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नवा प्रकरण चार अवान्तर भेदको फैलाते हैं तो कुल सस्या ८० होती है। जिनके स्वस्पको समझ कर क्रिया की जाय तो अवश्य फलदाई होगी। जो पुरुष स्वरुप समझें नही योग्यता प्राप्त करें नही और स्वच्छन्दी पन कर साधना करें उन्हें सिद्धि किस प्रकार हो सकती है। अत' शुद्धोचारकी तरफ बहुत लक्ष देना चाहिए और जो क्रियाएँ-सारनाऐं की जाय उनमें गुरुगम अवश्य लेना चाहिए।
नवाङ्क प्रकरण नवकार, नवपद, नवतत्व आदि जिनका ९ के असे उच्चार होता है उनमें अनेकानेक गुप्त सिद्धिया समाई हुई होती है। नवाईमें अक्षय सिद्धि है, अर्थात् इस अङ्गकी सिद्धि खण्डित नही होती अखण्ड रुप रहती है, क्योंकि अकमें यह चैतन्यरुप है इसके उदाहरणको देखिये कि, व्यञ्जन क, ख, ग, घ, ङ, इत्यादि जो वतीस अक्षर है यह सब जड सहप्य माने गए है, और जब पदार्थ जितने हैं वह मायः सय हो जाते हैं । इन व्यञ्जनके साथ अ, आ, इ, ई, आदि सोलह स्वर जो चतन्य सहप्प है, इनको लगाए