________________
श्री नवकार महामन्त्र कल्प
وع
॥ गुरुपीडा मन ॥
ॐ ही नमो आयरियाण ||६६ || गुरुकी दृष्टि हानिकारक हो तब इस मन्त्रका जाप एक हजार रोजाना करना चाहिए ।
॥ शनि राहु केतु पीता मत्र ॥
॥६७॥
ॐ ह्रीं नमो लोए सव्वसा इस मत्रका नित्य एक सहस्र जाप करने से शनि - वर राहू केतुकी दृष्टि हानिकर हो तो मिट जाती है और सुख मिलता है।
॥ चतुराक्षरी मन ॥
"
“ अरहन्त " को चतुराक्षरी मंत्र कहते है इसका चारसौ बार जाप करे तो लाभ दाई होता है ॥
॥ पञ्चानरी मन ॥
66
अ. सि आ. उ. सा. " इसका पाचसौ बार जप करे तो अति उत्तम है |
॥ पारी मंत्र ||
"अरिहन्त सिद्ध " इस मत्रका तीनसौ बार जाप करे तो उत्तम है। |