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श्री नवकार महामंत्र कल्प
इसी ध्यानमें पापोंके बंधका क्षय करनेके लिए पापभक्षणी विद्या इस तरह बताई गई है ।
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ॐ अर्ह मुखकमल वासिनि पापात्मक्षयंकरि, श्रुतज्ञानज्वालासहस्रप्रज्वलिते हे सरस्वति मत्पापं हन, हन, दह, दह क्ष क्ष क्ष क्ष क्षः क्षीरधवले अमृतसम्भवे वं वं हुँ हुँ स्वाहा ॥
इस पाप भक्षणी विद्याका स्मरण करने वालेका इसके अतिशयसे या प्रभाव से चित्त प्रसन्न होता है, पापकालुष्य दूर हो जाता है, और ज्ञानरुप दीपकका प्रकाश होता है । ऐसा यह महाचमत्कारी मोक्षलक्ष्मीका वीजभूत मंत्र जो कि विद्याप्रवाद नामके दशवें पूर्वमेंसे उद्धृत किया हुवा है, जिसके ध्यानसे जन्म जरा मृत्युरुप दावानल शान्त हो जाता है और इस ध्यानके बहुतसे भेद हैं जिज्ञासुओंको ज्ञानी ध्यानी पुरुषोंकी सेवा कर प्राप्त करना चाहिए ।
रुपस्थ ध्येय स्वरुप
जिन महान पुरुष के सामने मोक्षलक्ष्मी तैयार