परमपद प्राप्त करता है। ही की महिमा अपरम्पार है, इसमें वर्णवार चोवीस जिनेश्वर भगवानकी स्थापना होती है, जो ध्यान करनेवाले के लिए आलम्बन रुप है, ही में अत्यन्त शक्तिका समावेश है, इसको मायावीज कहते हैं मायाका अर्थ लीला या फैलाव होता है, अतः माया बीज अर्थात् अक्षरोंका यह चीज है जिसको चीजरूप सिद्ध करने के लिए "" अक्षरको लिख कर इसके चित्र मुगफिक टुकडे नम्बर चार कैंचीसे काट कर रखना फिर उन पाचो डाहो से स्वर व्यञ्जन अक्षर बना सकते है, ही का जाप कितना लाभदाई है इसके लिए तो जो ज्ञानी गुरु महाराज इम विषयके अभ्यासी हो उनसे पूउना चाहिए यहा तो ममगानुसार किञ्चित स्वरूप बताया गया है। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ श्री नवकार महामंत्र कल्प ध्यान प्रकरण श्रावकका कर्तव्य है कि प्रातःकालमें चार घडी शेष रात्रि रहे तव निद्रा त्याग कर नवकार मंत्रका जाप करे इस मंत्र का विधान बताते हुवे " व्यवहार भाष्य " सूत्रमे लिखा है कि सोते समय खराव स्वम आया हो रागभावसे या द्वेषभावसे आया हुवा स्वम अनिष्ट फलका सूचक हो तो उसको दूर करनेके लिए विस्तर में से उठते ही १०८ उच्छ्वास प्रमाण काउसग्ग करे, जिनको श्वासोश्वास से काउसरग करनेका अभ्यास नही हो उसको चार लोगस्सका काउसग्ग करना चाहिए और श्वासोश्वास से काउसग्ग करनेका अभ्यास करते रहना, जो मनुष्य विस्तर पर ही या पलंग पर बैठे बैठे ही स्मरण करते हैं उनको चाहिए कि मनमें ही पञ्चपरमेष्टिका व्यान किया करे, वचन उच्चार करके जो जाप करते हैं, उनको चाहिए कि विस्तरका त्याग कर कपडे बदल कर जमीन पर आसन बिछा कर पूर्व ' या उत्तर दिशाकी तरफ मुंह करके नवकार मंत्रका ध्यान करने के लिए बैठे । ध्यान खडे रहकर काउसग्गमुद्रासे या बैठे बैठे किसी भी तरहसे करें लेकिन Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्यान प्रकरण ८५ मन परिणामको स्थिर रखनेके लिए आखें वध कर ध्यान करे मनको साफ रखे ममता मायाका त्याग करे, समभाव आलम्पित हो विपयादि विलाससे विराम पाकर शान्ति के साथ ध्यान करे। जिन मनुप्योंको समभाव गुण प्राप्त नही हुवा है उनको ध्यान करते समय कई प्रकारकी विटम्बनाऐं उपस्थित हो जाती है, इस लिए समपरिणामी रहनेका अभ्यास करना चाहिए, क्योकि समपरिणाम विना यान नहीं होता और पिना यानके निष्कम्प समता नही आ सकती इस लिए समता गुणमें रमण करता हुवा व्यान मन रहने का प्रयत्न करना चाहिए। स्थान, शरीर, वस्त्र और उपकरण शुद्धिकी तरफ भी पूरा लक्ष रखना चाहिए, क्योंकि पवित्रतासे चित्र प्रसन्न रहता "है, और साधना सिद्ध होती है। जो मनुष्य हृदयको पवित्र किए विना ध्यान करते हैं उन्हें सिद्धि नही होती। एक राजा महाराजा साहबको मकान पर चुलाए जाय तो घरकी सफाई और सजाई कितने दरजे की जाती है और परिवाकी तरफ कितना लक्ष दिया जाता है जो किसीसे डिपा हुवा नही है, तो वीलोकके-नाथको हृदयमें प्रवेश करते समय Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ श्री नवकार महामंत्र - कल्प मनोवृत्ति कितनी निर्मल होना चाहिए जिसकी कल्पना पाठक खुदही कर सकते हैं। जाप करने वाला मौन रह कर जाप करे तो विशेष फलदाई होता है, जो मौनपने जाप करते हुवे थकित हो जाते हैं उनको चाहिए कि जाप बन्धकर ध्यान करने लगें इसी तरह ध्यानसे थक जाने पर जाप और दोनोंसे थक जाने पर स्तोत्र पढे, हस्त्र दीर्घका ध्यान रखते हुवे भावार्थ समझते जांय और जिस राग-रागिणी, छन्दादिमें स्तोत्र हों उसी रागमें मधुरी आवाज से पाठ करे तो फलदाई होता है । प्रतिष्ठा कल्पपद्धतिमें श्रीपादलिप्तसरि महाराजने लिखा है कि जाप तीन तरहके होते हैं, प्रथम मानसजाप दूसरा उपांशुजाप और तीसरा भाष्यजाप, जिसमें मानस जापका यह मतलब है कि मनहीमें स्थिरता पुर्वक स्थिरचित्त से लय लगाता हुवा ध्यान करता रहे, इस तरहके जापको उत्तम कोटिमें माना गया है, जो शान्ति तुष्टि पुष्टिके देने वाला है । दूसरा उपांशु जाप उसे कहते है कि पासमें बैठा Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्यान प्रकरण हो वह आगज न मुन सके इस तरहसे अन्तर जल्प रुप मुहमेंही कण्ठसे या जीभसे जाप करता रहे। इस तरहका जापभी उत्तम माना गया है, जो पुष्टिके हेतु जाप करते हो उनको उपाशु विधानका उपयोग करना चाहिए। तीसरा भाप्य जाप उसे कहते है कि स्पष्ट उच्चारसे पाठ करनेकी तरह बोलते जाय, ऐसे उच्चाराले जाप आकर्पणादि कार्यमें उपयोगी होते है, अतः जैसी जिसकी भावना हो और कार्यका मसग हो तदनुसार लाभालाभ देख कर जाप करना चाहिए। इसी नापमें भ्रमर जापभी होता है जैसे दो अपरे गुजारव करते हों उस मकार कण्ठसे व नासिकासे मिलान करवा हुवा जाप करे जो ऐसा जाप जम जाय और इसके भेदको समझ ले वो उस पुरुपकी जशन पर सिद्धि हो जाती है। इसी तरहसे नित्य जाप, नैमित्तजाप, पर्वजाप, प्रदक्षिणानाप, काम्प जाप, प्रायथितजाप आदि बहुतसे मेद है यहा इसका विस्तार करना नही चाहते उपर बताया हुवादी समप्रमें आ जाय तो कल्याण हो सम्वा है। Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ श्री नवकार महामंत्र - कल्प ध्याता पुरुषकी योग्यता ध्यान करने की इच्छा रखनेवालोंको निजकी योग्यता बढाकर ध्याता ध्येय और ध्यानको अच्छी तरहसे समझ लेना चाहिए | क्योंकि इन भेदोंके समझे बिना कार्य सिद्ध नही हो सकेगा । अतः करनेवालोंमें किस तरहके गुण होना चाहिए जिसका संक्षेपसे वर्णन करेंगे। ध्यानी मनुष्य धैर्यता रखने वाला हो, शांत स्वभावी, सम परिणामी, और अत्यन्त संकट आजाने पर भी ध्यानको नही छोडे इस प्रकार अटल श्रद्धावाला होना चाहिए और सबकी तरफ समान भावसे देखनेवाला शीतताप आदिमें असह्य कष्टसे घबराता न हो और निजके स्वरूपसे भ्रष्ट न हो, क्रोध, मान, माया, लोभ आदिका त्याग करनेवाला, रागादिसे मुक्त, कामवासनासे विरांम् पाया हुवा, निजके शरीर पर मोह उत्पन्न न हों इस तरहकी भावनासे संवेगरुपी द्रहमें मग्न होकर सर्वदा समताका आश्रय लेनेवाला, मेरुपर्वतकी तरह निष्कम्प, चन्द्रमाके Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ्याता पुरपकी योग्यता समान आनन्ददाता और वायुकी तरह सगरहित इस तरहका बुद्धिमान ध्यानमें निपुण याता पुरुप हो उसीको ध्यान करनेकी योग्यता वाला समझना चाहिए। इस लिए याता पुरुपको अपनी योग्यताकी तरफ पूरा लक्ष देना चाहिए, क्योंकि योग्यता प्राप्त किए पिना प्रवेश किया जाय तो कार्यकी सिद्धि असम्भव है । यत:धान्तो दान्तो निगरम्भ उपशातो जितेन्द्रिय ॥ पताराधको झयो रिपरीतो विराधक {१२५॥ "श्रीपालचरित" पिण्डस्य ध्येय स्वम्प पिण्डस्य च पदस्थ च रूपस्य उपजित || चतुर्धा ध्येयमाम्नान, ध्यानम्याररत युधे ॥ 'योगशास्त्र" येयका परप बताते हुवे रयान किया है कि पिण्डस्य, पदस्थ, स्पस्य, और पातीव इन चार मकारके ध्येयको ध्यानके आरम्बन भूत मानना चाहिए । व्येय शुद्ध करने के पाद धारणाको मममना Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० श्री नवकार महामंत्र - कल्प जिसके पांच भेद बताए गए हैं। प्रथम पार्थिवी, दूसरी आग्नेयी, तीसरी मारुती, चोथी वारुणी, और पांचवीं तत्त्वभू, यह पांचों धारणाऐं पिण्डस्थ ध्यानमें होती है जिनका संक्षेप वर्णन इस प्रकार है । प्रथम पार्थिवी धारण उसे कहते हैं कि तिर्यक् लोक जितने क्षीरसमुद्रका चिन्तवन करे और उसमें जम्बूद्वीप जितना एक हजार पांखडीवाला सुवर्ण जैसी कान्तिवाले कमलका चिन्तवन करे, उस कमलकी केसरापंक्ति में प्रकाशमान प्रभावशाली मेरु जितनी पीले रंगकी कर्णिकाका चिन्तवन करे, उसके उपर श्वेत सिंहासन पर विराजमान निजकी आत्माका चिन्तवन करे, और कर्म निर्मूल करने के लिए प्रयत्नशील होकर कर्मक्षयका चितवन करे उसको पाथिवी धारणा कहते हैं । दूसरी आग्नेयी धारणाका स्वरूप इस तरह है कि नाभिके अन्दर सोलह पांखडीवाले कमल पुष्पकी योजना करे, और उस कमलकी कर्णिकाओंमें "अ " महामंत्रको और दुसरे प्रत्येक पत्रमें स्वरकी पंक्ति स्थापन करे, रेफ बिन्दुको कला सहित महामंत्र में जो Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिण्डस्थ ध्येय स्वरप ९१ "" अक्षर है उसके रेफरेंसे धीरे-धीरे निकलती हुई धूम्ररेखाका चिन्तन करे, उसमें अग्नि कणकी सन्तति अर्थात् चिनगारिया चिन्तन करके बादमें अनेक ज्वालाका चिन्तवन करना और उस ज्वालाके समूहसे हृदयमें रहे हुवे कमलको जलाना, इस तरहसे घाती अघाती आठो कर्मकी रचनावाले आठ पत्र सहित मुखवाले कमलको महामंत्र के व्यानसे उत्पन्न होनेवाली ज्वाला जला देती है । इस तरहसे चिन्तवन करनेके बाद शरीरसे बाहर सलगती हुई अग्निका निकोण अग्निकुण्ड चिन्तवनकर उसके अतमें स्वस्तिक लाति अग्नि वीजयुक्त चिन्तवन करे । इस तरहके महामन के व्यानसे उत्पन्नकी हुई अग्निसे अर्थात् अग्निज्वाला मे शरीर और कमलको जलाकर मस्मसात् पर शान्त होना इसीका नाम आग्नेयी धारणा है जो यानद्वारा चिन्तवनकी जाती है । तीसरी मारती धारणाका स्वरूप इस प्रकार है कि तीनभुवन के विस्तार जैसा पर्वतादिको चलायमान करनेवाला, समुद्रको क्षोभ प्राप्त कराने वाले, वायुका चितवन करना और भस्मरजको उस वायुसे शीघ्र Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ श्री नवकार महामंत्र कल्प और कणिका सहित कमलमें पचीस वर्ण अनुक्रमसे अर्थात् क. ख. ग. घ. 3, च. छ. ज. झ. ब, . ठ, ड. ढ, ण, त. य. द. ध. न, प. फ. व. भ. म, तक चिन्तवन करना । इतना करनेके बाद मुखकमलमें आठपत्रवाले कमलका चितवन कर उसके अन्दर बाकीके आठ वर्ण य. र. ल. च. श. प. स. ह, का चिन्तवन करना । इस प्रकार चिन्तवन करनेसे श्रुत पारगामी हो जाते हैं । इस क्रियाका विस्तरित विधिविधान समझने योग्य है। जो मनुष्य इसका ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, और अनादि सिद्धि वर्णात्मक ध्यान यथाविधि करते रहते हैं उन पुरुपोंको अल्प समयमें ही गया, आया, हवा, होनेवाला, जीवन, मरण, शुभ, जशुभ, आदि वृत्तान्त मालूम हो जानेका ज्ञान प्राप्त हो जाता है। ____ नाभिकन्दके नीचे आठ वर्गके, अ, क, च, ट, त, प, य, श, अक्षरवाले आठ पत्तों सहित स्वरकी पंक्ति युक्त केसरा सहित मनोहर आठ पांखडीवाला कमल चिन्तवन करे। सर्व पत्रोंके अग्रभागको प्रणवाक्षर व मायावीज ॥ ॐ ही ॥ से पवित्र वनाना । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदस्थ ध्येय स्वरुप उन कमलके मध्यमें रेफसे (') आक्रान्त कलाविन्दु (') से रम्य स्फटिक जैसा निर्मल आयवर्ण ॥१॥ सहित और अन्त्यवर्णाक्षर ।।। स्थापन करना जिससे "अहे" बनता है, और यह पद पाण प्रान्तके स्पर्श फरनेवालेको पवित्र करता हुवा इस्व, दीर्घ, प्लुत, सुक्ष्म, और अति सूक्ष्म जैसा उच्चारण होगा। उसके बाद नाभिकी, कण्ठकी और हृदयकी घटिकादि ग्रन्यियोको अति सूक्ष्म धनिसे विदाहरण करता हुवा, मध्य मार्गसे वहन करता हुआ चिन्तब करना, और विन्दुमेंसे तप्तकला द्वारा निकलते दध जैसे सफेद अमृतके कलोलोंसे अन्तरआत्माको भीजता हुवा चिन्तवनकर, अमृत सरोवरमें उत्पन्न होनेवाले सोलह पाखडीके सोलह स्वरवाले कमलके मध्य में आत्माको स्थापन कर उसमें सोलह विद्यादेवियोंकी स्थापना करना। देदिप्यमान स्फटिकके कुम्भमेसे झरते हुवे दूध जैसे सफेद अमृतसे निजको लम्बे समयसे सिश्चन होता हो ऐसा चिन्तवन करना, और मन्वाधिराजके अभिधेय स्फटिक जैसे निर्मल परमेष्टि अर्हन्तका Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ श्री नवकार महामंत्र कल्प मस्तक में ध्यान करना और ऐसे ध्यानके आवेशसे " सोsहं, सोऽहं ” वारम्वार वोलनेसे निश्चयरूपसें आत्माकी परमात्मा के साथ तन्मयता हो जाती है । इस तरहसे तन्मयता हो जानेके बाद अरागी, अद्वेषी, अमोही, सर्वदर्शी, देवताओंसेभी पूजनीय ऐसे सच्चि - दानन्द परमात्मा समवसरणमें विराजमान होकर धर्मदेशना दे रहे हों, ऐसी अवस्थाका चितवन करके आत्माको परमात्मा के साथ अभिन्नतापूर्वक चिन्तवन करना चाहिए, जिससे ध्यानी पुरुष कर्मरहित होकर परमात्मपद पाता है । बुद्धिमान ध्यानी योगी पुरुषको चाहिए कि मंत्राधिपके उपर व नीचे रेफ सहित कला और बिन्दुसे दबाया हुवा - अनाहत सहित सुवर्णकमलके मध्यमें विराजित गाढ चन्द्र किरणो जैसे निर्मल आकाशसे सञ्चार कर दर्श दिशाओंको व्याप्त करता हो इस प्रकार चिन्तवन करना । वाद में मुखकमलमें प्रवेश करता हुवा, भ्रकुटीमें भ्रमण करता हुवा, नेत्रपत्रोंमें स्फुरायमान, भाल मण्डल में स्थिररूप निवास करता हुवा, तालुके छिद्रमेसे अमृतरस झरता हो और Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदस्थ ध्येय स्वरुप चन्द्रमाके साथ स्पर्धा करता हुवा ज्योतिषमण्डलमें स्फुरायमान, आकाश मण्डलमें सञ्चार करता हुवा, मोक्षलक्ष्मी के साथ सम्मिलित सर्व अवयवादिसे पूर्ण मन्त्राधिराजको कुम्भकसे चिन्तवन करना चाहिए, जिसका विशेष स्पष्टीकरण करते कहा है कि ॥ अ ॥ जिसके आधमें है और ॥ ६ ॥ जिसके अन्तमें है, और विन्दु सहित रेफ जिसके मध्यमें है, जिसके मिलानसे ॥ अई ॥ नता है, यही परम तत्व है और इसको जो जानते है वही तज्ञ है | ९७ ध्यानी पुरुष या योगी महात्मा स्थिर चित्तसे लय लगाते हुवे इस महावत्त्वका ध्यान करते है तो फल स्वरूप आनन्द और सम्पत्तिकी भूमिरुप मोक्षलक्ष्मी उनके पास आकर खडी हो जाती है । जो मनुष्य केवल रेफ बिन्दु और क्लारहित शुभ्राक्षर || ह || का ध्यान करते है, उन महापुरुपको यही अक्षर अनक्षरताको माप्त हो जाता है जो वोलनेमें नही आता इस तरहसे ध्यान लगावे, और चन्द्रमा कला जैसे सूक्ष्म आकारवाले सूर्य जैसे प्रकाशमान अनाहत नामके देवको स्कुरायमान होता Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ श्री नवकार महामंत्र कल्प हो इस प्रकार चिन्तवन करना | और वादमें अनुक्रमसे केशके अग्रभाग जैसा सूक्ष्म चिन्तवन करना और क्षणवार जगतको अव्यक्त ज्योतिवाला चिन्तवन करना, इस तरह करके लक्षसे मनको हटाया जाय तो अलक्षमें स्थिर करते हुवे अनुक्रमसे अक्षय इन्द्रियोंसे अगोचर ऐसी ज्योति प्रगट होती है । इस प्रकार लक्षके आलम्बनसे अलक्ष्य भाव प्रकाशित किया हो तो उससे निश्चल मनवाले योगी महात्मा व ध्यानी पुरुषका इच्छित सिद्ध होता है । योगशास्त्रमें वयान आता है कि, ध्यान करते समय आठ पांखडीके कमलका चिन्तवन करे और उसके मूलमें सप्ताक्षरी मंत्र " नमो अरिहन्ताणं " का ध्यान करे वादमें सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधूपदको अनुक्रमसे चारों दिशाके कमलपत्ते - पांखडीमें स्थापित करे और चारों विदिशा चूलिका में चारोंपद ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तपकी स्थापना कर ध्यानकी लय लगावे तो महान् लाभ प्राप्त होता है । इस तरइसे आराधना करनेवाले परम पुरुष महान् लक्ष्मी प्राप्त करके तीन लोकके पूजनीय हो जाते हैं । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पदस्य ध्येय स्वरूप आगे ऐसा बयान आता है कि, चन्द्रके वि उत्पन्न हुई हो और उसमेंसे नित्य अमृत झरता हो इस तरहसे क्ल्याणके कारणरप भालस्थल में (कपाल) रही हुई || क्ष्वी ॥ नामकी विद्याका ध्यान करना । क्षीरसमुद्र में से निकलती हुई, अमृत जलसे भींजती हुई, मोसम्पी महलमें जाने के लिए नीसरणीरुप शशिकलाको ललाट के अन्दर चिन्तन करना । इस विधाके स्मरण मानसे ससारमें परिभ्रमण करनेवाले कर्म हो जाते हैं, और परमानन्दसे कारणरूप अव्ययपदको पाठा है । क्षय नासिकाके अग्र भाग पर प्रणव || ॐ ॥ शून्य (०) और अनाहत (६) इन तीनोंका ध्यान करनेवाला आठ प्रकारकी सिद्धिया प्राप्त कर लेता है, जिनके नाम इम प्रकार है, (१) अणीमा सिद्धि, (२) महिमा सिद्धि, (३) यीमा सिद्धि, (४) गरिमा सिद्धि, (५) प्राप्तशक्ति मिडि, (६) मा सिद्धि, (७) इशित्व मिटि, और (८) वाशित्त्व सिद्धि, जिसका बयान विस्तारमे परपुरुषचरित्रके प्रथम सर्गमें श्लोक ८५२ से ८५९ तक किया है निशामुओंको देखना चाहिए। Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प इस प्रकारसे सिद्धियां प्राप्त करनेवाला निर्मल ज्ञान पाता है, और ॐ व अनाहत. ह. का ध्यान करने वालेको तमाम विषयके ज्ञानमें प्रगल्भता प्राप्त होती इसी ध्यानमें अहम्लीकार मंत्रका ध्यानभी बहुत उपयोगी बताया है जो इस तरह पर है। ही. ॐ. ॐ. स. हम्ली. ह. ॐ ॐ. ही.. __ इस मंत्रकी अद्भुत माया है, इसका विवरण करते विशेष खुलासा किया है कि दोनों तरफ दोदो ॐकार और अन्तके भागमें मायावीज ही से वेष्टित करे मध्यमें "सोऽहं” और सिरपर "वि" इस तरहके अहम्लीकारका चिन्तवन करना यह मंत्र गणधर महाराज भापित है और निरवद्य विद्या है जो कामधेनुकी तरह अचिन्त्य फलके देनेवाली व कल्याणकारी है। इसी ध्यानमें षटकोणका एक चक्र बनाया जाय जिसके प्रत्येक कोणमें “फट' स्थापन करना, और दाहिनी तरफ वाहरके भागमें "विचक्राय" स्थापन करना बाई तरफ "स्वाहा" स्थापन कर चिन्तवन Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ पढस्य ध्येय स्वरुप करे, और वाहरके भागमें । ॐ पूर्व नमो जिणाणं वेष्टित करलेवे और फिर ध्यानकी लय लगाचे तो आनन्द मगल होता है। ____ उपरोक्त अष्टाक्षरी मनके लिए ऐसा भी वयान आता है कि आठ पनवाले कमलके अन्दर तेजोमय आत्माका ध्यान करना, और ॐकारपूर्वक आधमनके वर्ण अनुक्रमसे पत्रमें स्थापित करना, पहला पर पूर्व दिशाकी तरफका समझना और इसी तरह आगे पत्रोंमें दिशा विदिशामी तरफ आठ वर्ण स्यापित कर ग्यारहसौ चार इस अष्टाक्षरी मत्रका व्यान करे, और जिस कार्यके लिए प्रयत्न हो उसका सकल्प कर आठ दिन तक जाप करे, वादमें आठ रात्रि व्यतीत होनेके वाद जाप करते करते कमलके अन्दर आठ पत्रोमें आट वर्ण अनुक्रमसे दृष्टिगत होंगे। और इनको देखे पाद ऐसी सिद्धि प्राप्त हो जाती है कि भयङ्कर सिंह, हाथी, सर्प, राक्षस, व्यन्तर आदिभी क्षणवारमें शान्त हो जाते है और किसी प्रकारकी पीडा नही करते पल्के पासमें वैट जाते है, और आसपास फिरने लगते हैं। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प इसी ध्यानमें पापोंके बंधका क्षय करनेके लिए पापभक्षणी विद्या इस तरह बताई गई है । १०२ . ॐ अर्ह मुखकमल वासिनि पापात्मक्षयंकरि, श्रुतज्ञानज्वालासहस्रप्रज्वलिते हे सरस्वति मत्पापं हन, हन, दह, दह क्ष क्ष क्ष क्ष क्षः क्षीरधवले अमृतसम्भवे वं वं हुँ हुँ स्वाहा ॥ इस पाप भक्षणी विद्याका स्मरण करने वालेका इसके अतिशयसे या प्रभाव से चित्त प्रसन्न होता है, पापकालुष्य दूर हो जाता है, और ज्ञानरुप दीपकका प्रकाश होता है । ऐसा यह महाचमत्कारी मोक्षलक्ष्मीका वीजभूत मंत्र जो कि विद्याप्रवाद नामके दशवें पूर्वमेंसे उद्धृत किया हुवा है, जिसके ध्यानसे जन्म जरा मृत्युरुप दावानल शान्त हो जाता है और इस ध्यानके बहुतसे भेद हैं जिज्ञासुओंको ज्ञानी ध्यानी पुरुषोंकी सेवा कर प्राप्त करना चाहिए । रुपस्थ ध्येय स्वरुप जिन महान पुरुष के सामने मोक्षलक्ष्मी तैयार Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रपस्थ ध्येय स्वरुप १०३ और सर्व प्रकार के कर्मका नाश करनेमें जो समर्थ हैं, जिनके चारो ओरसे मुखके दर्शन होते है, तीनलोकके जीवोंको अभयदान देनेकी शक्तिवाले, तीनमण्डल जैसे तीन श्वेत छत्र सहित शोभायमान, जिनके पीछे सूर्यको भी विटम्बना करता हुवा भामण्डल झगझगाट कर रहा है, जहा पर दिव्य देवदुन्दुभिके सुहावने नाद - गीतगान के साम्राज्य - सम्पतिधाळे, भ्रमर शब्दोके झङ्कारसे वाचाल अशोक वृक्षके शोभायमान समोसरण में सिंहासन पर विराजमान हैं, जिनके उपर चँवर ढल रहे है, सुरासुर नमस्कार करते हैं, रत्नजडित मुकुट कुण्डलकी क्रान्तिसे नमस्कार-चरणवन्दन के समय पावके नखकी दीप्त कान्तिवाले, दिव्य पुप्प समूहसे व्याप्त विशाल परिषद भूमि जहा विश्रमान है, इस तरहका सुन्दर, रमणीय, सुहावना स्थान है, जहा पर मृग, सिंह, गाय, आदि तिर्यञ्च - हिन्सक प्राणी भी निजके स्वभानिक जातिवैर भावको छोडकर समवसरण में बैठते हैं ऐसे अतिशय वाले केवलज्ञानसे प्रकाशमान अरिहन्त भगवन्तके रुपका आल म्वन छेकर ध्यान करना उसी को स्पस्थ ध्यान कहते हैं । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र कल्प राग, द्वेष और मोहादि विकारोंसे अकलङ्कित शान्त, कान्त, मनोहर सर्वगुण सम्पन्न सुन्दर योगमुद्रावाले जिनके दर्शन मात्रसे अद्भुत आनन्द प्राप्त हो, और नेत्र जहांसे हटते भी न हो ऐसे जिनेश्वर भगवान हैं, सो निश्चय करके मैं ही हूं इस प्रकारकी तन्मयतावाला ध्यानी पुरुष सर्वज्ञकी कोटीमें आ जाता है । १०४ श्रीवीतराग भगवन्तका ध्यान करने से कर्मोंका क्षय होता है, और जब सारे कर्मक्षय हो जाते हैं तव ध्यान करनेवाला पुरुष भी वीतराग वन जाता है । जो मनुष्य रागी का आलम्बन लेगा रागी बनेगा । जो वीतरागका आलम्बन लेगा वीतराग बनेगा । क्योंकि यंत्रवाहक जिस जिस भावसे तन्मय होता है, उसके साथ आत्मा विश्वरुप मणिकी तरह तन्मयता पाता है । और यह उदाहरण स्पष्ट है, जैसे कि, स्फटिक मणिके पास जैसा रङ्ग होगा वैसाही दीखता रहेगा, अतः सफेद का चके तुल्य हृदयको बनाकर रुपस्थ ध्यान किया जाय तो आनन्दकी सीमा न रहेगी । जो मनुष्य ध्यानके अभ्यासी हैं, उनके लिए यह Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०५ रुपातीत ध्येय स्वरूप ध्यान मुश्किल बात नहीं है। जिन महानुभावको अनन्त मुखकी अभिलाषा है उन्हें यह व्यान अवश्य करना चाहिए। सपातीत ध्येय स्वरुप यह तो अलौफिक ध्यान है, अमूर्त, सचिदानन्द स्वरुप निरञ्जन सिद्ध परमात्माका ध्यान जो निराफार, रुपरहित निसको रुपातीत कहते हैं । ___ रुपावीत व्यान बहुत उच्च कोटिका है ।जो पुरप सिद्ध (सरप) भगवानका आलम्बन लेकर इस ध्यानको फरते हैं, उनको योगी ग्राह्य, ग्राहक भावरहित तन्मयता प्राप्त होती है। और अनन्य धारणी होकर तन्मय हो लयलीन हो जाते हैं, जिससे यानी और ध्यानके अभावसे ध्येयके साथ एकरपदा प्राप्त करलेते हैं । जो पुरुप इस तरह एकरुपतामे लीन हो जाते हैं उसीको नासमरसीभाव कहते है। जिसकी एकीकरण, जमेदपन, माना है। इस तरहसे जो आत्मा अभिनतासे परमात्माके विपे लयलीन होता है उसीके कार्यके सिद्धि होती है। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री नवकार महामंत्र- करप लक्ष्य ध्यानके सम्बन्धसे अलक्ष्य ध्यान करना, स्थूल ध्यानसे सूक्ष्म ध्यानका चिन्तवन करना, सालम्वनसे निरालम्बन होना इस प्रकार अभ्यास करने से तत्त्वज्ञ योगी शीघ्र ही तत्व प्राप्त कर लेते हैं । १०६ उपरोक्त कथनानुसार चार तरहके ध्यानामृतमें मग्न होनेवाले योगीका मन जगत् के तत्त्वोंको साक्षात करके आत्माकी शुद्धि कर लेता है । धर्म ध्यान प्रकरण आज्ञा, अपाय, विपाक, और संस्थानका चिन्तवन करनेसे ध्येयके भेद सहित धर्म ध्यानके चार प्रकार बताए गए जिनका संक्षेप वर्णन इस प्रकार है । ( १ ) आज्ञा विचय ध्यान उसको कहते हैं कि सर्वज्ञ भगवानकी अवाधित आज्ञा समक्ष रख कर तत्त्व बुद्धिसे अर्थ चिन्तवन करना, मनन करना, और तदनुसार वर्तन करना । जिनेश्वर भगवानके वचन सूक्ष्म हैं, जो किसीभी प्रकारकी युक्तिसे या हेतुसे खण्डित नही हो सकते । जिन भगवानके वचन सर्वदा सत्य होते हैं इस लिए गृहण करने योग्य हैं, और Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (धर्म ध्यान प्रकरण १०७ ऐसे वचन जो गृहण करते हैं वह आज्ञारप ध्यानकी कोटिमें गिने जाते हैं। (२) अपाय विचय ध्यान, उसको कहते है कि ध्यानके प्रतापसे राग, द्वेष, कपायादिसे उत्पन्न होनेचाले दुखोंका चिन्तवन होकर दुर्गविसे भय प्राप्त होता हो तो ऐसे पुरप इस लोक परलोक सम्बन्धी पापोका त्याग करनेमें तत्पर होते हैं, और अनिष्ट कार्योसे नित्ति पाकर सन्मार्गमें चलते हैं जिससे कर्मवन्ध नही होता। (३) पिपाफ विचय ध्यान, से क्षण क्षणमें उत्पन्न होनेवाले कर्मफलके उदयका अनेक रुपसे विचार किया जाय, और कर्मसमूहसे अलग होनेकी भावना भायी जाय, और निश्चय पूर्वक यह मानता रहे कि अरिहन्त भगवानको जो सम्पदाएँ मम्माप्त है, और नर्कके जीवोंको जो विपदाएँ प्राप्त है। उसमें पुण्य और पापका ही साम्राज्य है। (४) सम्पान विषय भ्यानका यह साराश है कि जिसमें उत्पचि, स्थिति, और नाश स्वरपाले अनादि अनन्त लोककी आकृतिका चिन्तयन होता हो, और Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ श्री नवकार महामंत्र-कल्प विविध द्रव्यान्तरगत अनन्त पर्यायका परिवर्तन होनेसे नित्य आसक्त होनेवाला मन रागद्वेषादि मोहजन्य प्रवृत्तिकी तर्फ आकुलताको प्राप्त नही करता हो, इस प्रकारसे चारों भेदका वर्णन समझले तो कल्याण हो जाता है। विधि-विधान प्रकरण जैन सिद्धान्तमें मंत्रशास्त्र-जप जापका वर्णन विशेष रुपसे किया है, लेकिन वर्तमान जैन समाजमें से बहुतसी व्यक्तिका लक्ष विधि-विधानकी तरफ तो कम हो गया है, और कार्य सिद्धिकी तरफ विशेष बढ गया हो ऐसा मेरा अनुमान है, लेकिन विधि सहित आराधना न की जाय तो मन्त्र सिद्धि नही होती। हर एक मंत्र साध्य करनेसे पहले शुभ महिना शुभ पक्ष पञ्चमी, दशमी, पूर्णिमादि पूर्णा तिथि चन्द्रबल सिद्धियोग, अमृत सिद्धियोग, राजयोग, रवियोग, आनन्दयोग, श्रीवत्सयोग, छत्रयोग आदि श्रेष्ट देखकर वलवान नक्षत्र और लाभदाई चौघडियेमें Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधि-विधान प्रकरण ૦૨ निजका सूर्यस्वर चलता हो तर मत्रके साधनमें प्रवेश करना चाहिए । साध्य करनेके लिए देवस्थान, या बाग, जलाशयके समीप अथवा और कोई शुद्ध स्थान जो उपरकी मजील पर न हो भूमितल या जमीन पर बैठ कर ध्यान करनेकी व्यवस्था करना चाहिए । मत्र जिस प्रकारका हो वैसाही आलम्बन सामने स्थापन करे, अष्टद्रव्य शुद्ध काममें लेवे, दीपक जयणा सहित रखे, आलम्बनके दाहिनी ओर दीपक और बाई और धूप रखना चाहिए, दीपककी ज्योति आलम्बनके नेत्र तक बची रह सके इस तरहसे दीपक रखना । द्रव्यकी इच्छावालेको पूर्व दिशाकी तरफ मुख करके बैठना चाहिए | सफेद कपडे सफेद आसन सफेद माला काममें लेवे, और ऐहिक मुखमें भी यही विधान उपयोगी होगा । कष्ट निवारण-सङ्कट दूर करनेके लिए उत्तर दिशा आसन, कपड़े और माला लाल रगकी लेना । अन्य क्रूर कार्यमें दक्षिण दिशानीले व काले व आस Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० श्री नवकार महामंत्र - कल्प मानी रंगके कपडे, आसन और माला लेवे। किसी कार्यमें पश्चिम दिशा व कपडे आसन माला पीले रंगकी लेना बताया है । संकल्प करके जाप करे और पूरे होने पर किसी उत्तम पृरुषकी साक्षीमें उत्तर क्रिया याने सिद्धि करना चाहिए । सिद्धि क्रियाके अलग अलग विधान हैं क्रिया करानेवाला पुरुष योग्यता रखता हो उस प्रकार सिद्धि क्रिया करावे । सिद्धि क्रियामें पोडांश जाप तो अवश्य करे, समय अर्द्धरात्रिका, पिछली रात्रिका और प्रतिष्ठा आदिमें तो जो भी समय मिले उत्तम माना गया है । सिद्धि क्रियाके बाद इक्कीस जाप तो नित्य करना चाहिए, और विशेष कार्य हो तब अधिक जाप करके कार्य सिद्ध करे, साथ ही ध्यान रखे कि क्रिया शुद्ध है तो कार्य भी सिद्ध है । इस प्रकार संक्षेपसे विधान बताया गया है अधिक जानने की इच्छावालों को गुरुगमसे जानना चाहिए । यही अंतिम निवेदन है । सम्पूर्ण Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मत्रसूची ५६ नपर नाम पृष्ट नवर नाम पृष्ट १ आत्मशुद्धि मत्र ४५/२० वशीकरण मत्र (२) ५५ २ इन्द्राबाइन मत्र ४६२१ वशीकरण मन (३) ५६ ३ कवच निर्मल मत्र ४६२२ यन्दीगृह मुक्त मन ५६ ४ हस्त निर्मल मत्र ४७२३ सङ्कटमोचन मन ५ काय शुद्धि मन ४२४ नवाक्षरी मत्र ५७ ६ हृदय शुद्धि मत्र ४८/२५ सर्वसिद्धि मन ७ मुख पवित्र करण मंत्र ४८२६ चैरनाशाय मत्र ८ चक्षु पवित्र करण मत्र ४८/२७ मन चिंतित फल ९ मस्तक शुद्धि मत्र ४९ दाता मंत्र ५८ १० मस्तक रक्षा मन ५०२८ लाभ दायक मत्र ५९ ११ शिखा बन्धन मन ५०२९ अङ्गरक्षा मन ५९ १२ मुख रक्षा मन ५१/३० अनुपम मन ६० १३ इन्द्रस्य कवच मत्र ५१/३१ सर्व कार्य सिद्धि मन ६० १४ परिवार रक्षा मत्र ५१३२ बन्दीमुक्त मत्र ६० १५ उपद्रय शाति मत्र ५२३३ स्वप्ने शुभाशुभ १६ पञ्चपरमेष्टि मन ५२ कथित मन ६२ १७ महारक्षा सर्योपद्रव ३४ विद्याध्ययन मत्र ६२ शाति मत्र ५३/३५ आत्मचः परचक्षु १८ महामत्र ५३. रक्षा मंन ६२ १९ वशीकरण मंत्र ५४३६ पथिक भयहर मम ६३ Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नंबर नाम पर नंबर नाम 37 मोदिनी मंत्र. 6457 सर्पभयार, मंत्र 38. दुष्ट स्तम्मन मंत्र 58 मीणाति मंत्र 39 व्यन्तर पराजय, मंडू 65/52 कार्यसिनि मंग 40 जीर रक्षा मंत्र 0 नुभयर मंत्र 41 सम्पत्ति प्रदान मंत्र गेगाकर मंत्र २२.सरस्वती मंत्र" 6732 मणार मंत्र 43 शांतिदाता मंत्र 165 सूर्यमालपीडा मंत्र 44 मंगल मंत्र 664 चन्द्ररूपीदा मंत्र 45 वन्तु विकाय मंत्र 68/65 बुधपीना मंत्र 46 सर्व भय रक्षा मंत्र 68/6, गुरुपीडा मंत्र 47 तस्कर स्वम्भन मंत्र 62/67 शनि गह केतु 48 शुभाशुभ दर्शन मंत्र 6 पीडा मंत्र 97 49 प्रक्षोनर विजय मंत्र 0/68 चतुगक्षरी मंत्र 50 सर्वरक्षा मंत्र०/६९ पञ्चाक्षरी मंत्र 51 द्रव्यमाप्ति मंत्र 70 पडाक्षरी मंत्र 52 ग्रामप्रवेश मंन सप्ताक्षरी मंत्र 53 शुभाशुभ जानाति मंत्र 72/72 पन्द्राक्षरी मंत्र 54 विवादे विजय मंत्र 73/73 पोडशाक्षरी मंत्र 55 उपवास फल मंत्र 73/74 पञ्च तत्त्व विद्या मंत्र 8 56 अग्निक्षय मंत्र 73/75 चार शरण मंगल मंत्र 72