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अशुद्धोचार प्रकरण
११.
आराधक पुरुषको प्रत्यक्ष क्यों नही दीखते ? और प्रत्यक्ष नही आते है इसी लिए उपासकोंकी श्रद्धा कम होती जाती है। बात मानने योग्य भी है, क्योंकि मत्र बदले नही अधिष्ठाता पदले नहीं तो फिर प्रत्यक्ष दर्शनमें कोनसी खामी है ? विचार करते हैं तो मारी बातें वही है कि जो पूर्वकालमें थी, लेकिन स्मरण करने वाले वह नहीं है कि जो पूर्वकालमें ये । न उनकी सी धैर्यता श्रद्धा और योग्यता है । हमारी अयोग्यताका विचार करें तो बहुत लम्बा है । लेकिन मनोचारकी तरफ देखें तो यथाविधि उच्चार हम नही कर सकते । पूर्वाचार्यांने तो योजना करनेमें और हर तरहकी तरकीब बताने में कमी नहीं की और हमने घृष्टता करनेमें कमी नही की सो कमी नही करनेमें वो दोनों बरावर है, लेकिन उनका ध्येय कुछ और था और हमारे विचार कुछ और ही मकारके है । पूर्वाचार्याने स्पष्ट उच्चारके लिये भावि भाविके कथन प्रतिपादित किये और सून पाठ आदिमें पद, सम्पदा, गुरु, लघु आदिकी व्यवस्था की है जैसे नरकारमनमें पदसा ||९|| सम्पदा ॥८॥ स्वर्ण ||७|| लघुवर्ण ॥ ६१ ॥ सर्ववर्ण ||६८ || इस