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________________ यातन प्रकरण हिकासन, और कायोत्सर्गासन, यह नौ प्रकारके आसन गृहस्य सुगमतासे कर सकता है। पहला पर्यवासन जिसे मुखासन भी कहते , यह आसन बहुत ही आरामसे सिद्ध हो सकता है, जिसको इस वरद्दसे करते हैं कि दोनों जलाके नीचे का भाग पावके उपर करके बैठे याने पारखी लगाकर बैठे और दाहिना व पाया हाय नाभि कमलके पासमें ध्यान मुद्रामें रखे तो पर्यङ्कासन बन जाता है। दाहिना पार वायी जड्डा पर व चाया पाव दाहिनी जहा पर रख कर स्थिरतासे बैठे तो चीर।सन बन जाता है, और वीरासनमेंही पीठको तरफसे लेकर दाहिने पावका अगुठा दाहिने हाथसे और वायें पावका अड्गुठा बायें हाथसे पकडे तो चीरासनका बनासन बन जाता है। दोनो जडाफो परस्पर मायमें सम्बन्ध कर बैठे तो पदमासन बनता है। पुरुप चिसके आगे पारके दोनो तलिए मिलाकर उनके उपर दोनो हायकी उगलिया परस्पर एकके साथ एक याने कर सम्मेलन करनेके पाद दशी उगलिया ठीक तरह दीखती रहे इस भकार दाय
SR No.009486
Book TitleNavkar Mahamantra Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year1942
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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