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मंत्रमहिमा प्रकरण यह देखना है कि जिस तरह अनेक प्रकारके मत्र, होते है, उनके अधिष्ठाता है उनही मत्रोंमें से यह भी एक नवकार मत्र है या कुछ और बात है। सोचते है तो यह मत्र साधारण नहीं है, और अनेक मत्रों के जो अधिष्ठाता देव है चद्द भी अपनी आत्माके लिए इस नवकार महामत्रका जाप करते हैं इस लिए उन मत्रोंसे तो यह मत्र कइ दरजे उच्चकोटिवाला है, इसकी महिमा करने के लिए देवभी समर्थ नहीं हो सकते तो मानवी किस तरह क्यान कर सकता है जैनसिद्धान्तमें तो कहा है कि। जिणसासणस्स सारो, चउद्दसपुयाण जो समुद्वारो।। जस्स मणे नवकारो, ससारो तस्स किं कुणइ ॥१॥ एसो मगलनिलो, भवक्लिो सयरसघसुहजणभो। नवकारपरममतो, चितिथमित सुह देई ||५||
भावार्थ-जैन शासनमें चवदापूर्वका सारभूत नवकारमन बताया है, और इसका बहुतसा वर्णन दश पूर्वमें या जिसका गणघर भगवानने वयान किया, ऐसे इस महामभाविक मत्रका जो नित्यप्रति ध्यान-स्मरण करते है उनका इस ससारमें कोई भी अनिष्ठ चिन्तवन नही कर सकता। यह मंत्र महामग