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श्री नवकार महामंत्र कल्प
राग, द्वेष और मोहादि विकारोंसे अकलङ्कित शान्त, कान्त, मनोहर सर्वगुण सम्पन्न सुन्दर योगमुद्रावाले जिनके दर्शन मात्रसे अद्भुत आनन्द प्राप्त हो, और नेत्र जहांसे हटते भी न हो ऐसे जिनेश्वर भगवान हैं, सो निश्चय करके मैं ही हूं इस प्रकारकी तन्मयतावाला ध्यानी पुरुष सर्वज्ञकी कोटीमें आ जाता है ।
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श्रीवीतराग भगवन्तका ध्यान करने से कर्मोंका क्षय होता है, और जब सारे कर्मक्षय हो जाते हैं तव ध्यान करनेवाला पुरुष भी वीतराग वन जाता है । जो मनुष्य रागी का आलम्बन लेगा रागी बनेगा । जो वीतरागका आलम्बन लेगा वीतराग बनेगा । क्योंकि यंत्रवाहक जिस जिस भावसे तन्मय होता है, उसके साथ आत्मा विश्वरुप मणिकी तरह तन्मयता पाता है । और यह उदाहरण स्पष्ट है, जैसे कि, स्फटिक मणिके पास जैसा रङ्ग होगा वैसाही दीखता रहेगा, अतः सफेद का चके तुल्य हृदयको बनाकर रुपस्थ ध्यान किया जाय तो आनन्दकी सीमा न रहेगी । जो मनुष्य ध्यानके अभ्यासी हैं, उनके लिए यह