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________________ १०८ श्री नवकार महामंत्र-कल्प विविध द्रव्यान्तरगत अनन्त पर्यायका परिवर्तन होनेसे नित्य आसक्त होनेवाला मन रागद्वेषादि मोहजन्य प्रवृत्तिकी तर्फ आकुलताको प्राप्त नही करता हो, इस प्रकारसे चारों भेदका वर्णन समझले तो कल्याण हो जाता है। विधि-विधान प्रकरण जैन सिद्धान्तमें मंत्रशास्त्र-जप जापका वर्णन विशेष रुपसे किया है, लेकिन वर्तमान जैन समाजमें से बहुतसी व्यक्तिका लक्ष विधि-विधानकी तरफ तो कम हो गया है, और कार्य सिद्धिकी तरफ विशेष बढ गया हो ऐसा मेरा अनुमान है, लेकिन विधि सहित आराधना न की जाय तो मन्त्र सिद्धि नही होती। हर एक मंत्र साध्य करनेसे पहले शुभ महिना शुभ पक्ष पञ्चमी, दशमी, पूर्णिमादि पूर्णा तिथि चन्द्रबल सिद्धियोग, अमृत सिद्धियोग, राजयोग, रवियोग, आनन्दयोग, श्रीवत्सयोग, छत्रयोग आदि श्रेष्ट देखकर वलवान नक्षत्र और लाभदाई चौघडियेमें
SR No.009486
Book TitleNavkar Mahamantra Kalp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherChandanmal Nagori
Publication Year1942
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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